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सभी प्रजातियों का संरक्षण सरकार का फर्ज, वित्तीय बाधा कारण नहीं : मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट का फैसला : एमटीआर के दायरे में बसे 495 ग्रामीणों के विस्थापित का आदेश

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एमटीआर के दायरे में बसे 495 ग्रामीणों के विस्थापित का आदेश

एमटीआर के दायरे में बसे 495 ग्रामीणों के विस्थापित का आदेश

चेन्नई. मद्रास हाईकोर्ट ने मुदुमलै टाइगर रिजर्व (एमटीआर) के संरक्षित क्षेत्र में आने वाले तेंगुमरहदा गांव के 495 निवासियों को विस्थापित करने के लिए केंद्र सरकार से वित्त कोष जारी करने को कहा है।

न्यायाधीश एन. सतीश कुमार और न्यायाधीश डी. भरत चक्रवर्ती की न्यायिक पीठ ने कहा कि सरकार का प्राथमिक वैधानिक कर्तव्य है कि सभी प्रजातियों का संरक्षण करे। वित्तीय कोष की अनुपलब्धता इस तरह के कर्तव्य निर्वाह के आड़े नहीं आ सकती है।

मद्रास हाईकोर्ट ने सभी दलीलों को स्वीकार तो किया लेकिन कहा कि रिजर्व में बसे ग्रामीणों को विस्थापित किया जाना बेहद जरूरी है। यह ग्रामीणों और बाघों के अलावा प्रजातियों की सुरक्षा से जुड़ा मसला है। सुप्रीम कोर्ट अपने निर्णयों में स्पष्ट कर चुकी है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन जीने का अधिकार सभी प्रजातियों को प्राप्त है। ऐसे में केंद्र सरकार का फर्ज है कि वह इस अधिकार की रक्षा करे।

तमिलनाडु सरकार ने इस वाद में अपनी भूमिका सीमित करते हुए कोर्ट को बताया कि वन्य भूमि के अन्य उपयोग की अनुमति देने को लेकर उसका रुख बड़ा संरक्षणात्मक होता है इसलिए क्षतिपूर्ति किए जाने के सिलसिले में उसका अंश अत्यंत कम है। कैम्पा की ओर से दलील दी गई कि उसके पास 8.15 करोड़ रुपए है। इस राशि का उपयोग भी राष्ट्रीय प्राधिकरण से अनुमति प्राप्त योजनाओं में ही किया जा सकता है।

दो महीने का समय

एनटीसीए के पास कोष का अभाव

अदालत का यह आदेश इस सूचना के बाद आया कि एनटीसीए के पास तेंगुमरहदा गांव के निवासियों के विस्थापन के लिए धन नहीं है। जबकि तमिलनाडु वन विभाग ने 2011 में ही इन ग्रामीणों को विस्थापित करने की योजना बना ली थी। तमिलनाडु सरकार ने विस्थापन योजना की लागत 70 करोड़ रुपए आंकी थी। लेकिन एनटीसीए का कोर्ट में जवाब था कि उसके पास केवल इतनी ही राशि है जिससे वह सामान्य खर्चे और सदस्यों को वेतन दे सके। उसने हाईकोर्ट से अनुरोध किया था कि इस मामले में तमिलनाडु वन विस्तार प्राधिकरण और कैम्पा को भी पक्षकार के रूप में जोड़ा जाए।

न्यायालय ने केंद्र सरकार के क्षतिपूरक वन विस्तार कोष प्रबंधन व नियोजन प्राधिकरण (कैम्पा) को निर्देश दिया कि वह अगले दो महीने के भीतर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को वित्तीय राशि जारी करे ताकि वह ग्रामीणों को वहां से विस्थापित कर सके। बाघ संरक्षण प्राधिकरण उसे प्राप्त राशि तमिलनाडु प्रधान मुख्य वन संरक्षक को देगा जिनके मार्फत विस्थापन होगा।