
Good news: Asia's largest market will make Lakhpati forest dwellers
छिंदवाड़ा/ मई में 41 डिग्री सेल्सियस पहुंच रहे तापमान की चिलचिलाती धूप में वनवासी जंगल की प्रमुख लघु वनोपज अचार गुठली को बीनने निकल पड़े हैं। उन्हें चार माह की बारिश के राशन के इंतजाम की चिंता है तो वहीं प्रशासन को उन्हें बिचौलिए से बचाकर इस उपज का उचित मूल्य दिलाने की। इसके लिए जिला पंचायत द्वारा 776 स्व-सहायता समूह सक्रिय किए गए हैं। ये समूह खुद वनवासियों के हैं, लेकिन उन्हें संग्रहण, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग की समझ ग्रामीण विकास विभाग के आजीविका मिशन से जुड़े अधिकारी-कर्मचारी दे रहे हैं।
इस वनोपज के चलते ही अमरवाड़ा को अचार-चिरोंजी में एशिया की सबसे बड़ी मंडी माना जाता है, जहां आदिवासी लोग अचार गुठली को पेड़ के नीचे से बीनकर लाते हैं, फिर उसे मशीन से प्रोसेसिंग कर चिरोंजी बनाया जाता है। अमरवाड़ा के अलावा हर्रई, तामिया, मोहखेड़ और जामई में भी अचार गुठली का व्यापार है। इस प्रक्रिया में व्यवसायी तो लखपति से करोड़पति हो गए, लेकिन आदिवासी की हालत जस की तस है।
समाज के भीतर महल और झोपड़ों की इस असमानता की खाई को पाटने के लिए जिला पंचायत ने इस बार वनवासियों के स्व-सहायता समूह बनाकर सक्रिय किया। इन समूहों को वनोपज खरीदी और प्रोसेसिंग में लगाया गया है। इन समूहों को आदिवासियों को सीधी मार्केटिंग से लखपति बनाने का लक्ष्य दिया गया है।
जिला पंचायत सीइओ गजेंद्र सिंह नागेश का कहना है कि इस लघु वनोपज से कभी वनवासियों को उचित मूल्य का सीधा लाभ नहीं मिला। स्व-सहायता समूहों के माध्यम से उनकी आजीविका के साथ उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने का लक्ष्य रखा गया है। हम अचार प्रोसेसिंग के बाद निकलने वाली चिरोंजी की मार्केटिंग के लिए भी प्रयासरत है।
इन स्थानों पर लगाई प्रोसेसिंग यूनिट
जिला पंचायत द्वारा इस बार तामिया, डोंगरा, अमरवाड़ा में रजोला, सोनपुर, हर्रई, बटकाखापा समेत अन्य स्थानों पर अचार से चिरोंजी बनाने की प्रोसेसिंग मशीन लगाई गईं हैं। इन मशीनों को चलाने का जिम्मा स्व-सहायता समूहों को दिया गया है। इसके बाद चिरोंजी की मार्केटिंग करने के प्रयास शुरू कर दिए गए हैं। फिलहाल दो हजार मीट्रिक टन वनोपज एकत्र करने का लक्ष्य रखा गया है। अभी 15 क्विंटल अचार गुठली एकत्र हो गई है।
Published on:
21 May 2020 06:16 pm
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