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बाहर के डॉक्टरों के नाम पर निजी अस्पतालों का लाइसेंस ले रहे छतरपुर जिला अस्पताल के सरकारी डॉक्टर

कुछ सरकारी डॉक्टर छतरपुर जिले के विभिन्न निजी अस्पतालों के संचालन में गुपचुप तरीके से शामिल हैं। इन डॉक्टरों ने बाहरी डॉक्टरों के नाम पर अस्पतालों का लाइसेंस लिया है, जबकि असल में इन अस्पतालों का संचालन और देख-रेख वही सरकारी डॉक्टर कर रहे हैं।

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जिला अस्पताल में डॉक्टर का इंतजार करते मरीज

छतरपुर. जिले में सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा एक बड़ा और विवादित मामला सामने आया है, जिसमें आरोप है कि ये डॉक्टर बाहरी डॉक्टरों के नाम पर निजी अस्पतालों का लाइसेंस हासिल कर रहे हैं और खुद इसके संचालन में शामिल हैं। यह मामला तब प्रकाश में आया जब हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेन्द्र धमनया के ह्देश हॉस्पिटल में मरीज का ऑपरेशन करने के मामले खुलासा किया। जिला अस्पताल में कार्यरत सरकारी डॉक्टर अपने निजी लाभ के लिए सरकारी नौकरी का दुरुपयोग कर रहे हैं।

आधा दर्जन अस्पतालों का संचालन


सूत्रों के मुताबिक, कुछ सरकारी डॉक्टर छतरपुर जिले के विभिन्न निजी अस्पतालों के संचालन में गुपचुप तरीके से शामिल हैं। इन डॉक्टरों ने बाहरी डॉक्टरों के नाम पर अस्पतालों का लाइसेंस लिया है, जबकि असल में इन अस्पतालों का संचालन और देख-रेख वही सरकारी डॉक्टर कर रहे हैं। यह मामला न केवल सरकारी नीतियों का उल्लंघन है, बल्कि यह स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति भी गंभीर चिंता का विषय बन गया है। जिला अस्पताल के इन डॉक्टरों का कथित तौर पर आधा दर्जन से अधिक निजी अस्पतालों में भागीदारी है, और इन अस्पतालों में इलाज के नाम पर आम जनता से भारी शुल्क लिया जा रहा है। इन अस्पतालों का संचालन न केवल छतरपुर बल्कि आसपास के इलाकों में भी हो रहा है, जिससे मरीजों को इलाज की उचित सुविधाएं मिलनी मुश्किल हो गई हैं।

कानूनी परेशानियों से बचने के लिए दूसरों के नाम का सहारा


इन डॉक्टरों ने बाहरी डॉक्टरों के नाम का इस्तेमाल करके निजी अस्पतालों को वैधता दी है, ताकि सरकारी डॉक्टरों को कानूनी परेशानियों से बचाया जा सके। इस तरह, सरकारी डॉक्टर बिना किसी डर के अपने निजी अस्पतालों का संचालन कर रहे हैं, जबकि सरकारी अस्पतालों में मरीजों को पर्याप्त देखभाल और सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। इसके अलावा डॉक्टर अपनी सरकारी नौकरी से अधिक समय निजी अस्पतालों में काम करने में बिता रहे हैं। यह मरीजों के इलाज और सरकारी अस्पतालों की सेवा में भी कमी का कारण बन रहा है।

स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी और जांच की मांग


इस मामले में स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। अधिकारियों ने अभी तक इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है, जिससे डॉक्टरों के इस गलत काम पर कोई रोक नहीं लग पा रही है। अब स्थानीय लोग और सामाजिक कार्यकर्ता इस मामले में जांच की मांग कर रहे हैं और उनका कहना है कि यदि इस पर तत्काल कार्रवाई नहीं की गई, तो स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर और खराब हो सकता है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि सरकारी डॉक्टरों के इस कृत्य से न केवल सरकारी अस्पतालों की छवि धूमिल हो रही है, बल्कि आम जनता को भी इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। इन डॉक्टरों के चलते निजी अस्पतालों में इलाज की फीस बढ़ गई है और गरीब तबके के लोग अच्छे इलाज से वंचित रह जा रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मामले को गंभीर बताते हुए कहा कि यह सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के साथ एक बड़ा धोखा है। उनका कहना है कि सरकारी डॉक्टरों को अपनी सेवा केवल सरकारी अस्पतालों में देनी चाहिए, ताकि सरकारी अस्पतालों का स्तर बेहतर हो और लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं की उचित सुविधा मिल सके।

पत्रिका व्यू


छतरपुर में सरकारी डॉक्टरों द्वारा निजी अस्पतालों का संचालन करने के इस मामले ने स्वास्थ्य सेवाओं पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। अगर यह मामला सही साबित होता है तो यह न केवल सरकारी नौकरी का दुरुपयोग है, बल्कि जनता के साथ धोखाधड़ी भी है। अब देखना यह है कि प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है और इस पर रोक लगाने के लिए क्या उपाय किए जाते हैं।


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