
Cemetery (Representational Photo)
मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने हाल ही में एक बड़ा फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया कि कोई भी बिशप या चर्च अधिकारी किसी कब्रिस्तान को खेत की तरह नहीं जोत सकते। मद्रास हाईकोर्ट ने इस फैसले में साफ कर दिया कि चर्च के बिशप या किसी भी अधिकारी के पास कब्रिस्तान को खेत की तरह जोतने या मौजूदा कब्रों को मनमाने ढंग से हटाने का हक़ नहीं है। कोर्ट ने इस मामले को चर्च समुदाय की साझा धरोहर मानते हुए बिशप की मनमानी पर रोक लगाई है।
दरअसल तमिलनाडु के नागरकोइल स्थित एक चर्च कब्रिस्तान से जुड़े मामले की वजह से विवाद शुरू हुआ। स्थानीय चर्च प्राधिकारियों द्वारा पुरानी कब्रों को हटाकर नए सिरे से कब्रिस्तान का इस्तेमाल करने की कोशिश की गई। इस पर आपत्ति जताते हुए याचिकाकर्ता ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि कब्रिस्तान को नष्ट करके उसे जोतना या दूसरा कोई इस्तेमाल करना समुदाय की भावनाओं के खिलाफ है।
मद्रास हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि कब्रिस्तान को चर्च समुदाय की साझा संपत्ति माना जाएगा और ऐसे में इसे ट्रस्ट के रूप में संरक्षित किया जाना चाहिए। बिशप को 'टाइटल होल्डर' कहने मात्र से उन्हें कब्रिस्तान पर पूरा अधिकार या मनमाने ढंग से इसे जोतने या दूसरे बदलाव करने का कोई अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने कहा कि कब्रिस्तान धार्मिक और भावनात्मक महत्व का स्थान है, जिसमें बदलाव करना गलत है।
मद्रास हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि मौजूदा कब्रों को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। साथ ही राज्य सरकार और जिला प्रशासन को भी इस फैसले का अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
Updated on:
23 Dec 2025 01:16 pm
Published on:
23 Dec 2025 01:15 pm
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