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भीषण गर्मी में भी मटका पद्धति से हरे भरे रहेंगे पौधे, बेहतर होगी पौधों की ग्रोथ

शहर के विभिन्न स्थानों पर अपनी गई मटका पद्धति से 12 महीने हरे रहने के साथ ही पौधों की हो रही बेहतर ग्रोथ, इससे रोज रोज पानी डालने की झंझट भी होती है खत्म

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मटका पद्धति से रोपे गए पौधे

इस तरह से रोपे जाते हैं पौधे,मटका पद्धति से रोपे गए पौधे,इस तरह से रोपे जाते हैं पौधे

छतरपुर. मार्च के बाद अपे्रल व मई में भीषण गर्मी से पौधों की रेखरेख में पानी की अधिक बर्बादी होती है और पानी देने में देरी होने पर वह सूखने लगते हैं। हल्की लापरवाही होने पर पौधे मर जाते हैं। इससे बचाने के लिए मटका पद्धति कारगर साबित हो रही है। इससे पौधे हरे भरे रहने के साथ ही उनकी ग्रोथ बेहतर हो रही है।

भीषण गर्मी के कारण पौधे नष्ट हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें नियमित रूप से पानी नहीं मिल पाता है। पानी की किल्लत होने के कारण भी लोग ध्यान नहीं दे पाते हैं। ऐसे में पौधे धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खो देते हैं। पौधों को गर्मी से बचाने के लिए मटका पद्धति का प्रयोग किया जा सकता है। मटका पद्धति का उपयोग करने वालों ने बताया कि पौधों को पानी देने की इस प्रक्रिया से जमीन और मिट्टी को कटाव से बचाया जा सकता है। इसके कई प्रयोग शहर के आसपास हो चुके हैं। मटका पद्धति से पौधों को पानी देने में पानी और समय के साथ मेहनत की भी बचत है। जिले में लोगों ने इसे अपनाना शुरू कर दिया है। बहुत ही कम संसाधन और सरल सी इस तकनीक के अपनाने से ही पौधे का विकास भी तेजी से होता है। इसके जरिए फलों और सब्जियों की खेती भी की जा सकती है। इसमें सबसे कम मात्रा में पानी की खपत होती है जिससे पानी की ज्यादा से ज्यादा बचत की जा सकती है।

इस तरह काम करती है मटका पद्धति

मटका पद्धति के लिए पौधा रोपते समय जो गड्ढ़ा खोदा जाता है, उसी गड्ढ़े में कुछ दूरी पर कोई पुराना या नया मटका रख देते हैं और मटके की तली में पौधे की ओर एक हल्का छेद किया जाता है। इस छेद से होकर जूट की रस्सी पौधे की जड़ों तक पहुंचाई जाती है। अब पौधा रोपने के बाद मटके के निचले हिस्से को भी पौधे की जड़ों की तरह खोदी गई मिट्टी से ढ़क दिया जाता है। जिसके बाद पौधे को लगातार नमी मिलती रहती है और पौधा भीषण गर्मी में भी हरा भरा रहता है। इस तरह पानी, समय और मेहनत की बचत हो जाती है। साथ ही पौधे की बढऩे की गति भी तेज होती है। बिना मटका पद्धति के पौधे तुलनात्मक रूप से इतनी तेजी से नहीं बढ़ पाते हैं। मटके से सिंचाई होने पर इसमें लगातार और यथोचित रूप से जड़ों को पर्याप्त पानी मिलने से पौधे का विकास समुचित ढंग से होता है। इस पद्धति से पौधे पानी की कमी या पहाड़ी और ढ़लान वाले इलाकों में भी इसका उपयोग सम्भव है।

8-10 दिन तक रहती है नमी

इस पद्धति द्वारा काफी पानी की बचत की सकती है। बताया जा रहा है कि एक बार बाल्टी भर पानी देने के बाद सामान्य दिनों में अगले 8 से 10 दिनों तक दोबारा पानी देने की जरूरत नहीं होती है। कम पानी वाले इलाकों और शहरी क्षेत्र में भी यह पद्धति उपयोगी है। गर्मी के दिनों में जब अधिकांश क्षेत्र में पानी की किल्लत आने लगती है, तब भी इस तरीके से लगाया गया पौधा कम पानी में भी जीवित रह पाने में सक्षम होता है।

शहर में रोपे गए हैं इस पद्धति से पौधे

मटका पद्धति से शहर के गांधी आश्रम में रोपे गए और सफल भी हुआ। जिसके बाद शहर के आकाशवाणी तिराहा से लेकर कांग्रेश कार्यालय के सामने तक कई पौधे इस पद्धति के तहत रोपे गए और वह पौधे आज भी हरे भरे हैं। वहीं इसी को देखते हुए शहर के विभिन्न लोगों द्वारा अपने घरों और गार्डनों में इस तरीके से पौधे लगए गए हैं।

IMAGE CREDIT: UNNAT B. PACHAURI

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