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क्या घटने वाली हैं LPG सिलेंडर की कीमतें, अमेरिका से आने वाली सस्ती गैस का कितना पड़ेगा असर? समझिए

India US LPG Deal: भारतीय सरकारी तेल कंपनियों ने अमेरिका के साथ एलपीजी खरीदने के लिए 1 साल का सौदा किया है। एक साल की इस डील में 22 लाख टन तेल इंपोर्ट किया जाएगा।

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India US LPG Deal

भारत और अमेरिका के बीच एलपीजी डील हुई है। (PC: Pexels)

हर महीने किचन के बजट में एक फिक्स्ड खर्चा LPG का भी होता है। बीते कुछ साल में ग्लोबल क्रूड की कीमतें बढ़ने और जियो पॉलिटिकल अस्थिरता की वजह से LPG की कीमतें लगातार बढ़ी हैं। इक्का दुक्का मौकों पर हल्की फुल्की कटौती जरूर हुई, लेकिन वो काफी नहीं थी। तो अब सवाल यही है कि क्या अब कभी भी LPG की कीमतें कम नहीं होंगी। इस आसान से सवाल के पीछे एक बेहद जटिल ग्लोबल स्टोरी है, जो जियो-पॉलिटिक्स, शिपिंग रूट, प्राइसिंग बेंचमार्क, ऑयल डिप्लोमेसी के बाद अब अमेरिका तक जा पहुंची है। अमेरिका, भारत की किचन इकोनॉमी में अब एक नया खिलाड़ी है। अब आप सोच रहे हैं कि मेरे किचन में गैस सिलिंडर का अमेरिका से क्या लेना देना। चलिए आपको यही समझाते हैं।

मिडिल ईस्ट पर भारी निर्भरता

भारत एक ऑयल इंपोर्टिंग देश है, हम अपनी जरूरत का तकरीब 60% LPG इंपोर्ट करते हैं, उसमें सबसे ज्यादा हिस्सा मिडिल ईस्ट से आता है। यानी सऊदी अरब, कुवैत और यूएई। यानी आपके किचन में आ रहा गैस सिलिंडर कितने का मिलेगा, आपसे हजारों किलोमीटर दूर ये मिडिल ईस्ट के देश तय करते हैं। ये एक पूरा ऑयल इकोसिस्ट है, जिसमें तेल कीमत सऊदी कॉन्ट्रैक्ट प्राइस (CP) पर तय होती है, जो LPG ट्रेड के लिए दुनिया का सबसे प्रभावशाली मानक है। ये बेंचमार्क स्थिर और भरोसेमंद जरूर था, लेकिन क्या सस्ता था? ज्यादातर मौकों पर नहीं।

ऐतिहासिक रूप से, भारत अपने LPG इंपोर्ट के 80% से ज़्यादा के लिए खाड़ी देशों खासतौर पर कतर, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब पर निर्भर रहा है। कतर 27% हिस्सेदारी के साथ सबसे आगे है। उसके बाद संयुक्त अरब अमीरात 26% और सऊदी अरब 19% के साथ दूसरे नंबर पर है। हालांकि, ये खाड़ी के प्रमुख देश भरोसेमंद रहे हैं, लेकिन लाल सागर में उथल-पुथल और ओपेक+ कटौती से बढ़ी अस्थिरता ने भारत के इंपोर्ट बिल पर सीधा असर डाला।

अमेरिका से डील क्यों जरूरी?

ऐसे में मिडिल ईस्ट से अलग LPG इंपोर्ट को डायवर्सिफाई करने के अलावा भारत के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था, इसे मजबूरी समझें या जरूरत। इसलिए 2024-25 के दौरान जब LPG की कीमतें अस्थिर बनी रहीं और घरेलू उपभोक्ताओं के लिए कीमतें उनकी जेब पर भारी पड़ने लगीं, तो भारत ने मिडिल ईस्ट से हटकर अब अपनी ईंधन जरूरतों के लिए अमेरिका की ओर रुख किया है।

भारतीय कंपनियों ने की अमेरिका के साथ डील

इस साल की शुरुआत में भारत की सरकारी तेल कंपनियों IOC, BPCL, HPCL ने अमेरिका के तेल सप्लायर्स के साथ एक डील पर दस्तखत किए। एक साल की इस डील में 22 लाख टन तेल इंपोर्ट किया जाएगा, यह भारत की कुल वार्षिक LPG आयात (लगभग 20-23 मिलियन टन) का करीब 10% है। कागजों पर, यह कदम आर्थिक नजरिए से बिल्कुल सही लगता है। पिछले कुछ वर्षों में, अमेरिका में रसोई गैस की कीमतें (मोंट बेलवियू, टेक्सास में बेंचमार्क की गई) अक्सर मिडिल ईस्ट के सऊदी अरब के सेंट्रल बैंक से कम रही हैं। जब कीमतों का अंतर बढ़ता है, तो अटलांटिक और पनामा नहर के रास्ते लंबे शिपिंग रूट भी काम कर जाते हैं।

क्या LPG की कीमतें कम होंगी?

यहां तक की कहानी तो हो गई, लेकिन सवाल अब भी वही है, क्या अमेरिका से डील होने के बाद भारतीय उपभोक्ताओं के लिए LPG कीमतें कम होंगी। तो पहली नजर में तो ये डील फायदेमंद लगती है, क्योंकि इसमें लागत कटौती दिखती है। इसके कुछ बिंदुओं पर नजर डालिए:

  • भारत 50-60% LPG इंपोर्ट पर निर्भर है, उसका बड़ा हिस्सा मिडिल ईस्ट से आता है। अमेरिकी LPG पहले महंगा पड़ता था, क्योंकि उसका भाड़ा ज्यादा था, लेकिन चीन के अमेरिकी LPG पर टैरिफ बढ़ाने से अब यह प्रतिस्पर्धी हो गया है।
  • अमेरिकी LPG आमतौर पर मिडिल ईस्ट के मुकाबले 20-30 अमेरिकी डॉलर प्रति टन सस्ता होता है। भारत लंबी अवधि के कॉन्टैक्ट्स को लेकर मोलभाव कर सकता है और मिडिल ईस्ट में कीमतों में अचानक बढ़ोतरी से खुद को बचा सकता है।
  • अमेरिका से इंपोर्ट शुरू होने पर भारत के पास LPG की ज्यादा उपलब्धता सस्ती कीमत पर होगी, जिसका फायदा सरकार चाहेगी तो कंज्यूमर्स को भी मिल सकता है।
  • भारत की मिडिल ईस्ट पर निर्भरता कम होगी, तो उनके बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और कम कीमत पर LPG देने की पेशकश कर सकते हैं, इससे भारत की कुल लागत कम हो सकती है।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि LPG की कीमतें कम होंगी ही, इसकी कोई गारंटी नहीं है। अब जरा इसके पीछे के फैक्टर्स को भी समझ लीजिए।

  • पहली बात तो ये कि ये डील 2026 से शुरू होगी, इसलिए अगर इसका कोई प्रभाव हुआ भी तो उसका असर दिखने में कम से कम दो साल का वक्त तो लगेगा।
  • जब कोई LPG शिपमेंट अमेरिका से आएगा तो उसकी लागत सऊदी अरब से आने वाले शिपमेंट के मुकाबले कई गुना ज्यादा होगी।
  • अगर LPG की सस्ती कीमतों का फायदा मिलता भी है तो ये तेल मार्केटिंग कंपनियों पर निर्भर होगा कि वो इसे ग्राहकों को देंगी या नहीं। हो सकता है कि वो अपने नुकसान को कम करने पर पहले फोकस करें।
  • सरकार उज्ज्वला योजना के तहत सस्ते सिलिंडर देती है। ग्लोबल प्राइसेज बढ़ने के बावजूद सरकार लागत का एक बड़ा हिस्सा नुकसान के तौर पर खुद उठाती है। इसलिए सरकार इंपोर्ट कम होने के बावजूद LPG के दाम घटाए, ये थोड़ा मुश्किल है। क्योंकि सरकार अपने वित्तीय घाटे को साधने की कोशिश करेगी।

देखिए, भारत की जरूरत से ज्यादा मिडिल ईस्ट पर निर्भरता एक बड़ा जोखिम है, इसलिए एनर्जी सोर्स को डायवर्सिफाई करने में ही समझदारी है। इससे भारत की मोलभाव करने की क्षमता भी बढ़ेगी, कीमतों में स्थिरता भी आएगी।