चरण पादुका को कहा जाता है मध्यप्रदेश का जालियावाला बाग14 जनवरी 1931 को सभा पर बरसाई गई थी गोलियांबुंदेलखंड का जालियाबाला बाग नरसंहार दिवस आज
छतरपुर। जिले के चरणपादुका स्थल पर मकर संक्रांति के मेले में सभा कर रहे लोगों पर मशीनगन और बंदूकों से गोलियां बरसाकर नरसंहार की घटना को अंजाम दिया गया था। इस नरसंहार को मध्यप्रदेश का जालियावाला नरसंहार का नाम दिया गया। सत्याग्रह से डरे हुए अंग्रेजों ने बुंदेलखंड के इतिहास के सबसे बड़े नरसंहार की घटना को अंजाम दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद चरण पादुका बलिदान स्थल पर एक स्मारक बनाया गया, जहां पर लगे हुये एक बोर्ड में बलिदानी देशभक्तों के नाम अंकित हैं। जिनमें अमर शहीद सेठ सुंदर लाल गुप्ता गिलोंहा, धरम दास मातों खिरवा, राम लाल गोमा, चिंतामणि पिपट, रघुराज सिंह कटिया, करण सिंह, हलकाई अहीर, हल्के कुर्मी, रामकुंवर, गणेशा चमार, लौंड़ी आदि के नाम शामिल हैं। इस शहीद स्मारक का शिलान्यास तत्कालीन केन्द्रीय रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम के द्वारा 8 अप्रैल 1978 को किया गया था। इसके बाद शहीद स्मारक चरण पादुका का अनावरण मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के द्वारा 14 जनवरी 1984 को किया गया।
इस तरह भड़की थी आग
30 के दशक में महात्मा गांधी का असहयोग आन्दोलन पूरे उफान पर था, गांधी की दांडी यात्रा ने अंग्रेज सरकार के सामने कठिन चुनौती पैदा कर दी थी। पूरे देश की तरह ही बुंदेलखंड में भी सत्याग्रह आन्दोलन की चिंगारी भड़क उठी थी। अक्टूबर 1930 को छतरपुर जिले के चरणपादुका नामक कस्बे में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया। इसमें लगभग 60 हजार लोग शामिल हुए और आन्दोलनकारी नेताओं ने अपने भाषणों में स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने तथा लगान का भुगतान न करने की अपील की। इसी क्रम में सत्याग्रह की पॉलिसी पर महाराजपुर में दूसरी सभा आयोजित की गई। इस सभा की निगरानी के लिए जिला मजिस्ट्रेट खुद सभा स्थल पर मौजूद था। उसकी उपस्थिति का लोगों पर उल्टा असर हुआ और आक्रोशित भीड़ ने मजिस्ट्रेट की कार पर पथराव कर दिया। मजिस्ट्रेट भीड़ के क्रोध से बड़ी मश्किल से बच पाया था। इस घटना के बाद अनेक लोगों पर मुक़दमा चलाया गया, कई लोगों पर जुर्माना भी लगाया गया, कई लोगो को को सजा भी हुई। इसके बाद जन आक्रोश और बढ़ गया और कर का भुगतान न करने का अभियान दूसरे क्षेत्रों में भी फैलता चला गया। हालत यहां तक पहुंच गए कि अंग्रेजों को लगान देने से इनकार करने पर राजनगर के पास खजुआ गांव में लोगों पर सरकारी कारिंदों ने गोलियां बरसाई, इससे लोग भड़क गए और जबाब में पत्थरों और लाठियों से उन्होंने भी हमला कर दिया। सत्याग्रह का आंदोलन इसी तरह से आगे बढ़ता रहा, अक्टूबर माह में बेनीगंज बांध के पास एक विशाल आमसभा का आयोजन किया गया, जिसमें 80 हजार लोगों ने भाग लिया। लगान के विरोध में 4 जनवरी को आन्दोलन के नेता लगभग 2000 लोगों के साथ नौगांव जाकर गवर्नर जनरल से मिले। गर्वनर जनरल ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि, लगान तो देना ही पडेगा।
सभा पर दागी मशीनगन से गोलियां
गर्वनर जनरल के जबाव के बाद तो अंग्रेजी हुकूमत के कारिंदे बेलगाम ही हो गए। लवकुशनगर से 10 किलोमीटर दूर नौगांव ब्लॉक के सिंहपुर में उर्मिल नदी किनारे चरणपादुका स्थल पर लोग 14 जनवरी 1931 मकरसंक्रांति के दिन अंग्रेजी हुकूमत द्वारा अनर्गल टैक्स लगाए जाने के विरोध में सभा कर रहे थे। नेता पं.रामसहायं तिवारी और ठाकुर हीरा सिंह की गिरफ्तारी के बाद सभा की अध्यक्षता सरजू दउआ गिलौंहा कर रहे थे। इसकी भनक लगते ही पॉलिटिकल एजेंट कर्नल फिसर एक दर्जन से अधिक वाहनों पर सेना लेकर पहुंचा और मेले में हो रही सभा को सेना ने घेर लिया। आमसभा में शामिल लोगों पर बेरहमी से मशीनगनों और बंदूकों से गोलियों की बौछार कर दी गई। इस गोलीकांड में 21 लोगों की मौत हो गई और 26 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। इस नरसंहार के बाद भी अंग्रजों का अत्याचार नहीं रुका, सत्याग्रह आंदोलन को दबाने के लिए 21 लोग गिरफ्तार किए गए, उनमें से सरजू दउआ को चार वर्ष तथा बाकी 20 लोगों को तीन-तीन वर्ष के सश्रम कारवास की सजा सुनाई गई।