कुपोषण व गर्भवती महिलाओं तक नहीं पहुंच रहा पोषण आहार
खत्म नहीं हो रहा भ्रष्टाचार दमोह. जिले में गरीब तबके की गर्भवती महिलाओं और कुपोषण का शिकार नौनिहालों को महिला व बाल विकास विभाग की योजनाओं का लाभ समय पर नहीं मिल पा रहा है। क्योंकि आंगनबाड़ी केंद्रों के संचालन में मनमानी और लापरवाही हो रही है। इस कारण पोषण आहार वितरण में भी समस्याएं […]
खत्म नहीं हो रहा भ्रष्टाचार
खत्म नहीं हो रहा भ्रष्टाचार दमोह. जिले में गरीब तबके की गर्भवती महिलाओं और कुपोषण का शिकार नौनिहालों को महिला व बाल विकास विभाग की योजनाओं का लाभ समय पर नहीं मिल पा रहा है। क्योंकि आंगनबाड़ी केंद्रों के संचालन में मनमानी और लापरवाही हो रही है। इस कारण पोषण आहार वितरण में भी समस्याएं आ रही हैं। वहीं विभाग के आला अधिकारी फील्ड वर्क फील्ड में जाने के बजाए कार्यालय में बैठकर निपटा रहे हैं। जिससे अधिकारी जमीनी हकीकत से बेखबर हैं।
पोषण आहार वितरण सहित विभाग की अन्य योजनाओं की सातों ब्लॉक में ङ्क्षचताजनक स्थिति है। जिले में 1700 से ज्यादा आंगनबाड़ी केंद्र हैं, जिनमें से अधिकांश ग्रामीण अंचलों में स्थित हैं। लेकिन लापरवाही व मनमानी होने से ग्रामीण क्षेत्रों में ही कुपोषण की समस्या भी अधिक है। कहने को आंगनबाड़ी केंद्रों का मुख्य उद्देश्य गर्भवती महिलाओं और बच्चों को पोषण आहार, स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा प्रदान करना है, लेकिन मौजूदा हालात में इन केंद्रों का संचालन सही तरीके से नहीं हो रहा है। पोषण आहार वितरण में अनियमितता और गुणवत्ता की कमी के कारण बच्चों और गर्भवती महिलाओं को आवश्यक पोषण नहीं मिल पा रहा है। आला अधिकारियों की अनदेखी का खामियाजा कुपोषण का शिकार बच्चे व गर्भवती महिलाएं भोग
रही हैं।
10.5 हजार बच्चे कुपोषित, 24 फीसदी अति कुपोषित
महिला बाल विकास विभाग के अनुसार वर्तमान में जिले में लगभग 10.5 हजार बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। इनमें से करीब 2.5 हजार बच्चे अति कुपोषित हैं, जो कुल संख्या का 24 फीसदी से अधिक है। ये बच्चे बौने, ऊंचाई के अनुपात में कम वजन जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। जिले में सबसे ज्यादा कुपोषण तेंदूखेड़ा ब्लॉक में पाया गया है। जहां कुपोषित बच्चों की संख्या सबसे अधिक है।
बच्चों की पहचान में लापरवाही, फिर इलाज में देरी
लापरवाही आंगनबाड़ी केंद्रों में पोषण आहार के वितरण के दौरान तक सीमित नहीं है। कुपोषित बच्चों के इलाज में भी गंभीर लापरवाही सामने आ रही है। आमतौर पर गंभीर बच्चों को एनआरसी केंद्रों में भर्ती कर इलाज किया जाता, लेकिन समय पर पहचान और भर्ती न होने के कारण कई बच्चे गंभीर से अति गंभीर हो जाते हैं। पूर्व में कई बार समय पर इलाज न मिलने से ऐसे ही कई मासूमों की मौत भी हो
जाती है।
कुपोषण से मुक्ति के सरकारी प्रयत्न व जिले की स्थिति
मुख्यमंत्री बाल आरोग्य संवर्धन कार्यक्रम: बच्चों के पोषण स्तर में सुधार के लिए मिशन मोड में कार्य किया जा रहा है। पर जिले में क्रियान्वयन उम्मीद के अनुरूप नहीं।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की भूमिका: कुपोषित बच्चों की पहचान और पोषण संबंधी सलाह देने का कर्तव्य। लेकिन जिले में कार्यकर्ता रुचि नहीं ले रहीं।
अटल बिहारी वाजपेयी बाल आरोग्य व पोषण मिशन: इसके तहत जिलेवार कुपोषण निवारण के विशेष प्रयास किए जा रहे, लेकिन में स्थित सही नहीं।
पोषण आहार वितरण: जानकारी के अनुसार जिले में हर महीने 3 करोड़ रुपए सिर्फ पोषण आहार पर खर्च हो रहे, लेकिन कुपोषण खत्म होना, तो दूर कम भी नहीं हो रहा।
&जो योजनाएं चल रही हैं, उनका लाभ पहुंचाया जा रहा है। पोषण आहार का वितरण भी किया जा रहा है। यदि पोषण वितरण में कहीं लापरवाही हो रही है, तो निरीक्षण कर कार्रवाई कल की जाएगी।
-संजीव मिश्रा, महिला बाल विकास अधिकारी दमोह
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