बता दें कि हरदुआ, सुमेर, चौपरा, छपरवाहा, मोसीपुर, सगरा, कुसमी, बनवार, घटेरा, हिनौती और लखनी जैसे गांवों में बारिश के समय सड़कों पर बने पुल जलमग्न हो जाते हैं। ग्रामीणों की मानें, तो बरसात में इन पुलों से गुजरना जोखिम भरा हो जाता है और कई बार गांव पूरी तरह टापू बन जाते हैं। छात्र-छात्राएं स्कूल नहीं पहुंच पाते और मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता।
ग्रामीण कर रहे सालों से मांगग्रामीणों का कहना है कि कई बार जिला प्रशासन को इन समस्याओं से अवगत कराया गया है, लेकिन अब तक किसी भी पुल की ऊंचाई बढ़ाने का कोई प्रयास नहीं हुआ है। जनपद सदस्य पंडित गोविंद तिवारी ने बताया कि बारिश में जिला मुख्यालय या तहसील जाने की कोशिश करना एक बड़ी चुनौती बन जाती है। स्वास्थ्य सेवाएं रुक जाती हैं और छात्रों की पढ़ाई बाधित होती है। वहीं मनगुंवा, छपरवाहा, लखनी, पिपरिया और नवल जैसे गांवों में नदियों और नालों के किनारे बने पुलों की ऊंचाई कम होने से ये गांव बरसात में टापू बन जाते हैं।
शून्य नदी, छपरवाहा नाला, धुंगगी नाला, व्यारमा नदी और महादेव घाट जैसे स्थानों पर बने पुल-पुलिया हल्की बारिश में ही जलमग्न हो जाते हैं। विजय सागर जबेरा मार्ग पर बनी कौरता पटी पुलिया तो थोड़ी सी बारिश में ही बाढ़ग्रस्त हो जाती है।
सेतु निर्माण अधूरा, लिंक रोड आज भी बेहाल हालांकि बनवार-बांदकपुर मार्ग और नोहटा रोड पर मुख्य सेतु निर्माण कार्य हो चुका है, लेकिन दर्जनों लिंक रोड आज भी उपेक्षा का शिकार हैं। वहां पुराने और कम ऊंचाई वाले पुल आज भी ग्रामीणों के लिए हर बारिश में मुसीबत बन जाते हैं। जंप उपाध्यक्ष प्रतिनिधि डॉ. सुजान सिंह ने कहा कि इन मार्गों पर ऊंचे पुलों का निर्माण अत्यंत आवश्यक है। प्रशासन को जल्द से जल्द संज्ञान लेकर कार्य शुरू करना चाहिए, ताकि क्षेत्रवासी हर साल इस बाढ़ जैसी स्थिति से न जूझें।