
राजलदेसर. होली का जिक्र होता है तो जेहन में सबसे पहले आता है शेखावाटी का गींदड़ नृत्य। शेखावाटी में भी चूरू जिले के राजलदेसर का गींदड़ नृत्य सबसे अनूठा है। आइए होली 2018 के मौके पर इस बार सोमवार से शुरू हुए राजलेदसर के गीदड़ नृत्य के बारे में।
-राजलदेसर में पांच दिवसीय फागोत्सव के तहत होने वाले गींदड़ नृत्य की तैयारियों में फाग के रसियों ने खास तैयारियां की है।
-यहां के गींदड़ नृत्य न केवल राजलदेसर बल्कि पूरे प्रदेश में पहचान रखता है।
-राजलदेसर में गींदड़ नृत्य के सफल आयोजन के लिए समितियों का गठन किया किया है।
-लोगों की मानें तो यहां गींदड़ नृत्य सन् 1607 में राव बीका के पुत्र राजसी द्वारा जागिर प्राप्ति की खुशी में पहली बार होली पर शुरू हुआ था।
-411 साल पुरानी यह परम्परा आज भी राजलदेसर के लोग बड़ी शिद््द्त से निभा रहे हैं।
-यहां के मुख्य बाजार चौक व गांधी चौक पर गिंदड़ नृत्य होली की पांच रात्रि पूर्व फाल्गुनी एकादशी से शुरु होती है।
-गींदड़ स्थलों को बंदनवारों व विद्युत लडिय़ों से दुल्हन की तरह सजाया जाता है।
-स्थलों के बीच पन्द्रह फीट ऊंचे बने मंच की सजावट देखते ही बनती है।
-पांच दिवसीय गींदड़ नृत्य में ग्रामीण परिवेश और राजस्थान की लोक संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।
- दुग्ध ध्वल पूर्णिमा की चांदनी रात्रि में गिंदड़ रमते रसियों व दूर-दराज से आए दर्शकों की मौज मस्ती देखते ही बनती है।
-साम्प्रादायिक सद्भावना का प्रतीक राजलदेसर गींदड़ नृत्य में हर जाति-धर्म के नर्तक एकता की निश्छल भावना से शामिल होते हैं।
-गींदड़ में जहां एक ओर विभिन्न देवी-देवताओं व साधु-साध्वियों के स्वांग नृत्य की विभिन्न मुद्राओं में देखे जाते हैं।
-वहीं मेमसाहब, अफसर, सेठ-सेठाणी आदि स्वांगों द्वारा दर्शकों का खूब मनोरंजन होता है।
-गींदड़ नृत्य में भाग लेने के लिए विभिन्न प्रांतों से प्रवासी बड़ी संख्या में राजलदेसर लौटते हैं।
Published on:
26 Feb 2018 05:55 pm
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