
चित्रकूट. प्राकृतिक गहनों से सुशोभित भगवान श्री राम की तपोस्थली चित्रकूट, जो अपनी आध्यत्मिक धार्मिक पहचान से ज्यादा उस एक बड़ी समस्या के लिए जाना जाता है जिसने यहां की पर्यटन सम्भावनाओं को पिछले कई वर्षों से जकड़ रखा है। इसी समस्या के कारण कई ऐसे स्थान हैं जिनकी खूबसूरती किसी सीनरी से कम नहीं लेकिन वहां कब्जा रहता है। उन शैतानों का जो किसी के लिए भी खतरनाक साबित होते हैं। जिन स्थानों पर पर्यटकों की चहलकदमी से महौल गुलजार रहना चाहिए वहां अजीब सन्नाटा पसरा रहता और फ़िजा में तैरती रहती है दहशत की आहट। इन स्थानों पर जो भी कुछ एक लोग रहते हैं वो भी खौफ के साए में सांसे लेते हुए दिन गुजारते हैं। इन सबके बीच पिछले लगभग चार दशकों से ये समस्या रक्तबीज की तरह उत्पन्न हो रही और ग्रहण लगा रही है। जनपद के पर्यटन की सम्भावनाओं पर ये ग्रहण कब पूरी तरह से छटेगा यह एक यक्ष प्रश्न बन चुका है।
व्यवस्था की अव्यवस्था की भेंट चढ़ गया बुंदेलखंड
पर्यटन की असीम सम्भावनाओं के बावजूद भी बुंदेलखंड विभिन्न समस्याओं (खासतौर पर रोजगार की समस्या) के जख्मों से कई वर्षों से कराह रहा है। इसका यदि कोई सबसे प्रमुख कारण है तो वह है वो बड़ी समस्या जो ख़त्म कब होगी इसका उत्तर तो शायद किसी के पास नहीं क्योंकि इन समस्याओं की मुख्य वजहें भी व्यवस्था की खामियां हैं। जो ऐसी समाजिक समस्याओं को बलवती करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। एक प्रकार से कहें तो बुंदेलखंड अपने पास बहुत कुछ समेटे हुए है फिर भी खाली है।
प्रकृति की अद्भुत सुंदरता का तमगा
कुदरत के अनमोल प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक तोहफों को लेकर अपनी ओर आने के लिए आकर्षित करता बुंदेलखंड का चरखारी जिसे इस क्षेत्र का कश्मीर कहा जाता है अपनी अनुपम सुंदरता के लिए विख्यात है। परंतु सरकारों व नौकरशाही की उदासीनता की बदौलत पर्यटन के ऐसे स्थान दम तोड़ने की कगार पर हैं तो वहीं बांदा का कालिंजर किला जो अपनी ऐतिहासिकता को समेटे बहुत कुछ बयां करता है। झांसी के किले के बारे में तो लगभग सभी ने सुना ही होगा। पर्यटन की न जाने कितनी धरोहरों को संजोए बुंदेलखंड में बेरोजगारी भुखमरी पलायन जैसी समस्या को तो खूब भुनाया गया लेकिन इन समस्याओं पर काफी हद तक अंकुश लगाने वाली पर्यटन विकास की सम्भावनाओं को भुनाने में न तो नौकरशाही ने ही कोई रूचि दिखाई और न तो वादों के रथ पर सवार सफेदपोशों ने। सभी ने छला और छल रहे हैं बुंदेलखंड को।
दुश्वारियों से जूझती तपोस्थली
पर्यटन की ऐसी ही असीम सम्भावनाओं को अपनी गोद में पालते हुए चित्रकूट कई दुश्वारियों से जूझ रहा है। जिनमें जो समस्या सबसे प्रमुख है वो है पाठा की दस्यु समस्या। जनपद में कई ऐसे स्थान हैं जो पर्यटकों को लुभाने के लिए काफी हैं लेकिन वे स्थान उन डकैतों की छत्रछाया में हैं जिनकी दहशत से कोई भी उन इलाकों तक जाने की हिमाकत नहीं करता। सुंदर उपवन जंगलों बीहड़ों के बीच स्थित वे दर्शनीय स्थल यदि विकसित होते तो पर्यटन की दृष्टि से आज पाठा की तस्वीर कुछ और होती।
शैतानों की चहलकदमी ने किया विकास से कोसों दूर
जनपद के पाठा क्षेत्र से लेकर अन्य दुर्गम जगहों पर कई मंदिर आश्रम व तपोस्थली मौजूद हैं परंतु असलहाधारी डकैतों के ख़ौफ ने इन स्थानों को नेपथ्य के पीछे धकेल दिया है। इन स्थानों की सुंदरता देखते ही बनती है, खासतौर पर मौसम में। वहीं अन्य दिनों में भी ये इलाके घूमने लायक मुफीद हैं। इन सबके बावजूद हमेशा से ये इलाके कुख्यात दस्यु सरगनाओं की आहट से सहमे रहते हैं। ऐसा नहीं की इन रमणीय स्थानों तक पहुंचने के लिए मार्ग आदि की व्यवस्था नहीं है परंतु डकैतों की चहलकदमी ने इन स्थानों को आम आदमी व पर्यटकों से दूर कर दिया है।
ये हैं पाठ के पर्यटन स्थल
पाठा क्षेत्र में स्थित मार्कण्डेय आश्रम, पंच प्रयाग, बांके सिद्ध गुफा, रानीपुर वन्य जीव बिहार, शबरी जल प्रपात, तथा इसी क्षेत्र में स्थित आदिकालीन शैल चित्र तथा धारकुंडि आश्रम , ये ऐसे दर्शनीय स्थल हैं जहां जाने के बाद आँखे उन नजारों को हमेशा के लिए कैद करने को बेताब हो उठती हैं। घनघोर जंगल में स्थित धारकुंडि आश्रम यूं तो चित्रकूट की यूपी व एमपी सीमा पर स्थित है और वर्ष भर इस स्थान पर पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है परन्तु बहुत ज्यादा संख्या में नहीं।
चित्रकूट मुख्यालय से इस आश्रम तक का रास्ता घोर जंगल व पहाड़ी इलाके से होकर गुजरता है जहां से गुजरने पर किसी एडवेंचर का अनुभव होता है परंतु मौत के सौदागर डकैतों की चहलकदमी से सहमे इन रास्तों पर पर्यटकों की आवाजाही न के बराबर रहती है। किसी आश्चर्य से कम नहीं धारकुंडी आश्रम. मगर अफ़सोस कि दस्यु समस्या ने पर्यटन की इस खूबसूरत जगह को दूर कर दिया है। मार्कण्डेय आश्रम रानीपुर वन्य जीव बिहार शबरी जल प्रपात आदि स्थानों को जाने वाले रास्तों पर दस्यु गिरोहों की हरकत लगभग जारी रहती है। शबरी प्रपात जाने वाले रास्ते पर ही टिकरिया के पास दस्यु बबुली कोल ने अपहरण व लूट पाट की कई वारदातों को अंजाम दिया है। रानीपुर वन्य जीव बिहार परिक्षेत्र तो डकैतों का मनपसन्द स्थान माना जाता है। घनघोर जंगल व् बीहड़ के बीच दस्यु गैंग विचरण करते रहते हैं और इन इलाकों के आस पास स्थित गाँवों में डरा धमका कर तथा अपने संरक्षणदाताओं के यहां पनाह लेते रहते हैं।
बीहड़ के सूत्र बताते हैं कि मार्कण्डेय आश्रम के आस पास खूंखार डकैत ददुआ बलखड़िया रागिया आदि हमेशा डेरा डाले रहते थे और उस दौरान कोई भी उधर जाने की हिम्मत तक नहीं करता था। इन स्थानों पर रहने वाले कुछ एक साधू सन्त किसी तरह अपना जीवन यापन करते हैं। जनपद के भरतकूप क्षेत्र में स्थित मड़फा पहाड़ जो अपनी नैसर्गिक सुंदरता के लिए पूरे बुंदेलखंड में प्रसिद्द है इस स्थान को डकैतों का प्रमुख डेरा माना जाता है। दस्यु ठोकिया बंटी लाला शिवमूरत बलखड़िया इसी पहाड़ के आस पास विचरण करते हुए कई बार पुलिस से मुठभेड़ के दौरान रूबरू हुए। मड़फा कोई साधारण जगह नहीं। इस पहाड़ के ऊपर भगवान भोलेनाथ की अद्भुत मुद्रा में प्राचीन प्रतिमा है जिसका दर्शन करते ही मन भोलेनाथ की भक्ति में रम जाता है परंतु इन्हीं शैतानों की दहशत ने इस स्थान को सबसे दूर कर दिया है। गाहे बगाहे पर्यटकों के आने से मड़फा अपनी पहचान बनाए हुए है।
बांदा के कालिंजर किले के भ्रमण के दौरान आज से लगभग 11 वर्ष पहले डकैत पप्पू यादव ने आठ पर्यटकों को मौत के घाट उतार दिया था। तो इससे समझा जा सकता है कि बुंदेलखण्ड में ये दस्यु समस्या किस कदर हर तरह से हानिकारिक है। इन स्थानों पर पर्यटकों की अठखेलियां कम और पुलिस तथा दस्यु गिरोहों के बीच गोलियों की आवाज ज्यादा गूंजती है।
जिस दिन पाठा में ये दस्यु समस्या ख़त्म हो जाएगी और सरकारें तथा प्रशासन और जनप्रतिनिधि विकास के पैमाने पर एक् साथ खड़े होकर चल पड़ेंगे उस दिन बुंदेलखंड वास्तव में कई विकट समस्याओं से मुक्त हो जाएगा। जरूरत इस बात की है कि इस बड़ी दस्यु समस्या को ख़त्म करने के लिए दृढ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है कानून को भी और जनता को भी। अन्यथा जो एक कहावत है बुन्देलखण्ड में डकैतों को लेकर कि ये रक्तबीज हैं एक ख़त्म होता है तो दूसरा पैदा हो जाता है चरितार्थ होती रहेगी।
Published on:
05 Mar 2018 06:05 pm
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