
Covid-19: क्यों आती है रिपीट सैंपल की नौबत, आईए जानें...
चूरू. इन दिनों जांच लैब से कोविड-19 के रिपीट सैंपल की डिमांड होती है। मोटे तौर पर तो रिपीट सैंपल का सीधा सा मतलब होता है कि सैंपल ठीक नहीं आया है, दोबारा से लेना होगा। लेकिन कोविड-19 के मामले में रिपीट सैंपल का मतलब कुछ अलग हो सकता है। यहां रिपीट सैंपल का मतलब यह भी हो सकता है कि जांच कर्ता को सैंपल में पर्याप्त वायरस लोड न मिला हो। हालांकि कुछ वायरस जरूर उसकी निगाह में आया हो, लिहाजा वह रिपीट सैंपल मांगता है।
रिपीट या दोबारा सैंपल मोटे तौर पर तीन-चार मुख्य कमियों की वजह से लिया जाता है। उसमें पहली तो यह होती है कि जो स्वाब लिया गया है, वह अपर्याप्त मात्रा में हो। दूसरा आमतौर पर देखा गया है कि मरीज में लक्षण दिखाई नहीं देते, ऐसे में उसके सैंपल में पर्याप्त वायरल लोड नहीं होता, जिससे उसके संक्रमित होते हुए भी रिपोर्ट में सही निष्कर्ष नहीं निकल पाता। एक अन्य कारण यह भी हो सकता है कि सैंपल लेने की प्रक्रिया में ही कहीं कोई दोष अथवा कमी हो।
माइक्रोबॉयलॉजी विशेषज्ञों का कहना है कि वायरल डिटेक्शन के मामले में समुचित वायरल लोड का होना बहुत जरूरी है। कोविड-19 संक्रमित मरीजों के सैंपल जांच में तो आदर्श स्थिति यही है कि थ्रोट और नेजोफ्रेंजियल (गले और नाक) स्वाब लिया जाए। कई बार सिर्फ थ्रोट के स्वाब में उतना वायरल लोड नहीं होता, इसलिए नतीजे सटीक नहीं आ पाते। हां, वायरोलॉजिस्ट को संदेह होता है, तो वह दोबारा टेस्ट की सिफारिश करता है। डीबीएच की वायरोलॉजी एक्सपट्र्स की टीम ने रिपीट सैंपल के मामले में सीधा रास्ता तो यही निकाला था कि वह उस मरीज की दोबारा उसी प्रक्रिया से सैंपलिंग करती है। उम्मीद यह होती थी कि चूंकि इस प्रक्रिया में 24 घंटे से 30 घंटे का अंतर पड़ चुका है, हो सकता है कि वायरल लोड बढ़ चुका हो और उससे तकरीबन सटीक या उसके करीब का रिजल्ट हासिल किया जा सके।
Published on:
25 Apr 2020 01:13 pm
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