Ganesh Chaturthi 2023: चूरू शहर से करीब पांच किमी की दूरी पर स्थित है गांव देपालसर। यहां है 300 साल पुराना तारागढ़ी गणेश मंदिर। रोज सैंकड़ों भक्तों की भीड़ जुटती है।
Ganesh Chaturthi 2023: चूरू शहर से करीब पांच किमी की दूरी पर स्थित है गांव देपालसर। यहां है 300 साल पुराना तारागढ़ी गणेश मंदिर। रोज सैंकड़ों भक्तों की भीड़ जुटती है। खास बात ये है कि मंदिर में बाबा शिव के चरणों में विराजमान हैं पुत्र गणेश। मंदिर में सबसे उपर प्राचीन शिवलिंग स्थापित है। इसके ठीक नीचे गर्भगृह में गजानन विराजमान हैं।
इसके अलावा मंदिर में मां जीण भवानी व हनुमान जी की प्रतिमाएं मौजूद हैं। पुजारी परमेश्वरलाल ने बताया कि जोधपुर की राजकुमारी तारामणी को सपने में गणपति दिखे। इसके अलावा यहां मौजूद बाबा की बणी का स्थान दिखा। वे जोधपुर से यहां आई। यहां के तत्कालीन जागीरदार से बाबा की बणी वाले स्थान की जानकारी ली। इसके बाद करीब 70 फीट ऊंचे मिट्टी के धोरे की खुदाई शुरू करवाई। इस दौरान गणपति की मूर्ति का प्राकट्य हुआ। बाद में मंदिर बनवाकर मूर्ति की स्थापना करवाई गई। मंदिर का नाम राजकुमारी तारामणी के नाम पर ही तारागढ़ी प्रचलित हुआ।
मंदिर में मौजूद राजकुमारी ने समाधि
पुजारी परिवार के सुनील गोस्वामी ने बताया कि मंदिर के निर्माण के बाद राजकुमार तारामणी वापिस जोधपुर नहीं गई। वे यहीं पर तपस्या में लीन हो गईं। उनका भाई श्यामसिंह भी जोधपुर से यहां आ गया। दोनों भाई - बहन के देवलोक गमन के बाद उनकी यहां समाधि बनाई गई। जो आज भी मंदिर में मौजूद हैं।
तीन बार मूर्ति का मुख पूरब में किया
पुजारी सुनील गोस्वामी ने बताया कि प्रदेश का एकमात्र मंदिर है, जहां पर भगवान लंबोदर दक्षिण में विराजित हैं। उन्होंने बताया कि मंदिर के निर्माण के बाद तीन बार मूर्ति का मुख पूरब की ओर किया गया। मगर, मूर्ति का मुख अपने आप दक्षिण की ओर हो जाता था। इसके बाद से लेकर अब तक दक्षिण में ही मुख है।
साल में दो बार लगता है मेला
मंदिर में वर्ष में दो बार मेला लगता है। पहला मेला महाशिवरात्रि के दिन व दूसरा गणेश चतुर्थी पर भरता है। पुजारी के मुताबिक गणेश जी के दर पर मनोकामनाएं लेकर प्रदेश के बीकानेर, नागौर, सीकर, झुंझनूं, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर व चूरू शहर सहित आसपास इलाके के दर्जनों गांवों के श्रद्धालु आते हैं।