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भागवत कथा: जानिए क्यों श्रीकृष्ण को करना पड़ा रुक्मिणी का अपहरण

श्रीमद्भागवत कथा: छठवें दिन श्रीकृष्ण रुक्मिणी विवाह का किया वर्णन

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दमोह

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Samved Jain

May 11, 2025

Shri Krishna Sudarshan Chakra

Shri Krishna Sudarshan Chakra

दमोह. जमुनिया हजारी में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के छठे दिन श्रीकृष्ण रुक्मिणी विवाह का आयोजन हुआ। जिसे बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। कथा व्यास किशोरी वैष्णवी ने रास पंच अध्याय का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि महारास में पांच अध्याय है। उनमें गाए जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण है। जो भी ठाकुर के इन पांच गीतों को भाव से गाता है, वह भव पार हो जाता है।
उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है। कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थानए कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या गृहण करना, कालयवन का वध, उधव गोपी संवाद, उधव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना, द्वारका की स्थापना व रुकमणी विवाह के प्रसंग का संगीतमय भावपूर्ण पाठ किया गया। भारी संख्या में भक्तगण दर्शन के लिए शामिल हुए। शनिवार को पूरा प्रांगण श्रद्धालुओं से पूर्णरूपेण भरा था और सभी पुष्प वर्षा के साथ खूब झूम और नाच कर रहे थे।
कथा के दौरान किशोरी ने कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया।
महारास लीला द्वारा ही जीवात्मा परमात्मा का ही मिलन हुआ। उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने 16 हजार कन्याओं से विवाह कर उनके साथ सुखमय जीवन बिताया। कथावाचक किशोरी वैष्णवी गर्ग ने भागवत कथा के महत्व को बताते हुए कहा कि जो भक्त प्रेमी कृष्ण रुक्मिणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। कथा श्रवण के दौरान स्थानीय महिलाओं पर पांडवों के भाव अवतरित हुए। कथा वाचक ने कहा कि जीव परमात्मा का अंश है, इसलिए जीव के अंदर अपारशक्ति रहती है यदि कोई कमी रहती है, वह मात्र संकल्प की होती है। संकल्प व कपट रहित होने से प्रभु उसे निश्चित रूप से पूरा करेंगे। उन्होंने महारास लीला, उद्धव चरित्र ,कृष्ण मथुरा गमन और रुक्मणी विवाह महोत्सव प्रसंग पर विस्तृत विवरण दिया। रुक्मिणी विवाह महोत्सव प्रसंग पर व्याख्यान करते हुए उन्होंने कहा कि भगवान द्वारकाधीश ने रुक्मिणी के सत्य संकल्प को पूर्ण किया।

पंडित रवि शास्त्री ने कहा कि रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थी। भीष्मक मगध के राजा जरासंध के जागीरदार थे। रुक्मिणी का ज्येष्ठ भ्राता रुक्मी दुष्ट राजा कंस का मित्र था, जिसका कृष्ण द्वारा वध कर दिया गया था। इस कारण वह इस विवाह के विरुद्ध था। रुक्मिणी के माता-पिता रुक्मिणी का विवाह कृष्ण से ही करना चाहते थे, लेकिन रुक्मी ने इसका कड़ा विरोध किया। रुक्मी एक महत्वाकांक्षी राजकुमार था और वह निर्दयी जरासंध का क्रोध नहीं चाहता था, इसलिए उसने प्रस्तावित किया कि उनका विवाह शिशुपाल से किया जाए, जो कि चेदिदेश का राजकुमार व श्रीकृष्ण का फुफेरा भाई था। शिशुपाल जरासंध का एक जागीरदार और निकट सहयोगी भी था, इसलिए वह रुक्मी का भी सहयोगी था। भीष्मक अपनी आत्म इच्छा को मारकर रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल के संग करने के लिए स्वीकृति दे दी, लेकिन रुक्मिणी जो कि इस वार्तालाप को चुपके से सुन चुकी थी। उनने शीघ्र ही एक विश्वस्त ब्राह्मण को कृष्ण को संदेश देने के लिए मना लिया , जिसमें कृष्ण को विदर्भ आकर उन्हें अपने साथ ले चलने की विनती की। श्रीकृष्ण ने युद्ध से बचने के लिए उनका हरण कर लिया। द्वारिका में श्री कृष्ण रुक्मिणी का विवाह सम्पन्न हुआ।