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मंच पर सांस्कृतिक, पुरातन और लोककला को किया जीवांत

छतरपुर/खजुराहो.आदिवर्त जनजातीय लोककला एवं राज्य संग्रहालय, खजुराहो में आयोजित तृतीय स्थापना वर्षगांठ समारोह के तीसरे दिन, पूरा नगर उत्सवधर्मी उल्लास और सांस्कृतिक रंगों से सराबोर हो उठा। चारों ओर उमंग, उत्साह और लोक आस्था की अनूठी छटा बिखर गई। लोक परंपराओं से सजी यह भव्य प्रस्तुति जनसहभागिता का जीवंत और प्रेरक उदाहरण बन गई । दोपहर 4 बजे मातंगेश्वर महादेव मंदिर से निकली भव्य कला यात्रा ने मानो पूरे नगर में उत्सव की अलख जगा दी। रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों में सजे कलाकार, ढोल–नगाड़ों की गूंज, लोकवाद्यों की मधुर स्वर लहरियां और थिरकते कदमों ने वातावरण को उल्लास और ऊर्जा से भर दिया।

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प्रस्तुति देते कलाकार

प्रस्तुति देते कलाकार

ढोल–नगाड़ों की गूंज से दर्शक हुए भाव-विभोर

छतरपुर/खजुराहो.आदिवर्त जनजातीय लोककला एवं राज्य संग्रहालय, खजुराहो में आयोजित तृतीय स्थापना वर्षगांठ समारोह के तीसरे दिन, पूरा नगर उत्सवधर्मी उल्लास और सांस्कृतिक रंगों से सराबोर हो उठा। चारों ओर उमंग, उत्साह और लोक आस्था की अनूठी छटा बिखर गई। लोक परंपराओं से सजी यह भव्य प्रस्तुति जनसहभागिता का जीवंत और प्रेरक उदाहरण बन गई । दोपहर 4 बजे मातंगेश्वर महादेव मंदिर से निकली भव्य कला यात्रा ने मानो पूरे नगर में उत्सव की अलख जगा दी। रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों में सजे कलाकार, ढोल–नगाड़ों की गूंज, लोकवाद्यों की मधुर स्वर लहरियां और थिरकते कदमों ने वातावरण को उल्लास और ऊर्जा से भर दिया।

जैसे-जैसे यह शोभायात्रा नगर भ्रमण करते हुए संग्रहालय परिसर पहुंची, पूरा क्षेत्र उत्सव के रंग में रंग गया। सायंकालीन सत्र में आयोजित लोकराग कार्यक्रम ने इस सांस्कृतिक पर्व को चरम पर पहुँचा दिया। सुर, ताल और लोक भावनाओं के अद्भुत संगम ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। तालियों की गूंज, मुस्कुराते चेहरे और झूमता जनसमूह इस बात का प्रमाण थे कि यह आयोजन केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि जन-जन के हृदय में बस जाने वाला सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है । लोकराग की प्रथम प्रस्तुति छतीसगढ़ से आये दिनेश कुमार जांगडे एवं साथी कलाकार द्वारा पंथी नृत्य की प्रस्तुति दी ।

अगली प्रस्तुति दिलीप यादव द्वारा बुंदेलखंड का पारंपरिक लोक नृत्य का मंचन किया बुन्देलखण्ड के लोकनृत्य का सम्बन्ध हमारे देश की कृषक चरवाहा संस्कृति के साथ है। भारत के महानायक श्री कृष्ण के जीवन और लीला चरित से स्वयं को जोड़ लिया। आज भी उत्तर भारत के अनेक अंचलों में दीपावली के समय यादव लोग नृत्य करते हैं साथ ही गोपाल कृष्ण की लीलाओं विशेषकर किशोर लीलाओं के गीत गाते हैं। बुन्देलखण्ड में नृत्य दीपावली से पन्द्रह दिन यानी पूर्णिमा तक चलते हैं।