कोरोना के बाद खस्ताहाल हुई 'खादी',बिक्री 7 करोड़ रुपए से घटकर 2 करोड़, रोजगार प्रभावित होने से बुनकर भी आहत
सरकार व अन्य स्थानों पर भी कम जा रही है खादी

दौसा. देश में गरीब से लेकर अमीर व राजनेताओं की पंसदीदा रही खादी कोरोना काल में काफी प्रभावित रही, जो आज भी उभर नहीं पा रही है। इसका प्रभाव खादी समितियों से लेकर खादी का कपड़ा बुनने वाले बुनकरों के रोजगार तक पड़ा है। बात दौसा खादी समिति की करें तो उत्पादन में तो अधिक असर नहीं पड़ा है, लेकिन बाजार मंदा होने के कारण इसकी बिक्री हाशिये पर आ गई है। इससे खादी समितियों की आर्थिक स्थिति भी डांवाडोल हो गई। खादी से जुड़े अधिकारियों की मानें तो खादी समिति को सरकार का भी संबल नहीं मिला।
एक तिहाई से भी कम बिक्री पर सिमटी खादीकोरोना काल में बाजार बंद होने के कारण खादी के कपड़े का उत्पादन तो हुआ, लेकिन पिछले वर्षों के मुकाबले बिक्री नहीं हो पाई। दौसा खादी समिति की वर्ष 2018-19 में 4 करोड़ 13 लाख रुपए की बिक्री हुई थी। जबकि 2019-20 में बढ़ कर बिक्री का आंकड़ा 7 करोड़ 17 लाख पर पहुंच गया। वहीं कोरानाकाल में खादी की बिक्री प्रभावित हो गई और वर्ष 2020-21 में यह बिक्री घटकर मात्र 2 करोड़ 14 लाख रुपए पर पहुंच गई। ऐसे में वर्ष 2019-20 के मुकाबले कोरोना वर्ष में बिक्री घट कर एक तिहाई से भी कम पर सिमट गई।
रोजगार भी इतना हुआ प्रभावित:
वर्ष 2019-20 में खादी समिति ने कपड़ा बुनने वाले बुनकरों को 1 करोड़ रुपए मजदूरी दी थी, जबकि 2020-21 में मजदूरी घट कर मात्र 78 लाख रुपए पर ही आ गई। इससे कपड़ा बुनने वाले मजदूरों की आमदनी घट गई।
यह है पिछले वर्षों का उत्पादन खादी समिति दौसा में पिछले तीन वर्षों में उत्पादन में वर्ष 2018-19 में 6 करोड़ 53 लाख रुपए के कपड़े व स्टील फर्नीचर का उत्पाद किया था। जबकि वर्ष 2019 - 20 में 5 करोड़ 53 लाख रुपए का उत्पादन किया गया था। इसी प्रकार वर्ष 2020 में 4 करोड़ 2 रुपए का उत्पादन किया गया था।
काफी प्रभावित रही खादीकोरोना काल में वैसे तो पूरे देश की आर्थिक स्थिति डांवाडोल रही, लेकिन खादी भी काफी प्रभावित रही। फिर भी दौसा खादी ने अपने आप को सम्भाला। कोरोना से बाजार बंद रहने से खादी उत्पादों की बिक्री नहीं हो पाई। सरकार ने प्रदशर्नियां भी नहीं लगने दी व आर्थिक मदद भी नहीं की। इससे खादी काफी प्रभावित रही।
अनिल शर्मा, मंत्री खादी समिति दौसा।

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