
Chhatarpur
नीरज सोनी
छतरपुर। सिलोटु, सिल्वाटु, सिलौटा, सिलोटी या सिलबट्टा। मसालों को पीसने की इस पारंपरिक 'मशीनÓ से सभी परिचित हैँ। बुंदेलखंड के घरों में आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। छतरपुर शहर में आधा दर्जन मजदूर पारंपरिक रूप से नियमित सिल-बट्टा बनाने का ही काम करते हैं। सिल-बट्टा को टांकने की कला ऐसे परिवारों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है। शहर के जवाहर रोड, सर्किट हाउस रोड और एसपी ऑफिस के आगे सागर रोड पर सिल-बटï्टा बनाने वाले परिवार एक साथ इसी काम को करते हैं।
सिलबट्टा यानि पत्थर का ऐसा छोटा चोकौर या लंबा टुकड़ा जिससे मसाला आदि पीसा जाता है। सिल और पीसने का लोढ़ा। जो बड़ी सिल होती है उसे सिलौटा और जो छोटी सिल होती है उसे सिलोटी कहा जाता है। सिल और बट्टा होते अलग अलग हैं लेकिन एक के बिना दूसरे का कोई वजूद नहीं है। सिल जमीन पर रखा पत्थर जिस पर बट्टे से अनाज पीसा जाता है।
सिलोटु में पीसे गए मसालों से सब्जी का स्वाद ही बदल जाता है और यह भोजन स्वास्थ्य के लिए भी उत्तम होता है। लेकिन आजकल पिसे हुए मसालों का जमाना है या फि र सिलबट्टे की जगह मिक्सी ने ले ली है। इसके बाद भी बुंदेलखंड के घरों में सिल-बट्टा का राज खत्म नहीं हुआ है। ८० वर्षीय शंकर दादा सिल टांकने का काम करते हैं। वे गांव-गांव जाकर इस काम को करके अपना जीवकोपार्जन चलाते हैं। चरखारी निवासी शंकर दादा को पता है कि कितने दिन बाद किसके घर जाकर सिल टांकनी है। वे उसी हिसाब से गांव-कस्बों में जाकर गलियों में अपने ग्राहकों के घर पहुंच जाते हैं। शंकर दादा बताते हैं कि शहरों में जरूर सिल-बटï्टा की जगह मिक्सी मशीन ने ले ली है, लेकिन गांवों-कस्बों में आज भी लोग सिल-बट्टा पर मसाला पीसकर या चटनी बनवाकर भोजन में शामिल करते हैं।
यह है सिल-बट्टा का सिद्धांत :
आयुर्वेद पुरोधा वाग्भट्ट ने अपने चौथे सिद्धांत से हमें सिलोटा के महत्व का पता चल जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार, Óकोई भी कार्य यदि अधिक गति से किया जाता है तो उससे वात (शरीर के भीतर की वह वायु जिसके विकार से अनेक रोग होते हैं) उत्पन्न होता है।Ó कहने का मतलब है कि यदि हम किसी खाद्य सामग्री को बहुत तेजी से पीसकर तैयार करते हैं तो उसके सेवन से वात पैदा होता है। भारत में वैसे भी 70 प्रतिशत रोग वातजनित हैं। रसोई में जो भी प्रक्रियाएं अपनाई जाएं वे गतिमान और सूक्ष्म नहीं होनी चाहिए। अगर आटा धीरे-धीरे पिसा हुआ होता है यानि उसे घर में पीसा जाता है तो वह कई गुणों से भरपूर होता है लेकिन चक्की में आटा बहुत तेजी से पीसा जाता है। यही सूत्र मसालों पर भी लागू होता है और इसलिए सिलबट्टा में पीसे गये मसालों को अधिक गुणकारी माना जाता है। असल में घर की चक्की और सिलबट्टा के उपयोग से भोजन का स्वाद बढऩे के साथ स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है और इनके उपयोग करने वाले का भी समुचित व्यायाम हो जाता है। लेकिन अब बिजली से चलने वाली चक्की और मिक्सी के प्रयोग से भोजन का स्वाद कम हो गया और भोजन भी पौष्टिकता से भरपूर नहीं है। लोग मिक्सी से भोजन की पौष्टिकता पर पड़ रहे कुप्रभावों से भी अवगत हैं लेकिन इसके बावजूद दौड़ती भागती जिंदगी में मिक्सी रानी का पूरा दबदबा है। उसके सामने सिलबट्टा 'बेचाराÓ बन गया है जबकि गुणों के मामले में वह बादशाह है।
सिल-बट्टा में पिसे मसाला-चटनी से सेहत को फायदा :
1. टेस्ट : सिल-बट्टा में मसाला पीसने से इनकी खुशबू भी मसालों में मिल जाती है जिससे उसका स्वाद बढ़ जाता है। ये जड़ी-बूटियों और मसाले में तेल जारी करती हैं जिससे इनका स्वाद और ज्यादा बढ़ जाता है।
2. गर्मी पैदा नहीं होती है : इलेक्ट्रिक ब्लेंडर में मसाले पीसने से गर्मी जारी होती है जिससे उसके स्वाद पर बदल जाता है। जब आप ब्लेंडर में अदरक लहसुन पीसते हैं, तो गर्मी से लहसुन का स्वाद कड़वा हो जाता है। जबकि सिल बट्टा पर गर्मी पैदा नहीं होती है।
3. साबुत मसाले पीसे जाते हैं : ब्लेंडर में चीजों को काटकर पीसना पड़ता है जबकि सिल बट्टा पर सब चीजों को साबुत पीसा जाता है जिससे चीजों के तेल और फाइबर भी पीसे जाते हैं। यही कारण है कि सिल बट्टे पर बनने वाली चटनी का ग्राइंडर से ज्यादा बेहतर स्वाद होता है।
4. हाथों का इस्तेमाल : ब्लेंडर या ग्राइंडर में आप चीजों को डालकर एक दो मिनट में पीस लेते हैं जबकि सिल बट्टा या ओखली मूसल में आपको काफी देर तक हाथ चलाना पड़ता है। इससे आपको पता होता है खाने के लिए कैसा मसाला ठीक रहेगा।
5. एक्सरसाइज : जाहिर है सिल बट्टा या ओखली मूसल पर आपको काफी देर तक हाथों का इस्तेमाल करना होता है जिससे आपकी अच्छी खासी एक्सरसाइज हो जाती है। शायद यही कारण है कि आपकी दादी के हाथ, कंधे और बाहें इतनी मजबूत हैं।
सिल बट्टा के उपयोग के यह भी है फायदे :
1. सिल बट्टा पत्थर से बनता है। पत्थर में कई बार के खनिज भी होते हैं और इसलिए सिलबट्टा में मसाले पीसने से ये खनिज भी उनमें शामिल होते रहते हैं जिससे न सिर्फ स्वाद में वृद्धि होती है बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी उत्तम होता है।
2. सिल बट्टा में मसाले पीसते वक्त व्यायाम होता है उससे पेट बाहर नहीं निकलता। इससे विशेषकर इससे यूटेरस की बहुत अच्छी कसरत हो जाती है। महिलाएं पहले हर रोज सिल बट्टा का उपयोग करती थी और इससे तब बच्चे की सिजेरियन डिलीवरी की जरूरत नहीं पड़ती थी। मतलब सिलबटटे का उपयोग किया तो जच्चा बच्चा दोनों स्वस्थ।
3. सिल बट्टा आदि में सब कुछ धीरे धीरे पिसता है तथा अनाज या मसाला जरूरत से ज्यादा सूक्ष्म भी नहीं होता है। इससे वात संबंधी रोग नहीं होते हैं। मिक्सी आदि में न केवल तेजी से पिसाई होती है बल्कि वह अतिसूक्ष्म भी हो जाता है। इस तरह से वह वातकारक है।
4. सिल बट्टा का उपयोग करने से मिक्सी की जरूरत नहीं पड़ेगी जिससे बिजली का खर्च भी कम होगा।
Published on:
04 Feb 2019 03:10 pm
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