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उधारी के आंगन में संवर रही है भविष्य की पतवार

बचपन बचाने व बच्चों को साक्षर करने के लिए सरकार की ओर से नित नई योजनाएं चलाई जा रही है। जबकि पहले से बनी योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही सामने आ रही है, मामला जिले में संचालित आंगनबाडिय़ों का है।

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उधारी के आंगन में संवर रही है भविष्य की पतवार

उधारी के आंगन में संवर रही है भविष्य की पतवार

चूरू. बचपन बचाने व बच्चों को साक्षर करने के लिए सरकार की ओर से नित नई योजनाएं चलाई जा रही है। जबकि पहले से बनी योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही सामने आ रही है, मामला जिले में संचालित आंगनबाडिय़ों का है। इसमें करीब 291 किराए के भवनों में संचालित हो रही है। जानकारी के मुताबिक सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन करने के लिए साल दर साल आंगनबाडिय़ों की संख्या को बढ़ाया जा रहा है। हैरान करने वाली बात यह है कि कई आंगनबाडिय़ों के पास स्वयं का भवन नहीं है। किराए के भवनों में संचालित हो रहे केन्द्र के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से प्रतिमाह 2 लाख 91 हजार से अधिक का भुगतान किया जा रहा है। इस रुपए को बच्चों के विकास के लिए खर्च किया जाता तो तस्वीर कुछ और नजर आती। भवन मालिक हर साल किराया बढ़ाने का दबाव बनाने रहे हैं। ऐसे में विभाग के लिए इन्हे चलाने में मुश्किल पेश आ रही है। विभाग के अधिकारियों की माने तो ग्रामीण क्षेत्रों के बजाए शहर में समस्या अधिक है। सरकारी भूमियों पर अतिक्रमण है। शहरी क्षेत्र में जमीन आवंटन का अधिकार क्षेत्र नगरपरिषद का है, जब तक वे स्थाई जमीन मुहैया नहीं करवाते भवन का निर्माण करना मुश्किल है।

किराया निर्धारित कमरा मिलना मुश्किल
महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों की माने तो सरकार की ओर से एक हजार रुपए किराया निर्धारित है।इतने कम रुपए में शहरी क्षेत्रों में कमरा मिलना बहुत ज्यादा मुश्किल है। ऐसे में जहां कमरा मिलता है, वहीं आंगनबाड़ी केन्द्र खोल दिया जाता है।

फैक्ट फाइल
आंगनबाड़ी- 1567
मिनी आंगनबाड़ी- 110
किराए के भवनों में संचालित- 291

इनका कहना है
&ग्रामीण के बजाए शहरी क्षेत्र में भवनों की समस्या आने से आंगनबाडिय़ों को किराए के भवनों में संचालित किया जा रहा है।स्थाई भूमि नहीं मिलना इसका एक प्रमुख कारण है।
संजय कुमार, उपनिदेशक महिला एवं बाल विकास विभाग, चूरू