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कड़ाही में फिर से कचौरी का उबाल

यहां की कचौरी का स्वाद देश-विदेश तक मशहूर है। कोरोना संक्रमण से बचाव की सावधानी के साथ बाजारो में फिर से रौनक लौटने लगी है।

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कड़ाही में फिर से कचौरी का उबाल

कड़ाही में फिर से कचौरी का उबाल

सुजानगढ़. यहां की कचौरी का स्वाद देश-विदेश तक मशहूर है। कोरोना संक्रमण से बचाव की सावधानी के साथ बाजारो में फिर से रौनक लौटने लगी है। इसमें कचौरी का स्वाद अब फिर से जुबान पर चढऩे लगा है। शौकीन भी अब कचोरी की दुकानों पर पहुंच रहे है, हालांकि अब भी कोरोना के कारण पहले जैसा माहौल व बिक्री नहीं है। लॉकडाउन में कचौरी-समोसा का कारोबार पूरी तरह ठप हो गया था। जनजीवन पुन: पटरी पर लौट रहा है, उसी तरह कचौरी की दुकानों पर भी प्रतिदिन रौनक बढ़ रही है। पिछले 10-15 दिनो में ही बाजार में 40 से 50 प्रतिशत कचौरी-समोसा की बिक्री बढ़ गई।
सुजानगढ़ खाता है रोज 30 हजार कचौरी
सुजानगढ़ की कचौरी का स्वाद ऐसा है कि लोग नाश्ते से लेकर लंच ओर डिनर तक में कचोरी खा लेते है। सुजानगढ़ ही नहीं देश-विदेश में रहने वाले सुजानगढ़ प्रवासी लोगो की जुबां पर भी कचौरी का स्वाद सिर चढ़कर बोलता है। गांधी चौक स्थित बुधजी कचौरी के नाम से प्रसिद्ध कचौरी कारीगर कमलकुमार काछवाल ने बताया कि उनके पिताजी ने गांधी चौक में 2001 में कचोरी बनाना शुरू किया था। लॉकडाउन से पहले 700 से 900 तक कचौरी बिक जाती थी, लेकिन बाद में अब 300-400 कचोरी तक ही बिक पाती है। कमल के भाई राकेश ने बताया कि कोलकोता गुहावाटी, मुम्बई, दिल्ली सहित अन्य दूर-दराज क्षेत्रों में सुजानगढ़ के रहने वाले लोग अपने परिजन के माध्यम से यहां बनी हुई कचौरी मंगवाकर बड़े चाव सेखाते हैं। इतना ही नहीं, कई दफा यहां की कचौरी दुबई व साउथ अफ्रीका तक अपनी स्वाद का जायका बिखेरती है।
पांच स्थानों पर कचौरी की महक
शहर में करीब पांच दर्जन से अधिक स्थानों पर कचोरी-समौसा बनाकर बेचा जाता है। आसपास के दूसरे शहरो की कचौरी में सुजानगढ़ की कचौरी जैसा स्वाद नहीं है। इस बारे में जानकार बुजुर्ग लोगों का कहना है कि तासीर बदलने के कारण स्वाद भी बदल जाता है। चौथमल सेठिया विश्रामालय बस स्टेण्ड पर हाथ ठेलानुमा दुकान पर कचौरी बनाने वाले अशोक बटेसर ने बताया कि उनके पिताजी ने 50 वर्ष पहले कचोरी-समौसे का काम शुरु किया था। लॉकडाउन के बाद 300-400 कचोरी, समौसे तक कारोबार सिमट गया है जबकि लॉकडाउन से पहले 800 से 900 नग बिक्री हो जाते थे।