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Acharya Mahashraman- आचार्य का कार्य अर्थ बताना, व्याख्या करना और उपाध्याय सूत्र का प्रतिपादन करना- आचार्य महाश्रमण

चूरू. छापर. आचार्य महाश्रमण ने मंगलवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आचार्य व उपाध्याय अपने-अपने दायित्वों का निर्वहन करने वाले होते हैं। अपने कार्यक्षेत्र में खेदरहित अवस्था में अपना कार्य करते हैं। आचार्य का कार्य अर्थ बताना, व्याख्या करना और उपाध्याय सूत्र का प्रतिपादन करते हैं। कई बार आचार्य व उपाध्याय दोनों का दायित्व एक ही व्यक्ति पर हो सकता है।

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चूरू

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Vijay

Oct 05, 2022

Acharya Mahashraman- आचार्य का कार्य अर्थ बताना, व्याख्या करना और उपाध्याय सूत्र का प्रतिपादन करना- आचार्य महाश्रमण

Acharya Mahashraman- आचार्य का कार्य अर्थ बताना, व्याख्या करना और उपाध्याय सूत्र का प्रतिपादन करना- आचार्य महाश्रमण

पहली बात कि कोई-कोई आचार्य/उपाध्याय तो इसी जन्म के बाद मोक्ष जा सकते हैं
कोई दूसरे भव में सिद्ध हो जाते हैं और कोई तीसरे भव में सिद्धत्व को प्राप्त कर लेते हैं
आचार्य/उपाध्याय की इतनी निर्जरा हो जाती है कि उन्हें मोक्ष जाना ही जाना होता है, यह आगम कहता है
चूरू. छापर. आचार्य महाश्रमण ने मंगलवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आचार्य व उपाध्याय अपने-अपने दायित्वों का निर्वहन करने वाले होते हैं। अपने कार्यक्षेत्र में खेदरहित अवस्था में अपना कार्य करते हैं। आचार्य का कार्य अर्थ बताना, व्याख्या करना और उपाध्याय सूत्र का प्रतिपादन करते हैं। कई बार आचार्य व उपाध्याय दोनों का दायित्व एक ही व्यक्ति पर हो सकता है। तेरापंथ धर्मसंघ के 262 वर्षों के इतिहास में आचार्य भिक्षु से लेकर अभी तक आचार्य ने किसी भी दूसरे व्यक्ति को उपाध्याय पद प्रदान नहीं किया। इस धर्मसंघ में आचार्य में ही उपाध्याय का पद निहित है। इनको मोक्ष जाने के लिए तीन विकल्प बताए गए हैं- पहली बात कि कोई-कोई आचार्य/उपाध्याय तो इसी जन्म के बाद मोक्ष जा सकते हैं। कोई दूसरे भव में सिद्ध हो जाते हैं और कोई तीसरे भव में सिद्धत्व को प्राप्त कर लेते हैं। आचार्य/उपाध्याय की इतनी निर्जरा हो जाती है कि उन्हें मोक्ष जाना ही जाना होता है, यह आगम कहता है।
आचार्य ३६ गुणों के धारक होते हैं। उपाध्याय २५ गुण वाले होते हैं। साधु के २७, अर्हतों के १२ और सिद्धों के ८ गुण होते हैं। कुल मिलाकर १०८ गुण पंच परमेष्टि के हो जाते हैं। आचार्य अपने दायित्व के साथ-साथ उपाध्याय के दायित्व का भी निर्वहन करने वाले होते हैं। हमारे धर्मसंघ के पूर्व के दस आचार्यों ने अपने-अपने ढंग से संघ की सेवा की, सार-संभाल किया, संघ को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। परम पूज्य आचार्य भिक्षु से लेकर श्रीमज्जयाचार्य आदि तथा परम पूज्य गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ ने संघ की इतनी देखभाल की। संघ की सार-संभाल करना, सेवा देना, व्याख्यान देना, सबके चित्त समाधि का ध्यान रखना, आगम आदि के कार्यों को भी कराना आदि करते हैं। जिनके माध्यम से आचार्य के इतने कर्मों की निर्जरा हो जाती है कि वे पांच भवों में ही मोक्ष को प्राप्त कर लें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए।

आठ साल बाद हुई जैन श्वेतांबर तेरापंथ सभा की बैठक
सादुलपुर. जैन श्वेतांबर तेरापंथ सभा की साधारण सभा की बैठक आठ साल बाद हुई, जिसमें दिल्ली प्रवासी नरेन्द्र श्यामसुखा को सर्व सम्मति से अध्यक्ष चुना गया। तेरापंथ महिला मंडल भवन राजगढ़ में हुई बैठक में श्याम जैन ने श्यामसुखा के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया कोलकाता प्रवासी प्रमुख श्रावक प्रमोद नाहटा की अध्यक्षता में हुई बैठक में अखिल भारतीय जैन श्वेतांबर तेरापंथ महासभा के बीकानेर संभाग के प्रभारी चूरू के राजेश बांठिया भी विशेष रूप से उपस्थित थे। बैठक का संयोजन करते हुए कोलकाता प्रवासी भूपेंद्र श्यामसुखा ने आवश्यक जानकारी दी। बैठक में सात ट्रस्टी भी चुने गए, जिनमें संजय सुराणा (सूरत) प्रमोद नाहटा (कोलकाता) सुनील सुराणा (हैदराबाद) विनोद कोचर (कोलकाता) आनन्द गधैया (दिल्ली) सुरेश श्यामसुखा (कोलकाता) तथा राजगढ़ के हनुमान सुराणा शामिल हैं। इसके अलावा पंच मंडल (आर्बिटेटर) के सदस्य स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर जयपुर के मैनेजर रहे हनुमान जैन, कोलकाता प्रवासी जसवंत श्यामसुखा तथा अहमदाबाद प्रवासी संचिया लाल गधैया को चुना गया है। दिल्ली प्रवासी सीए समरथ सुराना एंड कंपनी को ओडिटर तय किया गया है। बैठक में मनोज जैन व रतन श्यामसुखा ने विचार व्यक्त किए। राजेश बांठिया ने कहा कि राजगढ़ जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में आवश्यकता है। प्रमोद नाहटा ने सभी का आभार व्यक्त किया।