देश और दुनिया में कई ऐसे शहर एवं गांव है, जहां बावडिय़ां मिल जाएगी, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम और अधिक दूरी में होती है।
छिंदवाड़ा. देश और दुनिया में कई ऐसे शहर एवं गांव है, जहां बावडिय़ां मिल जाएगी, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम और अधिक दूरी में होती है। भारत में देवगढ़ को इकलौते ऐसे कस्बे के रूप में देखा जा रहा है, जहां बहुत कम दूरी पर अधिक बावडिय़ां मौजूद है। देवगढ़ को बावडिय़ों वाला गांव भी कह सकते हैं।
मोहखेड़ ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले देवगढ़ गांव की ऐतिहासिक बावडिय़ों के जीर्णोद्धार का काम लगातार जारी है। सफाई के दौरान परतों में निकल रहीं मिट्टी के साथ ही रहस्य की परतें भी खुल रही। रोचक और दिलचस्प तथ्य सामने आ रहे। महज तीन किमी के दायरे में अब तक 52 बावडिय़ां मिल चुकी है। प्रत्येक बावड़ी के निर्माण में दिशाओं का खास ध्यान रखा गया है। प्रत्येक में भूमिगत अलग-अलग जलस्रोत है, इससे यह साफ हो रहा कि निर्माण के दौरान भूमिगत जल का पता लगाया जाता था और उसी स्थान पर निर्माण किया जाता। आज के आधुनिक दौर में पानी पर दुनियाभर में चर्चा चल रही है, लेकिन पानी और आदमी के बीच के रिश्ते को लेकर बात नहीं हो रही। देवगढ़ की बावडिय़ां पूरे भारत में जलस्रोत का एक अच्छा उदारहण हो सकता है। बावडिय़ों का निर्माण सामूहिक इस्तेमाल के लिए किया जाता था, यह तथ्य भी निकलकर सामने आए हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए देवगढ़ की बावडिय़ों के पानी का उयोग भी भविष्य में सामूहिक रूप से किया जा सकता है।
भारत में इकलौती जगह
संरक्षण हैरिटेज कन्जर्वेशन कंसलटेंट प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर नई दिल्ली से आए मुनीष पण्डित पिछले दो दिनों से देवगढ़ की बावडिय़ों के एक-एक हिस्से को बारीकी से देख चुके। उन्होंने बताया कि वे पिछले 25 सालों से पुरातन काल की बावडिय़ों, कुंओं और महलों पर शोध कर रहे हैं। बावडिय़ों को लेकर देवगढ़ जैसी स्थिति उन्होंने पहले कभी नहीं देखी। भारत में यह इकलौती ऐसी जगह होगी जहां महज तीन किमी के दायरे में 52 बावडिय़ां मिल चुकी है और तलाश करने पर मिलती रहेगी ऐसी उम्मीद है। सबसे अच्छी बात चह है कि बावडिय़ों को खोजने के लिए गांव के लोग स्वयं आगे आ रहे, वे अब इसका महत्व समझ रहे। धरोहर को बचाने के लिए जागरूक करना बहुत जरूरी है।
पर्यटन के नक्शे पर उभरेगा देवगढ़
देवगढ़ बहुत जल्द पर्यटन के नक्शे पर उभरकर सामने आएगा। स्थानीय लोगों को कुछ इस तरह से जागरूक किया जाएगा कि वे भविष्य में भी बावडिय़ों सहेजकर रखेंगे, स्थानीय लोगों को तमाम बिन्दुओं पर प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। क्योंकि जल्द ही यह उनके लिए कई तरीकों से आए का जरिय बन चुका होगा। मप्र की सीमा और महाराष्ट्र से लगा होने के कारण यहां पर्यटन की सम्भावनाएं खूब है। एक अच्छा पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा।
बावडिय़ों से होगा जुड़ाव
स्थानीय लोगों का जब तक बावडिय़ों से जुड़ाव नहीं होगा वे उसके संरक्षण पर ध्यान नहीं देंगे। प्रयास जारी है कि लोगों को बावडिय़ों से सीधा जुड़ाव हो।
-गजेन्द्र सिंह नागेश, सीइओ, जिला पंचायत, छिंदवाड़ा