धूल के लगातार संपर्क में रहने से सांस संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं। प्रदूषण और धूल से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया है। बच्चों और बुजुर्गों में आंखों में जलन और संक्रमण की समस्या अधिक देखने को मिल रही है। जर्जर सडक़ों पर रोजाना सफर करने वाले वाहन चालकों में पीठ और कमर दर्द की शिकायतें आम हो गई हैं। गड्ढों और उबड़-खाबड़ रास्तों से रोज सफर करने से लोग ऐसी ही कई शारीरिक समस्याओं का शिकार हो रहे हैं।
खराब सडक़ों पर ड्राइविंग करने से वाहन चालक लंबे समय तक सही मुद्रा में नहीं रह पाते, जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ता है। खराब सडक़ों की वजह से सडक़ हादसों में भी वृद्धि हो रही है। वाहन चालक गड्ढों से बचने की कोशिश में दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं। इस प्रकार के हादसों में जान-माल का नुकसान आम होता जा रहा है, जिससे नागरिकों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। पैदल चलने वाले राहगीरों की सुरक्षा भी इन खराब सडक़ों पर सवालों के घेरे में है। सडक़ों की जर्जर स्थिति के कारण वाहन मालिकों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। रोज-रोज के झटकों से गाडिय़ां रखरखाव की ज्यादा मांग कर रही हैं।
वाहन मालिकों को बार-बार अपने वाहनों को सुधारने के लिए खर्च करना पड़ता है। न केवल गाडिय़ों के टायर-ट्यूब की आयु घट रही है, बल्कि सस्पेंशन और अन्य हिस्सों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। आखिर सडक़ों की मरम्मत कब तक होगी? मानसून खत्म होने के बाद भी अब तक मरम्मत का कार्य शुरू नहीं हुआ है। शासन और प्रशासन इसे गंभीरता नहीं ले रहे हंै और आम जन की जिंदगियों से खिलवाड़ कर रहे हैं। यह खिलवाड़ बंद होना चाहिए।