
परिवार के साथ सिल टांकते हुए
छतरपुर. 1 मई की तारीख विश्व में मजदूरों के लिए समर्पित है। इस दिवस पर उनकी भलाई के लिए भले ही बड़ी-बड़ी बातें कहीं गई हों पर असल मजदूरों को इससे कोई सरोकार तक नहीं रहा। उनका यह दिन एक सामान्य दिन की तरह ही गुजरा। जिंदगी बसर के लिए उन्हें इस दिन भी हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ी। मजदूर इस दिवस से अंजान अपनी दिहाड़ी बनाने में जुटे रहे। इन लोगों को चिंता रही तो बस इतनी की उन्हें शाम को मजदूरी मिल जाए और वह जरूरत का सामान खरीदकर घर ले जा सकें । सरकार द्वारा मजदूरों के हित के लिए श्रम विभाग के माध्यम से चलाई जा रही प्रसूति सहायता, विवाह सहायता, चिकित्सा सहायता, शिक्षा प्रोत्साहन, मृत्यु व अत्येष्टि सहायता जैसी योजनाओं का न तो इन मजूदरों को लाभ मिलता है न इन योजनाओं के बारे में उन्हें कोई जानकारी है। कर्म को ही पूजा समझने वाला श्रमिक वर्ग श्रम कल्याण सुविधाओं के लिए आज भी तरस रहा है।
सुबह 9 बजे का समय है, पन्ना रोड पर सीएम राइज स्कूल के भवन निर्माण में कई मजदूर काम कर रहे हैं। गर्मी में खुले आसमान के नीचे काम कर रहे मजदूर बृजेश यादव से मजदूर दिवस के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, कि उन्हें नहीं पता कि आज का दिन किस मायने में रोज के दिनों से अलग है। आज मेहनत करेंगे तभी, आज पेट भरेगा,इसलिए उनके लिए सारे दिन एक जैसे हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिला है। योजनाओं के लाभ के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने से अच्छा है मजदूरी करके अपना भरण पोषण करना है। दफ्तर के चक्कर लगाने से लाभ मिले न मिले, पर मजदूरी तो मिल ही जाती है।
सुबह साढे बजे का समय है। किशोर न्यायालय वाले मार्ग पर मजदूर शहर की ओर जाते मिले। ये लोग शहर के विभिन्न निर्माण कार्यो में मजदूरी कर रहे हैँ। मजदूर राजेन्द्र विश्वकर्मा से मजदूर दिवस के बारे में पूछा तो वे बोले- साहब हमारे लिए सारे दिन एक जैसे हैं। काम नहीं करेंगे तो क्या खाएंगे, परिवार को क्या खिलाएंगे। मजदूर शंकर भी मजदूरी करने शहर जाते हुए बोले- मजदूर दिवस की उन्हें जानकारी नहीं है। उनके लिए काम पर जाना सबसे जरूरी है। इसी तरह मजदूर जगन विश्वकर्मा ने कहा कि हम वोट तो डालते हैं। लेकिन सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है। हम रोज मजदूरी न करें तो खाएंगे क्या? इसलिए हमारे लिए मजदूर दिवस रोज के दिन जैसा ही है।
शहर के जवाहर मार्ग पर अशोक आदिवासी व उनकी पत्नी नीतू आदिवासी अपने बच्चों के साथ सिल टांकने का काम करते हैं। उनके चार बच्चे मां-बाप के साथ उनके काम में जितना बन सके, उतनी मदद कर रहे हैं। अशोक ने बताया कि सबसे छोटा बेटा 3 साल और सबसे बड़ा बेटा 14 साल का है, उनके परिवार का न तो मतदाता लिस्ट में नाम है, न ही उनके बच्चे पढ़ते हैं। 1 मई को पूरा परिवार सिल टांकने का काम कर रहा था, उन्हें इस बात का पता ही नहीं था कि आज का दिन उनके नाम समर्पित है। वे कहते हैं कि, मेहनत नहीं करेंगे तो परिवार का पेट कैसे पालेंगे?
Published on:
02 May 2025 10:23 am
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