पहचान का संघर्ष
शिवकुमार ने केंद्र सरकार की ओर से हो रही उपेक्षा का हवाला देते हुए कहा कि कर्नाटक से लाखों करोड़ का कर राजस्व केंद्र को जाता है लेकिन बदले में उसे एक रुपए के एवज में मात्र 13 पैसे मिलते हैं। राज्य के साथ आर्थिक अन्याय पूरी तरह व्यिस्थत चूक है। राज्य की आबादी देश की कुल जनसंख्या की पांच फीसदी है जबकि जीडीपी में योगदान 8.4 प्रतिशत का है। हमारा प्रश्न है कि देश की जीडीपी में करीब 35 फीसदी योगदान करने वाले दक्षिणी राज्यों पर आबादी आधारित परिसीमन क्यों थोपा जाना चाहिए? उन्होंने जोर देते हुए कहा कि यह हमारी हजारों साल पुरानी पहचान, संस्कृति और विरासत के संरक्षण का संघर्ष है।सांसदों के बजाय बढ़े विधायकों की संख्या : बीआरएस
बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामा राव (KTR) ने कहा, ‘हम प्रस्ताव कर रहे हैं कि केंद्र सरकार को राज्य के भीतर विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ानी चाहिए ताकि जहां भी जनसंख्या में वृद्धि हो, प्रतिनिधित्व, बेहतर प्रशासन और विकेंद्रीकरण की चुनौतियों से निपटा जा सके… क्योंकि सांसदों की संख्या में छेड़छाड़ संघीय संतुलन को बिगाड़ देगी’।उन्होंने प्रश्न किया, केवल जनसंख्या ही परिसीमन का मानदंड क्यों होनी चाहिए? राजकोषीय योगदान, विकास या प्रगति क्यों नहीं?… हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व को पुराने घावों को भरने का प्रयास करना चाहिए, न कि नए घाव बनाने का… यदि भारत को वास्तव में 2047 तक महाशक्ति बनना है, तो आज का क्रम सहकारी संघवाद है, न कि बलपूर्वक संघवाद।’