मुनि विनय सागर महाराज के सानिध्य में सिद्धचक्र महामंडल विधान 28 से
धर्म का मार्ग और पुण्य संचय का साधन कभी नहीं छोडऩा चाहिए:मुनि
दतिया। धर्म का मार्ग और पुण्य संचय का साधन कभी नहीं छोडऩा चाहिए। मनुष्य के जीवन की नैया पार इन्हीं दोनो मार्गो के माध्यम से होनी चाहिए। धर्म का मार्ग और पुण्य संचय का साधन दोनो एक दूसरे के पूरक है। क्योंकि जो व्यक्ति धर्म के मार्ग पर चलेगा वही पुण्य कर्म करेगा। उक्त विचार मुनि विनय सागर महाराज ने बुधवार को सिद्धक्षेत्र सोनागिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही। इस दौरान मुनि ध्याननंद सागर महाराज भी मौजूद रहे।
मुनि विनय सागर महाराज ने कहा कि धर्म का मार्ग जीवन में शांति देता है। इंसान को धर्म के साथ शांति का जीवन मिल जाए तो इससे बड़ी कोई पूंजी नहीं हो सकती है। हम अपने जीवन में धर्म और पुण्य दोनो का समावेश आसानी से कर सकते है। लेकिन इंसान इनका समावेश नहीं कर रहा है। जिस कारण मनुष्य भटक रहा है और भटकते भटकते वह मनुष्य का जीवन पूरा कर लेगा। इसके बाद उसे पता नहीं अगले जन्म में कौन सा भव (योनि) मिले। विचारों से ही संस्कारों की उत्पत्ति होती है। यही विचार हमारे जीवन को श्रेष्ठ बनाते है। इसलिए मनुष्य को अपनी लगन भगवान के प्रति लगानी चाहिए। जिससे वह इसी जन्म में भव को पार कर सके। इस मौके पर जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि जैन सिद्धक्षेत्र सोनागिर में श्रमण मुनि विनय सागर महाराज एवं मुनि ध्याननंद सागर महाराज के सानिध्य में दिगंबर जैन कांच का मंदिर में अष्टान्हिका महापर्व पर 1008 सिद्धचक्र महामण्डल विधान एवं विश्वशांति महायज्ञ का आयोजन 28 फरवरी से 7 मार्च तक किया जा रहा है।