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सात समंदर पार मोरक्को में गूंजी बस्तर के बापी की कहानी, कई चीजों में किया जा रहा इस नुस्खे का इस्तेमाल

Bapi na uwat: दक्षिण बस्तर जिला दंतेवाड़ा में संचालित बापी न उवाट यानि दादी नानी के नुस्खे की कहानी सात समंदर पार मोरक्को के माराकेच में सुनी गई। इस नुस्खे का इस्तेमाल जिले के दूरस्थ क्षेत्रों में कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में सामाजिक व व्यवहार परिवर्तन के औजार के तौर पर किया जा रहा है।

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मोरक्को में गूंजी बस्तर के बापी की कहानी

मोरक्को में गूंजी बस्तर के बापी की कहानी

Bapi na uwat: दक्षिण बस्तर जिला दंतेवाड़ा(Bastar) में संचालित बापी न उवाट यानि दादी नानी के नुस्खे की कहानी सात समंदर पार मोरक्को के माराकेच में सुनी गई। इस नुस्खे का इस्तेमाल जिले के दूरस्थ क्षेत्रों में कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में सामाजिक व व्यवहार परिवर्तन के औजार के तौर पर किया जा रहा है।

दो साल पहले शुरू हुआ था कार्यक्रम
दन्तेवाड़ा(Bastar) जिले की अभिनव पहल, बापी न उवाट जिला प्रशासन व यूनिसेफ के तकनीकी सहयोग से जिले में कुपोषण की दर में कमी लाने तथा स्वास्थ्य व्यवहारों को अपनाने 10 दिसंबर 2020 को बापी न उवाट कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। दादी या नानी को दंतेवाड़ा(Bastar) जिले के गोंडी बोली में बापी कहा जाता है।

सात समंदर पार मोरक्को में गूंजी बापी की कहानी
जिले की 200 बापी ग्राम पंचायतों में समुदाय के बीच में रहकर समुदाय को स्वस्थ व्यवहारों को अपनाने प्रेरित कर रही है। बापी के साथ साथ अब युवा भी सतरंगी नायक व नायिका के रूप में समुदाय को जागरूक करने आगे आ रहे है। ऐसे में बापी समुदाय स्तर पर देवगुड़ी में सतरंगी सभा, ग्राम सभा, महिला सभा, युवा सभा के माध्यम से स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, स्वच्छता को प्राथमिकता देते हुए विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से व्यवहारों को अपनाने प्रेरित कर रही है। किसी ने सोचा नही था कि दंतेवाड़ा(Bastar) जैसे अति संवेदनशील व दुर्गम क्षेत्र में बुजुर्ग महिलाएं बापी की भूमिका अदा करते हुए, दंतेवाड़ा में सफलता की कहानी गढ़ेंगे और वो सात समंदर पार मोरक्को में गूंजेगी।

दरअसल, दिसंबर के इस प्रथम सप्ताह में मोरक्को के माराकेच में आयोजित सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार के अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन में छत्तीसगढ़ की अभिनव पहलों का प्रदर्शन किया गया। दंतेवाड़ा (Bastar) जिले का ‘बापी ना उवाट’ कार्यक्रम अपने अभिनव पहल के रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवहार परिवर्तन के क्षेत्र में वाहवाही बटोर रहा है। इस कार्यक्रम में स्वयंसेवक के रूप में अपने कार्य का लोहा मनवाने वाली दादियां, जिन्हें स्थानीय गोंडी बोली में बापी कहा जाता है।

143 ग्राम पंचायतों में बापी
माताओं और परिवार के सदस्यों को बच्चों की देखभाल, भोजन, स्तनपान, स्वास्थ्य और पोषण पर सुझाव देते हुए प्रेरित करती हैं। जिले की 143 ग्राम पंचायतों में से प्रत्येक में एक बापी है। बापियों को ग्राम-स्तर के स्वयंसेवकों, सतरंगी नायक और नायिका का सहयोग मिलता है। छत्तीसगढ़ के इस मॉडल को सामाजिक व्यवहार परिवर्तन एसबीसी के यूनिसेफ प्रमुख सिद्धार्थ श्रेष्ठ और एसबीसी विशेषज्ञ अभिषेक सिंह ने प्रमुखता से बताया।