
लोकनिर्माण विभाग के इस भवन की रजिस्ट्री की गई
शहर के कोतवाली थाना के पास शक्ति मेडिकल स्टोर के बगल में लोक निर्माण विभाग की करोड़ों की सरकारी संपत्ति हाउस ऑफ दफ्तरी की निजी व्यक्तियों के नाम रजिस्ट्री कर दिए जाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। 4000 वर्ग फीट की इस संपत्ति की बाजार कीमत नौ करोड़ रुपए बताई जा रही है। रजिस्ट्री जिन दो व्यक्तियों धीरेंद्र कुमार गौर और दुर्गेश पटेल के नाम की गई है, उनमें से एक बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री का दिल्ली से वृंदावन यात्रा प्रभारी बताया जा रहा है।
मामले के उजागर होने के बाद कलेक्टर पार्थ जैसवाल ने तत्काल संज्ञान लेकर लोक निर्माण विभाग के कार्यपालन यंत्री (एक्जीक्यूटिव इंजीनियर) आशीष भारती को जांच सौंपी है। वहीं जिला पंजीयक कार्यालय ने गंभीर अनियमितताओं के चलते रजिस्ट्री लेखक रघुनंदन पाठक का लाइसेंस निलंबित कर दिया है। साथ ही तात्कालीन सब रजिस्ट्रार कंसू लाल अहिरवार पर कार्यवाही का प्रस्ताव कलेक्टर को भेजा। जिसपर कलेक्टर ने अहिरवार को निलंबित कर दिया है।
यह भवन लोक निर्माण विभाग की भवन पुस्तिका में क्रमांक 64 पर हाउस ऑफ दफ्तरी वाला के नाम से दर्ज है। विभागीय रिकॉर्ड में यह संपत्ति 1978-79 से शासकीय उपयोग के लिए दर्ज है। वर्षों से इस भवन का किराया जमा किया जा रहा था और यह विभाग की सक्रिय सूची में मौजूद है। इसके बावजूद 13 जून 2024 में इस सरकारी संपत्ति की रजिस्ट्री धीरेंद्र गौर और दुर्गेश पटेल के नाम पर 84 लाख 54 हजार रुपए में कर दी गई। यह पूरी प्रक्रिया फर्जी दस्तावेजों और गलत डिक्री के आधार पर की गई है।
इस संपत्ति का विवाद लगभग पचास वर्षों पुराना है। आज़ादी के बाद जब राजशाही संपत्तियों की सूची तैयार की गई थी, तब यह भवन विंध्य प्रदेश सरकार के अधीन किया गया था और बाद में इसे लोक निर्माण विभाग के अधिकार क्षेत्र में शामिल किया गया। हालांकि, कुछ व्यक्तियों ने फर्जी कागजात तैयार कर भवन को निजी बताते हुए दरोगा पंडित के नाम पर दावा दायर कर दिया। 2004 में लेबर कोर्ट ने यह फैसला लोकनिर्माण विभाग के पक्ष में सुनाया, लेकिन 2005 में दावाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में अपील कर स्टे ऑर्डर ले लिया। वर्षों तक मुकदमेबाज़ी चलती रही और नवंबर 2024 में कथित तौर पर गलत दस्तावेजों के आधार पर कोर्ट से डिक्री जारी करा कर जून 2025 में रजिस्ट्री भी कर दी गई।
प्रकरण सामने आने के बाद कलेक्टर पार्थ जैसवाल ने एसडीएम अखिल राठौर को जांच के निर्देश दिए। एसडीएम ने तत्काल प्रभाव से भवन के नामांतरण पर रोक लगाने के आदेश जारी किए हैं। लोक निर्माण विभाग नेे भी हाईकोर्ट में अपील दायर करने की तैयारी शुरू कर दी है। कलेक्टर पार्थ जैसवाल ने कहा यह भवन पूरी तरह से शासकीय संपत्ति है। हाईकोर्ट के सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ डबल बेंच में अपील करेंगे। इस पूरे मामले में लोक निर्माण विभाग की गंभीर लापरवाही सामने आई है। जांच पूरी होने तक नामांतरण और अन्य कार्यवाही पर रोक रहेगी।
यह भी सामने आया है कि रजिस्ट्री तैयार करने वाले सर्विस प्रोवाइडर रघुनंदन पाठक ने रजिस्ट्री में खसरा नंबर का उल्लेख ही नहीं किया। उसने नगर पालिका के रिकॉर्ड का दुरुपयोग करते हुए संपत्ति को निजी बताते हुए रजिस्ट्री करा दी। इस गंभीर त्रुटि के चलते जिला पंजीयक जीपी सिंह ने उसका लाइसेंस निलंबित कर दिया।
पूरे मामले का खुलासा होने के साथ ही नगरपालिका के जिस रिकॉर्ड के आधार पर संपत्ति को निजी बताया जा रहा है। उस संपत्ति के नगर पालिका में दो रिकॉर्ड है। प्रॉपर्टी आईडी 2000410466 के दो दस्तावेज हैं। एक में इस संपत्ति को राकेश उपाध्याय परिवार की निजी संपत्ति बताया गया है। वहीं इसी प्रॉपर्टी आईडी के दूसरे दस्तावेज में इस संपत्ति को लोक निर्माण विभाग की संपत्ति बताते हुए काबिजदार के रूप में राकेश उपाध्याय का नाम दर्ज है।
मामले की तहकीकात से यह भी सामने आया है कि विभागीय स्तर पर पैरवी कमजोर रही। हाईकोर्ट में केस की नियमित मॉनिटरिंग नहीं की गई, जिससे निजी पक्ष के पक्ष में डिक्री पारित हो गई। सूत्र बताते हैं कि कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से संपत्ति को बचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, जबकि यह भवन नपा और नजूल दोनों के रिकॉर्ड में लोकनिर्माण विभाग के नाम से दर्ज है।
इस विवादित संपत्ति के खरीदार धीरेंद्र गौर ने अपना पक्ष रखते हुए कहा यह मामला वर्ष 1968 से कोर्ट में चल रहा था। लोक निर्माण विभाग अपने पक्ष के दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सका। कोर्ट से हमारे पक्ष में डिक्री जारी हुई है, जिसके बाद नगर पालिका के दस्तावेजों के आधार पर रजिस्ट्री कराई गई है। हालांकि, प्रशासनिक अधिकारियों ने कहा कि केवल डिक्री के आधार पर शासकीय संपत्ति का नामांतरण नहीं किया जा सकता। जब तक विभागीय स्वामित्व रिकॉर्ड नहीं बदलता, तब तक संपत्ति की रजिस्ट्री अमान्य मानी जाएगी।
लोकनिर्माण विभाग ने गुरुवार देर शाम भवन परिसर में नोटिस चिपकाकर साफ लिखा यह भवन आज भी लोक निर्माण विभाग एवं नजूल विभाग छतरपुर के अभिलेखों में शासकीय संपत्ति के रूप में दर्ज है। इसका किसी निजी व्यक्ति द्वारा स्वामित्व दावा अवैध है।
कलेक्टर ने स्पष्ट किया है कि इस मामले में नपा के कर्मचारियों की भूमिका की भी जांच होगी। एसडीएम अखिल राठौर ने निर्देश दिए हैं कि नजूल भूमि की रजिस्ट्री के समय नजूल जांच पंजी का निरीक्षण अनिवार्य किया जाए, ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाएं न हों।
यह प्रकरण केवल एक संपत्ति की रजिस्ट्री नहीं, बल्कि सरकारी अमले की लापरवाही और प्रक्रियागत ढिलाई का बड़ा उदाहरण है। विंध्य प्रदेश कालीन यह भवन अब कानूनी पेचों में फंस चुका है। वहीं, नौगांव के धीरेंद्र गौर और दुर्गेश पटेल द्वारा खरीदी गई इस संपत्ति का विवाद अब हाईकोर्ट तक पहुंच चुका है।
लोकनिर्माण विभाग के कार्यपालन यंत्री आशीष भारती ने कहा मैं हाल ही में पदस्थ हुआ हूं। 6 अक्टूबर को ही कलेक्टर ने जांच का दायित्व सौंपा है। इस केस से जुड़े दस्तावेज एकत्र किए जा रहे हैं। अगली सुनवाई में सभी रिकॉर्ड अदालत में प्रस्तुत किए जाएंगे।
Updated on:
11 Oct 2025 10:46 am
Published on:
11 Oct 2025 10:45 am
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