
जिला अस्पताल छतरपुर
छतरपुर. जिले में प्रसूताओं की असामयिक मौत और शिकायतों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। इसके लिए लचर स्वास्थ्य सेवाएं जिम्मेदार हैं। जिले में 40 डिलेवरी सेंटर हैं। विडंबना यह है कि यहां सिर्फ नर्से डिलेवरी करा रही हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि डॉक्टर हाथ तक नहीं लगाते हैं, जबकि यह काम मूलत: डॉक्टरों का है। हालही में हरपालपुर में प्रसव के लिए डॉक्टर की मदद नहीं मिलने पर नवजात की मौत की शिकायत हुई है। इसके पहले ईशानगर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर ने प्रसूता का चेकअप करना भी जरूरी नहीं समझा। इसी अस्पताल में 9 साल पहले भी दो प्रसूताओं की मौत पर बड़ा हंगामा हुआ था। कमोबेश समूचे जिले के यही हाल हैं। जिला अस्पताल भी इससे अछूता नहीं है।
डिलेवरी सेंटरों की स्थिति काफी गंभीर है। यहां ग्रामीण क्षेत्रों से प्रसूताएं बड़ी उम्मीद के साथ आती हैं, लेकिन डॉक्टरों के चेकअप नहीं करने से जोखिम उठाना पड़ता है। डॉक्टर स्वयं चेक न कर नसों पर छोड़ देते हैं। हालात यह है कि भर्ती से लेकर डिस्चार्ज तक का जिम्मा नर्स के पास रहता है। यही बड़ी वजह है कि डिलेवरी सेंटरों पर आए दिन प्रसूताओं की मौत के मामले सामने आते हैं।
यहां तक स्वास्थ्य विभाग के नवजात शिशुओं की मौत का ऑडिट तक ढंग से नहीं किया जा रहा है। विभाग के पास नवजात शिशुओं की मौत का आंकड़ा तक नहीं है, जबकि चाइल्ड डेथ एप पर इसकी जानकारी अपडेट रहना चाहिए। एक साल पहले राजनगर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भी प्रसूता की मौत के मामले में एक एएनएम को बर्खास्त और दो एएनएम को सस्पेंड किया गया था, जबकि बीएमओ और एक डॉक्टर को नोटिस देकर खानापूर्ति कर दी गई थी। ऐसी ही ईशानगर के मामले में बीएमओ और डॉक्टर को नोटिस की औपचारिकता की गई है। हरपालपुर और नौगांव में डॉक्टरों के न होने से प्रसूताओं को जान गंवानी पड़ी है।
जिला अस्पताल में नर्सों पर डिलेवरी कराने की जिम्मेदारी जिला अस्पताल के प्रसूति वार्ड में भी नर्सों का बोलबाला है। यहां भी प्रसूताओं को डॉक्टर हाथ तक नहीं लगाते हैं। सारा दारोमदार नर्सों पर रहता है। लोगों का कहना है कि कितना भी गंभीर केस आ जाए, मगर डॉक्टर कुर्सी नहीं छोड़ते हैं। प्रसूति वार्ड में चढ़ोतरी बिना डिलेवरी नहीं होती है।
स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक ईशानगर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 10 साल पहले भी दो प्रसूताओं की मौत हुई थी। अगस्त 2014 में ईशानगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के ग्राम हथनई की शीला पति भगवादास की प्रसव के दौरान मौत हो गई थी। इस मामले की जांच के लिए संयुक्त संचालक के नेतृत्व में टीम गठित हुई थी। इस मामले में बीएमओ अमित गुप्ता एवं बीसीएम वाणिष कुमार गेड़ाम को दोषी माना गया था। सीएमएचओ डॉ. वीके गुप्ता ने दोनों अधिकारियों की सेवाएं समाप्त कर दी थीं। वहीं देरी रोड में संचालित डॉ. संजना रॉबिन्सन के अस्पताल में एक प्रसूता की मौत हो गई थी। तत्कालीन सीएमएचओ डॉ. केके चतुर्वेदी ने इस अस्पताल का लाइसेंस निरस्त कर दिया था। इसके अलावा राजनगर बीएमओ विपिन खरे, बीसीएम रश्मि शर्मा और गहरगांव की संविदा एएनएम विमलेश ठाकुर को भी बर्खास्त किया गया था।
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले में पिछले एक साल में 40 हजार संस्थागत सुरक्षित प्रसव कराए गए हैं, जिसमें 10 प्रतिशत क्रिटिकल केस थे। एनआरएचएम के डीपीएम राजेंद्र खरे कहते हैं कि शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए विभिन्न स्तरों पर अभियान और कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। अस्पतालों में सुविधाओं पर फोकस किया गया है। जिला अस्पताल में एसएनसीयू, एनआरसी वार्डों को सर्वसुविधायुक्त बनाया गया है, कहीं जाकर हम इस उपलब्धि पर पहुंचे हैं। सुरक्षित प्रसव के लिए जिले के 40 प्रसव केंद्रों को सर्वसुविधायुक्त बनाया गया है। 50 जननी एक्सप्रेस संचालित हैं, जिससे 95 प्रतिशत प्रसूताओं को घर से अस्पताल तक लाया जा रहा है। जिला अस्पताल में नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एनएनसीयू) का खुलना भी है। यहां से एक साल में 3 हजार से अधिक नवजात स्वस्थ होकर जा चुके हैं। यही सबसे बड़ा कारण है कि शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। मोटे तौर पर कहें कि एक हजार नवजातों में सिर्फ 4 दम तोड़ रहे हैं।
Published on:
27 Sept 2024 10:41 am
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