
नई दिल्ली। मेडिकल प्रवेश में जजों के नाम पर रिश्वत देने के मामले में एसआईटी जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट मंगलवार को इस पर फैसला सुना सकती है। सोमवार को याचिकाकर्ता कामिनी जायसवाल की ओर से वरिष्ठ वकील शांति भूषण और प्रशांत भूषण ने दलीलें दीं वहीं, केंद्र से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पक्ष रखा।
न्यायपालिका की छवि पर सवाल
सोमवार को जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस अरुण मिश्र और जस्टिस एएम खानविलकर की बेंच में डेढ़ घंटे तक इस मामले में बहस चली। इस दौरान जस्टिस मिश्रा ने कहा, याचिका में लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया न्यायपालिका की छवि को खराब करने वाले हैं। जब न्यायिक सुधार और जवाबदेही को लेकर एक याचिका पहले से लंबित है तो नई याचिका दाखिल नहीं करनी थी। जस्टिस मिश्र ने कहा, याचिकाकर्ता का यह कहना कि मामले की सुनवाई जस्टिस चेलमेश्वर की बेंच करे, यह बताता है कि याचिकाकर्ता मामले को विशेष दिशा और तरीके से चलाना चाहते हैं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और अन्य को कई बार इस बात के लिए चेतावनी दी कि वे बिना सुबूत के चीफ जस्टिस के खिलाफ आरोप न लगाएं।
सीबीआई ने दर्ज किया था मामला
वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण ने कहा, चीफ जस्टिस के खिलाफ सीधे आरोप नहीं हैं। यह याचिका सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर की गंभीरता देखते हुए दायर की गई है। एफआईआर में किसी सिटिंग जज का नाम नहीं है, लेकिन ये एक लंबित मामले को प्रभावित करने के लिए रिश्वत लेने का मामला है। यह गंभीर आरोप है। इससे पहले सुनवाई की शुरुआत में शांति भूषण ने कहा, इस बेंच को सुनवाई नहीं करनी चाहिए लेकिन बेंच उनकी दलील से सहमत नहीं थी। वहीं, अटार्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा, दोनों याचिकाओं ने न्यायपालिका की की छवि को नुकसान पहुंचाया है। इसलिए इस नुकसान की भरपाई के लिए याचिकाओं को वापस लेना चाहिए।
Updated on:
14 Nov 2017 02:59 pm
Published on:
14 Nov 2017 11:53 am
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