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राजस्थानी अकादमी ने रिजेक्ट किया तो इस लेखक ने दोस्तों की मदद से छपवाई किताब, फिर मची पूरे इंडिया में धूम

Rajasthani writer Ummed Dhania : लेखक उम्मेद धानिया का जन्म 18 दिसम्बर 1987 को राजस्थान के चूरू जिले की तारानगर तहसील के गांव राजपुरा में हुआ।

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Ummed Dhania

Ummed Dhania

सीकर. इन दिनों राजस्थान के चर्चित रचनाकार उम्मेद धानिया साहित्य की दुनिया में छाए हुए हैं। वजह ये है कि धानियां की जिस कथा पांडुलिपि को कभी राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ने पांडुलिपि सहयोग देने से इनकार कर दिया था, उसी पुस्तक पर साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ने धानिया को वर्ष 2017 का युवा पुरस्कार प्रदान किया है।

22 दिसम्बर 2017 को चंडीगढ़ में साहित्य अकादमी की ओर से हुए समारोह में उम्मेद धानियां को पुरस्कार के तौर पर पचास हजार का चेक व ताम्रफलक प्रदान किया गया। ग्रामीण अंचल के दलित समाज के जन जीवन के संघर्ष और शोषण को अपनी कथावस्तु बनाने वाले धानियां की खुद की जिंदगी में ऐसे संघर्ष की अनेक कहानियां भरी पड़ी हैं

राजस्थानी साहित्य के उदीयमान लेखक हैं उम्मेद धानिया

- लेखक उम्मेद धानिया का जन्म 18 दिसम्बर 1987 को राजस्थान के चूरू जिले की तारानगर तहसील के गांव राजपुरा में तीजा देवी एवं मनीराम मेघवाल के घर हुआ।

-उम्मेद की पहली ही कहानी-पांडुलिपि ‘आंतरो’ पर कमला गोइन्का फाउण्डेशन, मुम्बई का किशोर कल्पनाकांत युवा साहित्यकार पुरस्कार मिला।

दूसरी कथा-पुस्तक ‘लेबल’ पर धानुका सेवा ट्रस्ट, फतेहपुर-शेखावाटी का श्रीमती बसंती देवी धानुका युवा साहित्यकार पुरस्कार मिला एवं अब साहित्य अकादेमी का युवा पुरस्कार मिला है।

ग्राम्य परिवेश के बीच चींथीजते मनुष्य की दास्तान को केंद्र में रखकर लिखा गया धानिया का राजस्थानी उपन्यास शीघ्र ही आने वाला है।

इससे पूर्व धानिया ने साहित्य अकादेमी नई दिल्ली के लिए लक्ष्मण माने की प्रसिद्ध मराठी आत्मकथा का ‘ओपरा’ नाम से राजस्थानी अनुवाद भी किया है।
उल्लेखनीय है कि धानिया की कहानी पर प्रकाश गांधी निर्देशित राजस्थानी फिल्म ‘बीरानी सरदार’ भी बनी है।

धानिया का बचपन व शिक्षा


-धानिया का बचपन मुफलिसी में बीता। आठवीं तक की शिक्षा सरकारी स्कूल से ली। फिर 2001 में प्राइवेज दसवीं पास की। वर्ष 2014 में ऑपन स्कूल से बारहवीं पास और फिर एमए प्रीवियस तक की शिक्षा ली।

-अकादमी ने पांडुलिपि छपवाने के लिए दस—पंद्रह हजार रुपए की मदद देने से इनकार कर दिया था।
-इसके कुछ दोस्तों ने मिलकर अपनी जेब से चंदा एकत्रित कर किताब छपवाई।
किताब का शीर्षक था- 'लेबल'... सामाजिक दंश के कारण लगा लेबल...।