साध्वी धर्मलता ने कहा कि वाणी का सदुपयोग सत्य, मधुर और हितकर बोलना है। सत्य बोलने से वाणी जीवंत हो जाती है।
चेन्नई. एसएस जैन संघ ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि वाणी का सदुपयोग सत्य, मधुर और हितकर बोलना है। सत्य बोलने से वाणी जीवंत हो जाती है। उसका प्रभाव अमोघ बन जाता है। ऐसे वचन बोलना चाहिए जो सभी को प्रिय हो। अप्रिय, कटु तीक्ष्ण वचन बोलने से हिंसा और विवाद हो सकता है। माधुर्य वचन का रस है। विग्रह बढ़ाने और मर्मघाती वाणी का प्रयोग न करे। बोलने के पहले विचार जरूरी है। बिना विचारे शब्दों का प्रयोग और शस्त्रों का प्रयोग मत करो। तीर कमान से, बात जुबान से और प्राण शरीर से निकलने के बाद वापस आने वाले नहीं है। आज समाज, घर और परिवार में क्लेश का कारण कटु वचन है। कुरुपता को बदला जा सकता है। श्याम वर्ण को कितनी ही क्रीम लगाकर सफेद नहीं किया जा सकता पर कठोर वाणी को अच्छा करके ही सुंदर, पवित्र बन सकते हैं। साध्वी सुप्रतिभा ने कहा कि दुनिया में दो चीजें प्रसिद्ध है मां की ममता और साधु की समता। मां शब्द संसार का सबसे सुंदर शब्द है। ये शब्द बीज की तरह छोटा और बरगद की तरह विशाल है। मां ममता का महाकाव्य है। मां पुण्य के बाद मिलती है। माता पिता की सेवा भगवान की सेवा है। तप से तन की शुद्धि होती है जप से मन की शुद्धि होती है और प्रार्थना से आत्मा। पर मां की सेवा से जन्म जन्मातंर की शुद्धि होती है।
आओ प्रकाश की ओर चलें
पुदुचेरी. मुनि सौम्यसागर ने कहा कि जीवन में अनेक विपदाएं आती हैं जिसके निवारण के लिए हम लगातार कोशिश करते रहते हंै। आचार्य मातुंग की तरह भक्ति में लीन रहने के लिए सारे उपसर्ग अपने आप ही लुप्त हो जाते है। अडिग भक्ति का जीता जागता उदाहरण है मांतुगाचरित्र। कोई भी परेशानी जीवन में आए तो मात्र 48 बार पहला काव्य का जाप कर लें, बस पल भर में सारी परेशानियां भाग खड़ी होती दिखाई पड़ती है। अरिजीत सागर ने इस अवसर पर कहा कि जो भी आठ अंगों के साथ धर्म अध्ययन की शुरुआत करते हैं। उन्हें शब्दाचार, अर्थाचार, उव्याचार, बहुमानाचार, विनायाचार और कालाचार, उपधानाचार, निन्हवाहचार का ध्यान रखना चाहिए। हमे दिन में तीन बार सामायिक करना चाहिए। इन आठ अंगों के साथ शास्त्र का अध्ययन करने से ही तीर्थंकर पद्धति का बंध होता है।