जाति एवं धर्म का जहर करेगा असर
राज्य में विधानसभा चुनाव की गर्मी अपने चरम पर है। पार्टियों ने जातिगत समीकरण मिलाते हुए उम्मीदवारों के बीच सीटों का बंटवारा कर दिया है। जाति एवं धर्म के व्यापारियों को उनकी जिम्मेदारी सौंप दी गई है। जो लोग कुछ दिन पहले साथ बैठकर चाय पीया करते थे वो एक दूसरे को देख कर कतराने लगे हैं।
कहने का मतलब यह कि चुनावी गर्मी में जाति एवं धर्म का जहर असर दिखाने लगा है। राज्य के दक्षिणी जिलों जैसे तेनी, तिरुनेलवेली, मदुरै, शिवगंगा, रामनाड आदि इलाकों में मुक्कुलादर थेवार समुदाय का दबदबा है। चुनाव के दौरान इस समुदाय का तेवर देखने लायक हो जाता है। हर राजनीतिक दल इसके मत का लाभ उठाकर सत्ता का स्वाद चखना चाहता है। आम तौर पर यह देखने को मिला है कि सत्तधारी दल एआईएडीएमके को इसका समर्थन बराबर मिलता रहा है। यह भी देखने को मिला है कि पार्टी प्रमुख एवं मुख्यमंत्री जयललिता स्वयं इस समुदाय के सम्मानित नेता यू. मुत्थुरामलिंगा का गुणगान करती रही हैं। इसके अलावा इस समुदाय का समर्थन सुनिश्चित करने के लिए मुख्यमंत्री ने 2014 में थेवर जयंती समारोह में स्वयं भाग लेकर थेवर मंदिर में सोने के आभूषण दान किए थे।
एआईएफबी के तेवर कुछ बदले
गौरतलब है कि हर साल 30 अक्टूबर को स्वतंत्रता सेनानी एवं समुदाय के प्रतिष्ठित को मुत्थुरामलिंगा थेवर जयंती मनाई जाती है। अब इस समारोह में राजनीतिक पार्टियां भी अपना योगदान देने लगी हैं लेकिन इस चुनाव में थेवर समुदाय के नेता मुत्थुरामलिंगा द्वारा स्थापित आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक (एआईएफबी) के तेवर कुछ बदले हुए हैं।
इस बार ये सत्तारूढ़ दल से कुछ खफा नजर आ रहे हैं। द्रविण दलों के साथ इनके गठबंधन का प्रयास इस बात की पुष्टि करता है लेकिन जब ये सफल नहीं हो सके तो इन्होंने 6 थेवर केंद्रित दलों के साथ नया गठबंधन कर लिया। अपनी पहली बैठक के दौरान ही समुदाय के प्रतिनिधियों ने खुलेआम लोगों से सत्तारूढ़ दल के लोगों का विरोध करने का अनुरोध किया। एआईएफबी के महासचिव पी.वी. कदीरवन नेे कहा कि हम उन 45 से 60 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेंगे जहां हमारे लोगों के वोट और जनसंख्या दोनों अधिक है। हमारा मत हमारे पक्ष में आने के कारण एआईएडीएमके को हार का मुंह देखना पड़ेगा।
मत ध्रुवीकरण का उल्टा प्रभाव पड़ा
क्या वास्तव में इसका खामियाजा सत्तापक्ष को भुगतना पड़ेगा, क्योंकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है राजनीति में कुछ भी सुनिश्चित नहीं होता। कोई जरूरी नहीं है कि थेवर समुदाय का सारा वोट एआईएफबी के खाते में ही जाए। इसके अलावा राजनीतिक विश्लेषक शुभगुणराजन का कहना है कि फारवर्ड ब्लाक के मतों के ध्रुवीकरण का प्रभाव भी उल्टा पड़ सकता है। यह भी संभव है कि अन्य समुदाय के लोग प्रतिक्रिया के तहत एक साथ समर्थन में उतर जाएं।
जातिगत हिंसा में काफी वृद्धि
एआईएडीएमके तथा थेवर समुदाय के संबंधों पर चर्चा करते हुए समाज सेवी ए. माक्र्स ने कहा कि डीएमके के गैर ब्राह्मण दल होने के कारण एआईएडीएमके उनकी पक्षधर बन गई थी। यदि इतिहास पर नजर डालें तो थेवर समुदाय कांग्रेस विरोधी था। बाद में द्रविड़ दलों का साथ नहीं मिल पाने के कारण वह एआईएडीएमके के साथ हो लिए। जाति एवं लिंगभेद को लेकर संगठन चलाने वाले कार्तिक ने कहा कि पिछले कुछ सालों में धर्म एवं जातिगत हिंसा के क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई है। सही मायने में देखा जाए तो द्रविण दलों ने दक्षिणी जिलों का माहौल बिगाड़ कर रख दिया है।