
चित्रकूट : बुंदेलखंड के चित्रकूट के पाठा क्षेत्र में आज भी लोग दस्यु गैंगों के साए में सांस ले रहा है। चम्बल का बीहड़ तो डकैतों की गर्जना से लगभग मुक्त हो चुका है लेकिन चित्रकूट के बीहड़ में आज भी बेरहम डकैतों की फेहरिस्त बनी हुई है। ददुआ ठोकिया रागिया बलखड़िया ये बीहड़ की दुनिया के ऐसे नाम हैं जिनकी आहट पाते ही कभी पत्ते भी हिलना बन्द कर देते थे। इन खूंखार दस्यु सरगनाओं के खात्मे के बाद इनके सिपहसलारों ने गैंग की कमान संभाल ली और आज भी अपने आकाओं की दहशत भरी परंपरा को कायम रखते हुए पाठा के बियावान जंगलों बीहड़ों में विचरण करते हुए खौफ की इबारत लिख रहे हैं।
वर्तमान में साढ़े पांच लाख के इनामी बबुली कोल सवा लाख के इनामी लवलेश कोल 80 हजार का इनामी महेंद्र पासी उर्फ़ धोनी एक लाख के इनामी गौरी यादव, ये सारे कुख्यात दस्यु सरगना उन्ही बड़े गैंगों से निकले हुए खौफ के सरताज हैं। बीहड़ के इन शैतानों के ठिकाने जहां दस्यु प्रभावित गांवों में बनते हैं। वहीं घने जंगलों बीहड़ों में भी कुछ ऐसे स्थान हैं जो हमेशा से इन दस्यु गैंगों के लिए मुफीद माने जाते रहे हैं। पाठा का झलमल, बेधक, टिकरिया, मार्कण्डेय आश्रम, डोडामाफी आदि दुर्गम इलाका डकैतों का पहला सबसे सुरक्षित स्थान है। इन क्षेत्रों में खाकी गैंग की लोकेशन पर पहुंच तो जाती है और कभी कभार मुठभेड़ भी हो जाती है लेकिन बीहड़ की भूल भुलैया का फायदा उठाकर दस्यु गैंग अक्सर गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच निकल जाते हैं। इसीलिए डकैतों के सफाए में मुखबिरों का अहम रोल माना जाता है।
दूसरा कारण है पानी की उपलब्धता
पाठा क्षेत्र में ये वो स्थान हैं जहां प्यास बुझाने के लिए पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है और गैंग इन्ही स्थानों पर बारिश का मौसम आने तक अपना ठिकाना बनाए रखते हैं और इसी वजह से पुलिस भी इन बीहड़ों में अपनी खास निगहबानी रखती है। चित्रकूट का पाठा(मानिकपुर) क्षेत्र बीहड़ को समेटे हुए दस्यु गैंगों की चहलकदमी से पिछले तीन दशकों से अधिक समय से खौफ के साए में अंगड़ाइयां ले रहा है क्योंकि चित्रकूट में डकैतों की तुलना रक्तबीज नाम के उस राक्षस की तरह की जाती है जो अपनी रक्त के बून्द से पुनः जीवित हो जाता था ठीक उसी तरह ये दस्यु गैंग भी हैं जो एक गैंग के खात्मे के बाद बीहड़ में दूसरे गैंग के रूप में दस्तक दे देते हैं। बीहड़ में रहने वाले गैंग उन जंगलों को अपना सबसे मुफीद ठिकाना बनाते हैं जहां खाकी का भी पहुंचना खासा मुश्किल होता है। डकैतों के लिए बेधक , झलमल , आदि जंगल ऐसे ही दुर्गम और सुरक्षित स्थान हैं।
इन जंगलों में गैंग को मिलता है सबकुछ
डाकुओं के लिए सबसे जरूरी है पानी अगर पानी की दिक्कत हुई तो बस्तियों की तरफ आना पड़ेगा गैंग को परन्तु चित्रकूट के बीहड़ में स्थित झलमल, बेधक, हनुमान चौक, बरदहाई नदी, टिकरिया, डोडामाफी के जंगल वो स्थान हैं जहां पानी की किल्लत शायद ही कभी होती हो। पहाड़ों तथा घाटियों से निकलते जल श्रोत गैंग की प्यास बुझाने के लिए काफी होते हैं। पांच लाख के इनामी रहे खूंखार डकैत बलखड़िया(पुलिस इनकाउंटर में ढेर) की जब फोटो पुलिस के हांथ लगी थी तो उसमे भी वो दस्यु सरगना किसी ऐसे ही जलश्रोत के पास बैठा नजर आ रहा था। गैंग पानी की तलाश में इन इलाकों में आता जाता रहता है परन्तु सटीक मुखबिर तंत्र की बदौलत दस्यु गैंग पुलिस के पहुंचने से पहले ही बीहड़ में विलीन हो जाता है। पुलिस की नजरों से बचते हुए मददगार भी आसानी से डाकुओं तक पहुंच जाते हैं।
बेधक जंगल से ही विलीन हुआ बबुली
पुलिस से हुई अभी ताजा मुठभेड़ में दस्यु बबुली को बेधक जंगल में ही घेरा गया था। काफी मात्रा में खाद्य सामग्री की बरामदगी इस बात की तस्दीक करती है कि गैंग कुछ दिनों के लिए स्थाई तौर पर इस इलाके में अपना ठिकाना बनाना चाहता था। पुलिस ने भी बेधक जंगल की दुर्गमता को स्वीकार्य करते हुए इस बात को माना है कि गैंग मुठभेड़ के दौरान दुर्गम रास्तों का फायदा उठाते हुए भाग निकला।
खाकी की खास निगहबानी
बेधक जंगल में दस्यु गैंग के होने की सूचना और ट्रेस करने पर डाकुओ से सामना तथा मुठभेड़ होने के बाद पुलिस की खास निगहबानी इन इलाकों में बढ़ गई है। यूपी एमपी पुलिस संयुक्त टीम बनाकर इलाके के बीहड़ों में गैंग को तलाश कर रही है। उधर सूत्रों के मुताबिक बबुली इसी इलाके में विचरण करते हुए सुरक्षित ठिकाने की तलाश में मुखबिरों से संपर्क बनाते हुए पुलिस की हर चहलकदमी पर नजर रख रहा है। फ़िलहाल पुलिस भी शिकंजा कसती नजर आ रही है।
Published on:
17 Feb 2018 05:08 pm
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