
नई दिल्ली। टीम इंडिया के पूर्व क्रिकेटर वसीम जाफर (Wasim Jaffer) पर उत्तराखंड क्रिकेट संघ ने आरोप लगाया है कि राज्य की टीम के कोच के रूप में उन्होंने मजहब को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। इसके बाद उन्होंने उत्तराखंड के कोच का पद छोड़ दिया। टीम इंडिया के पूर्व स्पिनर अनिल कुंबले (Anil Kumble) और इरफान पठान(Irfan Pathan) ने भी जाफर का समर्थन किया। वहीं अब यह मामला राजनीतिक तूल पकड़ता जा रहा है। इस मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) भी कूद पड़े हैं।
क्रिकेट में राजनीति की एंट्री
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘पिछले कुछ सालों में नफरत को इस कदर सामान्य कर दिया गया है कि हमारा प्रिय खेल भी इसकी चपेट में आ गया। भारत हम सभी का है। उन्हें हमारी एकता भंग मत करने दीजिए।’
जाफर ने आरोपों को किया खारिज
उत्तराखंड क्रिकेट एसोसिएशन (Uttarakhand Cricket Association) से मतभेद होने के चलते कोच पद से इस्तीफा देने वाले भारत के पूर्व बल्लेबाज वसीम जाफर (Wasim Jaffer) ने प्रदेश संघ के सचिव द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज किया है। संघ सचिव महिम वर्मा (Mahim Verma) ने आरोप लगाए थे कि जाफर ने धर्म के आधार पर टीम में चयन करने की कोशिश की थी। बता दें कि जाफर को जून 2020 में उत्तराखंड का कोच बनाया गया था। उन्होंने एक साल का करार किया था।
कम्युनल एंगल निकालना बहुत ही दुखद
वसीम जाफर पर मुस्लिम खिलाड़ियों को ज्यादा तवज्जों देने के आरोप लगाए गए हैं। इस पर जाफर ने कहा कि ऐसे आरोपों से उन्हें काफी तकलीफ पहुंची है। उन्होंने कहा, जो कम्युनल एंगल लगाया गया है वह बहुत दुखद है। उन्होंने आरोप लगाया कि मैं इकबला अब्दुल्ला (Iqbal Abdulla) का समर्थन करता हूं और उसे कप्तान बनाना चाहता हूं, इस प्रकार के सभी आरोप सरासर गलत हैं। बता दें कि जाफर ने मंगलवार को उत्तराखंड के कोच पद से इस्तीफा दे दिया था।
मैं तो बिस्टा को कप्तान बनना चाहता था
जाफर ने कहा कि मैं तो जय बिस्टा को कप्तान बनाना चाहता था, लेकिन अन्य चयनकर्ताओं ने मुझे इकबाल अब्दुल्ला को कप्तान बनाने के सुझाव दिए। कहा कि वह सीनियर खिलाड़ी है और आईपीएल भी खेल चुका है। ऐसे मैंने उनका सुझाव मान लिया।
मैंने मौलवियों को नहीं बुलाया
वसीम जाफर ने कहा कि प्रैक्टिस सेशन के दौरान वे मौलवियों को लेकर नहीं आए थे। उन्होंने कहा कि बायो—बबल में मौलवी आए और हमने नमाज पढ़ी। मैं आपको बताना चाहता हूं कि देहरादून में कैंप के दौरान दो या तीन जुमे को आए, उन्हें मैंने नहीं बुलाया था। हम रोज कमरे में ही नमाज पढ़ते थे, लेकिन जुमे की नमाज मिलकर पढ़ते थे तो मैंने सोचा कि कोई इसके लिए आएगा तो अच्छा ही रहेगा। हमने नेट प्रैक्टिस के बाद पांच मिनट ड्रेसिंग रूम में नमाज पढ़ी। अगर यह सांप्रदायिक है तो मैंने नमाज के हिसाब से प्रैक्टिस सेशन के टाइम को चेंज क्यों नहीं किया।
Published on:
14 Feb 2021 11:06 am
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