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छतरपुर

चार दिवसीय छठ महापर्व आज से, संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है निर्जला उपवास

छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। मुख्य रूप से बिहार, उत्तप्रदेश के पूर्वांचल इलाके से जुड़े लोग इस पर्व को मनाते हैं,छतरपुर में बिहार और पूर्वांचल से जुड़े लोग इस पर्व को मनाते हैं।

छतरपुरNov 05, 2024 / 10:49 am

Dharmendra Singh

chatha

छठ पूजा

छतरपुर. छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। मुख्य रूप से बिहार, उत्तप्रदेश के पूर्वांचल इलाके से जुड़े लोग इस पर्व को मनाते हैं,छतरपुर में बिहार और पूर्वांचल से जुड़े लोग इस पर्व को मनाते हैं। प्रताप सागर तालाब और बिजावर नाका, पन्ना रोड,संकट मोचन इलाके में घरों में लोग इस पर्व को उत्सव के रुप में मनाते हैं। प्रताप सागर तालाब पर इस व्रत को करने वाले सामूहिक रुप से डूबते और फिर उगते सूर्य को अध्र्य देते हैं।

ये है पौराणिक मान्यता


पंडित श्याम बिहारी बताते हैं कि, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठी मइया सूर्य देव की बहन हैं। छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ मइया प्रसन्न होती हैं,। ऐसी मान्यता है कि, छठ माई संतान प्रदान करती हैं। सूर्य जैसी तेजमान संतान के लिए भी यह उपवास रखा जाता है। इसके अलावा घर परिवार को सुख शांति व धन धान्य से संपन्न करती हैं। सूर्य देव की आराधना का यह पर्व कार्तिक शुक्ल षष्ठी पर मनाया जाता है। कार्तिक छठ पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है।

चार दिन का है पर्व


छठ पूजा चार दिन का पर्व है,जो मुख्य रुप से कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है,लेकिन इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं, शाकाहारी भोजन लेते हैं। व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं। दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है,शाम को व्रत रखने वाला भोजन ग्रहण करता है, इसे खरना कहा जाता है। इस दिन अन्न व जल ग्रहण किए बिना उपवास किया जाता है। शाम को चाव व गुड़ से खीर बनाकर खाई जाती है। नमक और शक्कर का इस्तेमाल नहीं किया जाता। तीसरे दिन यानि षष्ठी के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इसमें ठेकुआ विशेष होता है। प्रसाद व कई तरह के मौसमी फल लेकर बांस की टोकरी में सजाये जाते हैं। टोकरी की पूजा कर सभी व्रती सूर्य को अघ्र्य देने के लिये तालाब, नदी या घाट आदि पर जाते हैं। स्नान कर डूबते सूर्य की आराधना की जाती है। उसके अगले दिन यानि सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोबारा किया जाता है।

मुख्य पूजा षष्ठी को


छठ पूजा का मुख्य दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि होती है। इस दिन छठ पूजा होती है । इस दिन शाम को सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। इस बार छठ पूजा 20 नवंबर को है। सूर्यादय 06 बजकर 48 मिनट पर होगा और सूर्योस्त 05 बजकर 26 मिनट पर होना है। छठ पूजा के लिए षष्ठी तिथि का प्रारम्भ 19 नवबंर की रात 09 बजकर 59 मिनट पर हो रहा है, जो 20 नवंबर की रात 09 बजकर 29 मिनट तक होगा। छठ पूजा का अंतिम दिन कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि होती है। इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य देव को अघ्र्य अर्पित किया जाता है। उसके बाद पारण कर व्रत को पूरा किया जाता है।

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