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संघर्ष त्याग तपस्या की भट्टी में तपकर निकले समाज के अंतिम व्यक्ति की आवाज थे नानाजी देशमुख

संघर्ष त्याग तपस्या जैसे शब्द उनके लिए छोटे पड़ जाते हैं. देश प्रेम का जज्बा व समाज सेवा का संकल्प लेकर "मैं अपने लिए नहीं अपनों के लिए हूं" इस ध्येय वाक्य पर चलते हुए अपना पूरा जीवन समाज के लिए समर्पित कर देने वाले प्रख्यात समाजसेवी राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख को भारत रत्न मिलने पर प्रभु श्री राम की तपोस्थली का बच्चा बच्चा गर्वान्वित है

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nanaji

संघर्ष त्याग तपस्या की भट्टी में तपकर निकले समाज के अंतिम व्यक्ति की आवाज थे नानाजी देशमुख

चित्रकूट: संघर्ष त्याग तपस्या जैसे शब्द उनके लिए छोटे पड़ जाते हैं. देश प्रेम का जज्बा व समाज सेवा का संकल्प लेकर "मैं अपने लिए नहीं अपनों के लिए हूं" इस ध्येय वाक्य पर चलते हुए अपना पूरा जीवन समाज के लिए समर्पित कर देने वाले प्रख्यात समाजसेवी राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख को भारत रत्न मिलने पर प्रभु श्री राम की तपोस्थली का बच्चा बच्चा गर्वान्वित है. ऐसा होना लाज़िमी भी है क्योंकि नानाजी ने श्री राम की तपोभूमि को ही अपनी कर्मभूमि बनाया और ग्राम्य विकास व स्वावलंबन की ऐसी अवधारणा विकसित की कि आज देश ही विदेशों में भी इस पर रिसर्च हो रही है. हर राजनैतिक दल के लिए सम्मानीय थे नानाजी देशमुख. नाता उनका भले ही आरएसएस से रहा हो लेकिन ग्राम्य विकास की उनकी अवधारणा से सीखने देश का हर दिग्गज राजनेता उन तक पहुंचा.

राम थे आराध्य राम की ही तपोभूमि को बना लिया कर्मभूमि

नानाजी ने ग्राम्य विकास की अपनी अवधारणा के रास्ते पर चलकर भारत के कई गाँवों की तस्वीर बदल दी. यह कहना गलत न होगा कि यदि नानाजी जैसी महान विभूति न होती तो शायद आज भी देश के ग्रामीण इलाकों में विकास की लहर कोसों दूर होती. त्याग तपस्या परिश्रम करुणा भेदभाव से रहित दबे पिछड़े लोगों के विकास को प्रतिबद्ध इस महान सामाजिक निर्माता की दूर दृष्टि सोच ने विकास को एक नया आयाम दिया. वैसे तो नानाजी ने पूरे भारत के कई राज्यों में गांवो की तकदीर व तस्वीर बदल दी लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि का केंद्र बनाया भगवान राम की तपोस्थली चित्रकूट को. श्री राम नानाजी के आराध्य थे और उनका मानना था कि जब अपने वनवासकाल के प्रवास के दौरान भगवान राम चित्रकूट में आदिवासियों तथा दलितों के उत्थान का कार्य कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं अतः नानाजी चित्रकूट में ही जब पहली बार 1989 में आए तो यहीं बस गए.

प्रकल्पों से बदल डाली गांवों की तकदीर व तस्वीर

नानाजी ने चित्रकूट में दीनदयाल शोध संस्थान(डीआरआई) की स्थापना कर उसके तहत ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य शिक्षा लघु एवं कुटीर उद्योग व स्वावलंबन जैसे विषयों पर कई प्रकल्प शुरू किए. नतीजा यह निकला कि आज इलाके के 500 से अधिक गांव विकास के रास्ते पर सीना तानकर खड़े हैं. सन 2011 में नानाजी के प्रकल्पों से प्रभावित होकर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति व मिसाइलमैन के नाम से मशहूर महान वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने भी उनके संघर्ष को सलाम किया था और भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में नानाजी के प्रकल्पों से सीखने की बात कही थी.

भारत रत्न अटल बिहारी के प्रिय सखा थे नानाजी

नानाजी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के प्रिय सखा थे. एक तरह से कहा जाए तो अटल जी व नानाजी ने आरएसएस से लेकर जनसंघ की स्थापना तक कि यात्रा में एक साथ संघर्ष किया. सन 1940 में जब संघ के संस्थापक केशव बलराम हेडगेवार के निधन के बाद आरएसएस को खड़ा करने की ज़िम्मेदारी नानाजी पर आ गई तो उन्होंने इस चुनौती व संघर्ष को अपने जीवन का मूल उद्देश्य बनाते हुए अपना पूरा जीवन आरएसएस के नाम कर दिया. संगठन विस्तार में दीनदयाल उपाध्याय व अटल बिहारी वाजपेयी उनके हम कदम रहे. 1947 में आरएसएस ने पाञ्चजन्य नामक दो साप्ताहिक व् स्वदेश हिंदी समाचार पत्र निकालने की शुरुआत की. अटल बिहारी बाजपेयी को सम्पादन दीनदयाल उपाध्याय को मार्गदर्शन और नानाजी को प्रबंध निदेशक की जिम्मेदारी सौंपी गई. 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया फिर भी भूमिगत होकर इन पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन कार्य जारी रहा.

आरएसएस से प्रतिबंध हटने के बाद भारतीय जनसंघ की स्थापना का निर्णय हुआ जिसके विस्तार के लिए नानाजी को उत्तर प्रदेश भेजा गया. अपनी सांगठनिक कौशल की मिसाल कायम करते हुए नानाजी ने 1957 तक उत्तर प्रदेश के हर जिले में जनसंघ की इकाइयां स्थापित कर दीं. जनसंघ उत्तरप्रदेश की प्रमुख राजनीतिक शक्ति का केंद्रबिंदु बन गया. नानाजी ने राम मनोहर लोहिया की मुलाकात दीनदयाल उपाध्याय से करवाई जिसके बाद जनसंघ और समाजवादी विचारधारा ने कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर दी. उत्तर प्रदेश की पहली गैर कॉंग्रेसी सरकार के गठन में विभिन्न राजनीतिक दलों को एकजुट करने में नानाजी का महत्वपूर्ण योगदान रहा.जेपी आंदोलन के समय जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण के ऊपर पुलिस का लाठीचार्ज हुआ तब नानाजी ने साहस का परिचय देते हुए जयप्रकाश नारायण(जेपी) को सुरक्षित बाहर निकाल लिया. जनता पार्टी के संस्थापकों में नानाजी प्रमुख थे. कांग्रेस को सत्ता से मुक्त कर अस्तित्व में आई जनता पार्टी . आपातकाल हटने के बाद जब चुनाव हुआ तो नानाजी देशमुख यूपी के बलरामपुर से लोकसभा सांसद चुने गए और उन्हें मोरारजी मन्त्रीमण्डल में शामिल होने का न्योता दिया गया लेकिन नानाजी देशमुख ने यह कहकर प्रस्ताव ठुकरा दिया कि 60 वर्ष की उम्र के बाद सांसद राजनीति से दूर रहकर सामाजिक व् सांगठनिक कार्य करें.

सामाजिक जीवन

1960 में लगभग 60 वर्ष की उम्र में नानाजी ने राजनीतिक जीवन से सन्यास लेते हुए सामाजिक जीवन में पदार्पण किया. वे आश्रमों में रहकर सामाजिक कार्य (खासतौर पर गाँवों में) करते रहे परन्तु कभी अपना प्रचार नहीं किया. नानाजी ने दीनदयाल उपाध्याय के निधन के बाद शोकग्रस्त न होते हुए दीनदयाल के दर्शन एकात्म मानववाद को साकार किया तथा दिल्ली में खुद के दम पर दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की. नानाजी ने उत्तर प्रदेश के उस समय के सबसे पिछड़े जिले गोंडा और महाराष्ट्र के बीड में कई सामाजिक कार्य किए. नानाजी द्वारा चलाई गई परियोजना का उद्देश्य था हर हांथ को काम और हर खेत को पानी.

मरणोपरांत भी समाज के लिए समर्पित कर दिया अपना शरीर

1999 में नानाजी को पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया. तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुलकलाम भी नानाजी की समाजसेवा के कायल थे. 27 फरवरी सन 2010 को नानाजी ने चित्रकूट में अंतिम सांस ली. नानाजी ने अपने मृत शरीर को मेडिकल शोध हेतु दान करने का वसीयतनामा निधन से काफी पहले 1997 में ही लिखकर दे दिया था. निधन के बाद नानाजी का शव अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को सौंप दिया गया.