
जिला पेंशन अधिकारी छतरपुर
छतरपुर. बहुचर्चित चांदी कांड और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप रिटायरमेंट के बाद भी अफसरों के गले के फांस बन गए हैं। विभागीय जांच में फंसे तत्कालीन एडीएम रामाधार सिंह अग्निवंशी, कार्यकाल के दौरान निलंबित डिप्टी कलेक्टर केएल साल्वी, यूसी मेहरा को पेंशन का लाभ नहीं मिल पाया है। इनके द्वारा की गई अनियमितताओं के चलते रिटायरमेंट के बाद भी सवाल जवाब की प्रक्रिया जारी है।
तत्कालीन एडीएम के प्रकरण में शिकायतों का पेंच पेंशन कार्यालय के अनुसार तत्कालीन अपर कलेक्टर रामाधार सिंह के कार्यकाल को लेकर मुख्यमंत्री से लेकर पीएस लेबल तक शिकायतें हुई थी। इसके चलते उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू की गई थी। इसी बीच वे सेवानिवृत्त हो गए। ऐसे में शिकायतों का निराकरण नहीं होने से पूर्व एडीएम को रिटायरमेंट के दो साल बाद भी पेंशन नहीं मिल पाई है।
पूर्व एसडीएम केएल साल्वी के कार्यकाल के दौरान सस्पेंड होने के कारण उनका पेंशन प्रकरण अधर में लटक गया है। निलंबन अवधि के चलते पुन: वेतन का निर्धारण नहीं हो पाया है। रिटायरमेंट के सात साल बाद भी राहत नहीं मिल पाई है। जानकारों का कहना है कि कार्यकाल के दौरान घोर लापरवाही से निलंबन तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर की गले का फांस बन गया है। इनके चांदी कांड में फंसने के कारण डिप्टी कलेक्टर के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई हुई थी।
पेंशन कार्यालय की जानकारी के अनुसार छतरपुर में पदस्थ तत्कालीन एसडीएम यूसी मेहरा के खिलाफ रिटायरमेंट के दो साल बाद भी विभागीय जांच जारी होने के कारण पेंशन समेत अन्य फंड रुके हुए हैं। तत्कालीन एसडीएम के खिलाफ अनियमितता एवं भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगने के बाद शासन स्तर पर जांच प्रचलित है। इस कारण उन्हें रिटायरमेंट के बाद भी पेंशन नसीब नहीं हो पाई है।
विवादों के लिए चर्चित पूर्व संयुक्त कलेक्टर बीबी गंगेले के खिलाफ भी विभागीय जांच जारी होने के कारण उनका पेंशन प्रकरण फाइनल नहीं हो पाया है। वर्तमान समय में उन्हें केवल प्रत्याशित पेंशन का लाभ ही मिल पाया है।
अपने कार्याकाल में घपले घोटाले में शामिल या श्रेय देने वाले अधिकारियों के लिए ये मामले एक बड़ा उगाहरण हैं। नौकरी के दौरान प्रशासनिक व राजनीतिक पकड़ के चलते भ्रष्टाचार के आरोप पर कार्रवाई से बचने वाले अधिकारी बाद में फंस जाते हैं। वर्तमान अधिकारियों को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि मामले दब जाते हैं और बाद में सब भूला दिया जाता। क्योंकि सर्विस के दौरान किए गए कार्यो का असर पेंशन पर भी पड़ता है। नंबर दो की मोटी कमाई के लालच में ईमानदारी व मेहनत की कमाई भी खटाई में पड़ सकती है।
ऐसे अधिकारी जिनके खिलाफ विभागीय जांच प्रचलित है, इस अवधि तक प्रत्याशित पेंशन देने का प्रावधान है। जांच की प्रक्रिया के पूर्ण होने के बाद पूर्ण पेंशन प्रकरण स्वीकृति किए जाने का नियम है।
केडी अहिरवार, पेंशन अधिकारी
Published on:
30 Aug 2024 10:50 am
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