
फिल्टर प्लांट तक आने वाला रॉ वाटर।
शहर को पानी सप्लाई करने वाले फिल्टर प्लांटों में मानसून के आते ही फिटकरी का इस्तेमाल अधिक होने लगा है। रॉ वाटर की मिट्टी युक्त अशुद्धता को अलग करने के लिए प्रति घंटे दो से आठ सिल्ली तक फिटकरी डाली जा रही है। प्रत्येक सिल्ली कम से कम २० किलो की होती है। इससे पानी में अम्लीयता बढऩे लगी है। इसे देखते हुए फिल्टर प्लांट केमिस्ट की सलाह पर चूने का पावडर पानी में घोला जाने लगा है। इस चूने से अम्लीयता एवं क्षारीयता को संतुलित किया जा रहा है।
भरतादेव फिल्टर प्लांट में कार्यरत केमिस्ट सदानंद कोडापे बताते हैं कि अधिक मटमैले पानी को साफ करने के लिए अधिक फिटकरी डालनी पड़ती है, फिटकरी की अम्लीयता को कम करने के लिए क्षारीय चूने को मिलाना पड़ता है। यदि अम्लीयता बनी रह गई तो एसिडिटी जैसी समस्या हो सकती है। इसलिए पानी के पीएच मान की प्रत्येक 2 से 3 घंटे में की जाती है। रावाटर पानी की मात्रा को भी ध्यान में रखा जाता है। सामान्यत: पानी के पीएच को 6.5 से 8.5 तक होना जरूरी है।
भरतादेव फिल्टर प्लांट में 11 एवं 15.75 एमएलडी की दो है। इनमें कुलबेहरा नदी से रॉ वाटर के रूप में पानी लिया जा रहा है। इसी पानी को शुद्ध करके आधे शहर को सप्लाई किया जाता है। शेष आधे शहर की पानी सप्लाई धरमटेकरी फिल्टर प्लांट से हो रही है। मानसून में नदी से आने वाले पानी में मिट्टी की मात्रा अधिक हो जाती है, जिसे फिटकरी से साफ किया जाता है। पानी में जितनी अधिक गंदगी होगी, उतनी फिटकरी लगेगी। अधिकता से अम्लीयता बढ़ जाती है, जिसे संतुलित करना जरूरी है। उल्लेखनीय है कि शहर में करीब 43 हजार नल कनेक्शन, दो लाख से ज्यादा लोग हैं नल के पानी पर निर्भर हैं।
Updated on:
11 Jul 2025 10:34 am
Published on:
11 Jul 2025 10:33 am
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