पत्रिका ने जब मामले में पड़ताल की तो पता चलता है कि बिना आईडी ऑपरेटर की सहमति से दूसरा व्यक्ति उसकी आईडी से कुछ नहीं कर सकता है। क्योंकि, आईडी का उपयोग बॉयोमैट्रिक अटेंडेंस से शुरू होकर आइरिस(आंखों के स्केन) जैसी कड़ी सुरक्षा के बीच होता है। ऐसे में एक ऑपरेटर या उसके द्वारा अधिकृत ऑपरेटर के अलावा अन्य इसका उपयोग किसी भी स्थिति में नहीं कर सकते हैं। पड़ताल में पता चलता है कि आईडी ऑपरेटर अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में स्थानीय अधिकारी को सेट करके अपनी आईडी की क्लोन आईडी बनवाकर बेच देते हैं। इसमें संबंधित को आईडी से संबंधित सभी एक्सेस जिसमें फिंगर प्रिंट तक शामिल है, क्लोन बनाकर दिए जाते हैं। इसके एवज में तगड़ी राशि ली जाती है। इसके बाद ही उक्त आइडी का उपयोग किया जा सकता है और यहीं से असल मुनाफे का चक्कर शुरू होता है।
पत्रिका ने यूआइडी के आईडी ऑपरेटर के नियमों को देखा तो पूरा मामला की बदल गया। दरअसल, नियम के अनुसार जिस ऑपरेटर के नाम पर आईडी दर्ज होती है, उसके वेरिफिकेशन के बिना क्लोन आईडी का संचालन भी संभव नहीं है। नियम के अनुसार आईडी ऑपरेटर को रोज ही आइरिस वेरिफिकेशन करना होता है। इस वेरिफिकेशन के बाद ही आधार कार्ड बनाने की प्रोसेस होती है। इस वेरिफिकेशन में आईडी ऑपरेटर को दिखता है कि उसने दिनभर में कितने आधार बनाए हैं, जिसे वह चेक करने के बाद आइरिस वेरिफिकेशन करता है, तभी प्रोसेस आगे बढ़ती है। अन्यथा की स्थिति में आधार नहीं बन सकता है।
प्रकरण में ई गर्वनेंस के प्रभारी प्रबंधक महेश अग्रवाल ने बताया कि एक आईडी लोक सेवा केंद्र दमयंतीपुरम की है, जबकि दूसरी आइडी जनपद पंचायत जबेरा के गोलापट्टी ग्राम पंचायत की है। दोनों ही आईडी के ऑपरेटर को सभी जांच के बाद ही आधार आईडी जारी की गई थी। एफआइआर में आईडी ऑपरेटर के नाम नहीं है, के सवाल पर उन्होंने कहा कि उन पर फिलहाल आरोप तय नहीं है। विभाग स्तर पर यह मामला फ्रॉड का समझ आता है। इसके अलावा अन्य सवालों के वह गोलमोल जवाब देते नजर आए।