
Politics heats up on Hindenburg report, Congress demands RBI-SEBI probe into allegations against Adani Group
अमरीका की फॉरेंसिक फाइनेशियल रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग ने रिपोर्ट के जरिए अदानी ग्रुप पर शॉर्ट पोजीशन और धोखाधड़ी सहित कई आरोप लगाए हैं। इस रिपोर्ट आने के बाद से लगातार आदानी ग्रुप के शेयर्स में गिरावट जारी है। अब इस मुद्दे पर राजनाति भी शुरू हो गई है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने हिंडनबर्ग के द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच की मांग की है। उन्होंने बयान जारी करते हुए कहा है कि "आम तौर पर एक राजनीतिक पार्टी को किसी कंपनी या बिजनेस ग्रुप के बारे में आई किसी अध्ययन रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। लेकिन अदानी ग्रुप के बारे में हिंडनबर्ग रिसर्च के फॉरेँसिक रिसर्च पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया की मांग की गई है। ऐसा क्योंकि क्योंकि अडानी ग्रुप कोई साधारण ग्रुप नहीं है। इसकी पहचान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ तब से है जब वे मुख्यमंत्री थे।"
इसके साथ ही जयराम ने कहा कि "आदानी ग्रुप पर भारतीय जीवन बीमा कंपनी (LIC) और भारतीय स्टेट बैंक (SBI) जैसे फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट और करोड़ों भारतीयों का बचत का पैसा जुड़ा हुआ है। इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा गहन जांच की जरूरत है।"
जयराम रमेश ने केंद्र की मोदी सरकार पर साधा निशाना
जयराम रमेश ने कहा कि फाइनेंशियल में गड़बड़ी के आरोप काफी खराब होंगे, लेकिन इससे भी बुरी बात यह है कि मोदी सरकार ने LIC, SBI सहित अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के द्वारा अदानी ग्रुप में निवेश किया है। इस रिपोर्ट ने भारत की फाइनेंश प्रणाली के जोखिम को उजागर किया है। LIC की बड़ी मात्रा में आदानी कि कंपनियों में है। राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों ने अडानी ग्रुप को निजी बैंकों की तुलना में दोगुना लोन दिया है, जिसमें उन्हें 40% लोन SBI द्वारा दिया जा रहा है। इस गैरजिम्मेदारी ने LIC और SBI में अपनी बचत का डालने वाले करोड़ों भारतीयों को जोखिम में डाल दिया है।
क्या हिंडनबर्ग की रिपोर्टों को आसानी से खारिज किया जा सकता है?: जयराम रमेश
जयराम रमेश ने rbi और SEBI से इस मामले की जांच की मांग करते हुए कहा कि "हम अडानी ग्रुप और वर्तमान सरकार के बीच के घनिष्ठ संबंधों को पूरी तरह से समझते हैं। लेकिन एक जिम्मेदार विपक्षी पार्टी के रूप में कांग्रेस पार्टी पर यह निर्भर है कि वह SEBI और RBI से वित्तीय प्रणाली के प्रबंधक के रूप में अपनी भूमिका निभाने और व्यापक जनहित में इन आरोपों की जांच करने का आग्रह करे। मोदी सरकार कोशिश कर सकती है और सेंसरशिप लगा सकती है। लेकिन भारतीय व्यवसायों और फाइनेंश मार्केटों के वैश्वीकरण के युग में क्या हिंडनबर्ग-प्रकार की रिपोर्टें जो कॉर्पोरेट कुशासन पर ध्यान केंद्रित करती हैं, को आसानी से दरकिनार कर दिया जा सकता है और "दुर्भावनापूर्ण" होने के नाते खारिज कर दिया जा सकता है?"
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Updated on:
27 Jan 2023 08:20 pm
Published on:
27 Jan 2023 07:15 pm
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