
भारत और अमेरिका के बीच एलपीजी डील हुई है। (PC: Pexels)
हर महीने किचन के बजट में एक फिक्स्ड खर्चा LPG का भी होता है। बीते कुछ साल में ग्लोबल क्रूड की कीमतें बढ़ने और जियो पॉलिटिकल अस्थिरता की वजह से LPG की कीमतें लगातार बढ़ी हैं। इक्का दुक्का मौकों पर हल्की फुल्की कटौती जरूर हुई, लेकिन वो काफी नहीं थी। तो अब सवाल यही है कि क्या अब कभी भी LPG की कीमतें कम नहीं होंगी। इस आसान से सवाल के पीछे एक बेहद जटिल ग्लोबल स्टोरी है, जो जियो-पॉलिटिक्स, शिपिंग रूट, प्राइसिंग बेंचमार्क, ऑयल डिप्लोमेसी के बाद अब अमेरिका तक जा पहुंची है। अमेरिका, भारत की किचन इकोनॉमी में अब एक नया खिलाड़ी है। अब आप सोच रहे हैं कि मेरे किचन में गैस सिलिंडर का अमेरिका से क्या लेना देना। चलिए आपको यही समझाते हैं।
भारत एक ऑयल इंपोर्टिंग देश है, हम अपनी जरूरत का तकरीब 60% LPG इंपोर्ट करते हैं, उसमें सबसे ज्यादा हिस्सा मिडिल ईस्ट से आता है। यानी सऊदी अरब, कुवैत और यूएई। यानी आपके किचन में आ रहा गैस सिलिंडर कितने का मिलेगा, आपसे हजारों किलोमीटर दूर ये मिडिल ईस्ट के देश तय करते हैं। ये एक पूरा ऑयल इकोसिस्ट है, जिसमें तेल कीमत सऊदी कॉन्ट्रैक्ट प्राइस (CP) पर तय होती है, जो LPG ट्रेड के लिए दुनिया का सबसे प्रभावशाली मानक है। ये बेंचमार्क स्थिर और भरोसेमंद जरूर था, लेकिन क्या सस्ता था? ज्यादातर मौकों पर नहीं।
ऐतिहासिक रूप से, भारत अपने LPG इंपोर्ट के 80% से ज़्यादा के लिए खाड़ी देशों खासतौर पर कतर, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब पर निर्भर रहा है। कतर 27% हिस्सेदारी के साथ सबसे आगे है। उसके बाद संयुक्त अरब अमीरात 26% और सऊदी अरब 19% के साथ दूसरे नंबर पर है। हालांकि, ये खाड़ी के प्रमुख देश भरोसेमंद रहे हैं, लेकिन लाल सागर में उथल-पुथल और ओपेक+ कटौती से बढ़ी अस्थिरता ने भारत के इंपोर्ट बिल पर सीधा असर डाला।
ऐसे में मिडिल ईस्ट से अलग LPG इंपोर्ट को डायवर्सिफाई करने के अलावा भारत के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था, इसे मजबूरी समझें या जरूरत। इसलिए 2024-25 के दौरान जब LPG की कीमतें अस्थिर बनी रहीं और घरेलू उपभोक्ताओं के लिए कीमतें उनकी जेब पर भारी पड़ने लगीं, तो भारत ने मिडिल ईस्ट से हटकर अब अपनी ईंधन जरूरतों के लिए अमेरिका की ओर रुख किया है।
इस साल की शुरुआत में भारत की सरकारी तेल कंपनियों IOC, BPCL, HPCL ने अमेरिका के तेल सप्लायर्स के साथ एक डील पर दस्तखत किए। एक साल की इस डील में 22 लाख टन तेल इंपोर्ट किया जाएगा, यह भारत की कुल वार्षिक LPG आयात (लगभग 20-23 मिलियन टन) का करीब 10% है। कागजों पर, यह कदम आर्थिक नजरिए से बिल्कुल सही लगता है। पिछले कुछ वर्षों में, अमेरिका में रसोई गैस की कीमतें (मोंट बेलवियू, टेक्सास में बेंचमार्क की गई) अक्सर मिडिल ईस्ट के सऊदी अरब के सेंट्रल बैंक से कम रही हैं। जब कीमतों का अंतर बढ़ता है, तो अटलांटिक और पनामा नहर के रास्ते लंबे शिपिंग रूट भी काम कर जाते हैं।
यहां तक की कहानी तो हो गई, लेकिन सवाल अब भी वही है, क्या अमेरिका से डील होने के बाद भारतीय उपभोक्ताओं के लिए LPG कीमतें कम होंगी। तो पहली नजर में तो ये डील फायदेमंद लगती है, क्योंकि इसमें लागत कटौती दिखती है। इसके कुछ बिंदुओं पर नजर डालिए:
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि LPG की कीमतें कम होंगी ही, इसकी कोई गारंटी नहीं है। अब जरा इसके पीछे के फैक्टर्स को भी समझ लीजिए।
देखिए, भारत की जरूरत से ज्यादा मिडिल ईस्ट पर निर्भरता एक बड़ा जोखिम है, इसलिए एनर्जी सोर्स को डायवर्सिफाई करने में ही समझदारी है। इससे भारत की मोलभाव करने की क्षमता भी बढ़ेगी, कीमतों में स्थिरता भी आएगी।
Updated on:
19 Nov 2025 01:18 pm
Published on:
19 Nov 2025 01:17 pm
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