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जहां हुआ था भरत मिलाप आज भी मौजूद हैं राम व भरत के चरण चिन्ह

ऐसे दुर्लभ स्थानों को अब तक पर्यटन व तीर्थ क्षेत्र के रूप में अपनी वास्तविक पहचान न मिलना सिस्टम की नाकामी को दर्शाता है.

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जहां हुआ था भरत मिलाप आज भी मौजूद हैं राम व भरत के चरण चिन्ह

जहां हुआ था भरत मिलाप आज भी मौजूद हैं राम व भरत के चरण चिन्ह

चित्रकूट: भगवान राम की तपोभूमि में कई ऐसे स्थान हैं जो रामायणकाल से जुड़े होने के कारण आज भी प्रासंगिक हैं. इन स्थानों पर रामायणकालीन घटनाओं के प्रमाण मिलते हैं तो श्री रामचरितमानस में उल्लिखित चौपाइयों का संबंध भी. ऐसे दुर्लभ स्थानों को अब तक पर्यटन व तीर्थ क्षेत्र के रूप में अपनी वास्तविक पहचान न मिलना सिस्टम की नाकामी को दर्शाता है. हालांकि अब यूपी टूरिज़्म ने प्रयास किया है कि तपोभूमि के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों को पर्यटन के पटल पर पहचान दिलाई जाए. ऐसा ही एक स्थान है भरत मिलाप. जी हां ये वही स्थान है जहां वनवासी राम व उनके अनुज भरत के बीच भावपूर्ण मिलन हुआ था. आज भी इस स्थान पर एक विशेष प्रकार के मानव रूपी चरण चिन्ह उकरे हुए हैं. मान्यता है कि ये उन्ही वनवासी राम व भरत के चरण चिन्ह हैं.


कामदगिरि परिक्रमा मार्ग पर एक स्थान पड़ता है भरत मिलाप मंदिर. ये वही जगह है जहां वनवास कर रहे राम का अपने अनुज भरत से मिलन हुआ था. पौराणिक मान्यताओं व रामायणकालीन घटनाओं के मुताबिक अपने पिता दशरथ की आज्ञा से 14 वर्षों के वनवास पर निकले राम ने वनवासकाल के साढ़े ग्यारह वर्ष चित्रकूट में बिताए. इस दौरान उनके अनुज भरत उन्हें वापस अयोध्या लौटने हेतु मनाने के लिए चित्रकूट आए. परन्तु पिता दशरथ की आज्ञा का पालन करने का वचन न तोड़ते हुए राम ने अयोध्या वापस लौटने से इंकार कर दिया. जिस पर भरत उनकी खड़ाऊं लेकर अयोध्या लौट गए. पौराणिक ग्रन्थों में उल्लिखित मान्यताओं के अनुसार चित्रकूट के इसी स्थान पर राम व भरत का मिलाप हुआ था. इस स्थान पर आज एक मंदिर है जिसमें राम व भरत के चरण चिन्ह देखे जा सकते हैं. कहा जाता है कि वनवासकाल में जहां-जहां राम सीता व लक्ष्मण के पैर पड़ते वहां के पत्थर भी पिघल जाते. रामचरितमानस में इसका उल्लेख भी इस चौपाई के माध्यम से मिलता है" द्रवहिं बचन सुनि कुलिस पषाना, पुरजन प्रेमु न जाई बखाना, बीच बास करि जमुनही आए निरखि नीरू लोचन जल छाए" अर्थात जब भरत श्री राम को मनाने चित्रकूट जा रहे थे तो मार्ग के पत्थर भी पिघल गए. अचरज की बात यह कि इस स्थान के पत्थर भी पिघले हुए जान पड़ते हैं.


चित्रकूट में कई ऐसे स्थान हैं जहां राम के विचरण का उल्लेख महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण व तुलसीदास रचित रामचरितमानस में मिलता है. जिले को यदि धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने की दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई जाए तो देश दुनिया के पर्यटन मानचित्र पर एक अलग स्थान होगा भगवान राम की इस तपोभूमि का.