छतरपुर

विश्वविद्यालय अब ज्ञान के केंद्र नहीं, बल्कि ज्ञान-सृजन के मंच बनें, यही समय की मांग है- कुलगुरु शुभा तिवारी

पत्रिका ने बात की महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय की कुलगुरु डॉ. शुभा तिवारी से, जो न केवल शिक्षा क्षेत्र की प्रख्यात विद्वान हैं, बल्कि समकालीन नेतृत्व और समावेशी सोच की प्रभावशाली प्रवक्ता भी हैं।

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Jun 21, 2025
कुलगुरु शुभा तिवारी

छतरपुर. आज जब दुनिया तेजी से डिजिटल, बहुसांस्कृतिक और अनिश्चित भविष्य की ओर बढ़ रही है, तब सवाल यह उठता है कि हमारे विश्वविद्यालय, हमारे युवा और हमारे शिक्षक कैसे खुद को उस भविष्य के लिए तैयार कर रहे हैं? इन्हीं सवालों के उत्तर जानने के लिए पत्रिका ने बात की महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय की कुलगुरु डॉ. शुभा तिवारी से, जो न केवल शिक्षा क्षेत्र की प्रख्यात विद्वान हैं, बल्कि समकालीन नेतृत्व और समावेशी सोच की प्रभावशाली प्रवक्ता भी हैं।

प्रश्न- मिलेनियल वर्कफोर्स और आने वाला दशक आपको कैसा दिखता है?

उत्तर: विश्व की वर्कफोर्स में आज 75 प्रतिशत हिस्सेदारी मिलेनियल्स की है और 2030 तक जो नौकरियां आएंगी, उनमें 85 प्रतिशत बिल्कुल नई प्रकृति की होंगी। पारंपरिक नौकरियों की जगह मल्टीडिसिप्लिनरी, टेक्नोलॉजी ड्रिवन और कस्टमाइज्ड प्रोफेशनल रोल्स होंगे। इसलिए हमें युवाओं को फिक्स स्किल सेट्स नहीं, बल्कि एडेप्टिव माइंडसेट के लिए प्रशिक्षित करना होगा।

प्रश्न: ऐसे बदलावों के लिए शिक्षा व्यवस्था को क्या दिशा लेनी चाहिए?

उत्तर- शिक्षा सिर्फ जानकारी देने का माध्यम नहीं रह गया। आज की शिक्षा को सोचने, प्रश्न करने और संवाद करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए। हमें इंटर-डिसिप्लिनरी लर्निंग, प्रोजेक्ट-बेस्ड अप्रोच और डिजिटल लर्निंग एनवायरनमेंट को शिक्षा का अभिन्न हिस्सा बनाना होगा। विश्वविद्यालय अब ज्ञान के केंद्र नहीं, बल्कि ज्ञान-सृजन के मंच बनें, यही समय की मांग है।

प्रश्न: नेतृत्व की नई परिभाषा क्या होनी चाहिए?

उत्तर- आज का नेतृत्व पोजिशनल नहीं, इमोशनल और कोलैबोरेटिव होना चाहिए। एक अच्छा लीडर वही है जो टीम को सुनता है, दृष्टिकोणों को समेटता है और उन्हें सामूहिक लक्ष्य की ओर दिशा देता है। नेतृत्व को अब यह समझना होगा कि शक्ति का वास्तविक उपयोग विभाजन में नहीं, बल्कि सहभागिता और सशक्तिकरण में है। यह सह-संरचना का युग है। सकारात्मक वातावरण का निर्माण नेतृत्व का मूल काम है।

प्रश्न: भाषाओं की भूमिका और बहुसांस्कृतिक वर्कफोर्स को आप कैसे देखती हैं?

उत्तर- भाषा अब सिर्फ संप्रेषण का माध्यम नहीं, बल्कि अवसर की कुंजी बन चुकी है। बहुभाषी व्यक्ति बहुसांस्कृतिक टीमों में सहजता से काम करता है। 21वीं सदी के वर्कप्लेस में भाषा एक सॉफ्ट स्किल नहीं, बल्कि एक स्ट्रैटेजिक टूल है। हमें छात्रों को हिंदी, अंग्रेजी, स्थानीय बोलियों और वैश्विक भाषाओं से जोडऩा होगा। आज जर्मनी, आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड जैसे तमाम देश योग्य युवाओं की तलाश में हैं। भारत को यह अवसर देखना चाहिए।

प्रश्न: विश्वविद्यालयों की भूमिका भविष्य की कार्यशक्ति गढऩे में कैसे बढ़े?

उत्तर- विश्वविद्यालयों को अब इनोवेशन हब के रूप में खुद को स्थापित करना होगा। विद्यार्थियों को इंटरनैशनल एक्सचेंज, स्टार्टअप संस्कृति, इंटर्नशिप प्रोग्राम्स और सोशल रिसर्च जैसे माध्यमों से जोड़ा जाए। साथ ही शिक्षक स्वयं को लगातार अपडेट करें, तभी वे विद्यार्थियों को समय के साथ जोड़ पाएंगे। शैक्षणिक यंत्र बदल चुके हैं। मात्र लेक्चर देना पर्याप्त नहीं है। सर्वेक्षण, साक्षात्कार, संवाद, भ्रमण, परियोजना इत्यादि पढ़ाई के अभिन्न अंग बन चुके हैं।

प्रश्न: छात्रों को आप क्या संदेश देना चाहेंगी?

उत्तर- विद्यार्थियों से मैं कहना चाहती हूं कि पाठ्यक्रम को जीवन से जोड़िए। डिग्री से ज्यादा दृष्टि और दिशा का विकास करें। वैश्विक दृष्टि आवश्यक है। विद्यार्थी ज्ञान, कौशल, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मूल्य के साथ आगे बढ़ता है तो वह किसी भी वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धा कर सकता है। याद रखिए, क्लासरूम सीमित है, लेकिन सीखने की दुनिया अनंत है।

Updated on:
21 Jun 2025 10:37 am
Published on:
21 Jun 2025 10:31 am
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