
बरसों से हर दिन क्षेत्र में सक्रिय रहने वाले सज्जन नहीं भांप सके खतरा, तीन माह में ही सोनकर ने फतह किया किला
देवास/सोनकच्छ. पांच बार विधायक, दो बार मंत्री, एक बार सांसद रहे व बरसों से हर दिन सोनकच्छ विधानसभा में सक्रिय रहने वाले कांग्रेस के कद्दावर नेता सज्जनसिंह वर्मा की हार इस चुनाव में सभी को चौंकाने वाली रही। लगभग हर रोज विधानसभा में पहुंचने वाले सज्जन खुद अपनी हार का खतरा नहीं भांप सके। वहीं चुनाव के तीन माह पूर्व प्रत्याशी बनकर विधानसभा में पहुंचे भाजपा के डॉ. राजेश सोनकर ने कुछ ही समय में सोनकच्छ की नब्ज टटोल ली और फतह हासिल की। कांग्रेस प्रत्याशी वर्मा की अब तक के चुनाव में यह सबसे बड़ी हार है।भाजपा की जीत में जहां उप्र के सीएम योगी आदित्यनाथ व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की सभा ने बड़ा असर दिखाया वहीं कांग्रेस की ओर से हुई राजस्थान के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट की सभा ज्यादा असर नहीं दिखा सकी। विधानसभा में पूरी भाजपा जहां चुनाव में एकजुट होकर जमीन स्तर पर सक्रिय नजर आई वहीं कांग्रेस केवल वर्मा के इर्द-गिर्द रही। वहीं कांग्रेस नेता वर्मा द्वारा धर्म गुरुओं, वरिष्ठ नेताओं को लेकर उपयोग किए गए शब्द भी कहीं न कहीं उनके लिए नुकसानदायक रहे।
भाजपा हुई एकजुट, 290 बूथों पर जमाई बिसात
विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही भाजपा ने सोनकच्छ विधानसभा को कांग्रेस के कब्जे से छीनने की तैयारी शुरू कर दी थी। संगठन का भी लक्ष्य था कि किसी भी कीमत पर सोनकच्छ भाजपा के खाते में आए। इसके लिए वरिष्ठ नेताओं ने लगातार दौरे किए। इसके बाद बूथ स्तर तक बिसात बिछाकर 290 बूथ मजबूत किए गए। वहीं तीन माह पहले भाजपा ने 17 अगस्त को जो सूची जारी कि उसमें सोनकच्छ से डॉ. सोनकर को प्रत्याशी बना दिया गया। ऐसे में डॉ. सोनकर को चुनाव प्रचार व पूरी विधानसभा में पहुंचने के लिए तीन माह का समय मिल गया। डॉ. सोनकर के सामने विधानसभा में तितर-बितर भाजपा को एक धागे में पिरोने की सबसे बड़ी चुनौती थी। वहीं 290 पोलिंग बूथ के 2 लाख 34 हजार मतदाताओं तक पहुंचना भी बड़ा मुश्किल लक्ष्य था। ऐसे में सोनकर व भाजपा पदाधिकारियों ने सभी पुराने वरिष्ठ नेताओं को साधा और सक्रिय किया। वहीं युवा नेताओं तक भी पहुंच बनाई। हर वर्ग के नेताओं ने मिलकर काम किया। वहीं पार्टी के नेताओं की रणनीति भी काम आई और सोनकर ने अंतत: जीत हासिल की।
नेताओं को नहीं साध सके सज्जन
उधर कांग्रेस प्रत्याशी वर्मा की बात की जाए तो पूरे चुनाव में वे खुद और उनके चुनिंदा नेताओं के पास ही सारी जिम्मेदारियां रही। वहीं टोंकखुर्द क्षेत्र के पुराने नेताओं के एकाएक कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने से परिस्थितियां विपरीत होती गई। सज्जन उन्हें नहीं साध सके। वहीं चुनावी दौर में नेताओं को लेकर की गई टिप्पणियों ने भी कहीं न कहीं उन्हें नुकसान हुआ। हालात यह रहे कि पहले ही राउंड से टोंकखुर्द क्षेत्र से वर्मा को हार मिलना शुरू हो गई। इसके अलावा सोनकच्छ, भौंरासा और पीपलरावां क्षेत्र से भी लगातार हर राउंड में हार देखने को मिली।
अब तक की सबसे बड़ी हार
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस प्रत्याशी वर्मा ने 1985 में सोनकच्छ से पहला चुनाव लड़ा था और विधायक बने थे। इसके बाद 1993 में फिर कांग्रेस ने वर्मा को मौका दिया लेकिन इस चुनाव में भाजपा के सुरेंद्र वर्मा ने उन्हें 123 मतों से हरा दिया था। 1998 में फिर वर्मा ने चुनाव लड़ा और उन्होंने रिकॉर्ड 22855 मतों से भाजपा के सुरेंद्र वर्मा को हराया था। इसके बाद 2003, 2008 व 2018 में फिर वर्मा चुनाव लड़े और विधायक बने। विधानसभा में इस बार 25437 मतों वर्मा को हार मिली जो अब तक की उनकी सबसे बड़ी हार है। वहीं इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी डॉ. सोनकर की जीत अब तक के चुनावों में सबसे ज्यादा मतों से हुई जीत है।
फिर जीता नया उम्मीदवार
भाजपा ने जब-जब चुनाव में एकदम नया चेहरा उतारा उसे जीत मिली है। इससे पहले जब पहली बार सुरेंद्र वर्मा व राजेंद्र वर्मा को प्रत्याशी बनाया था तो दोनों ने जीत हासिल की थी। इस बार फिर भाजपा ने नया चेहरा मैदान में उतारा तो उसे सफलता मिली।
डॉ. सोनकर की जीत के कारण
-पूरी भाजपा एकमत हुई, पुराने लोगों ने भी मैदान संभाला
-टोंकखुर्द क्षेत्र के कांग्रेस के पुराने नेताओं ने भाजपा की सदस्यता ली
-प्रचार के लिए 3 माह का समय मिला
-लाडली बहना योजना व पीएम मोदी की ग्यारंटी ने भी मतदाताओं को भाजपा से जोड़ा
-उप्र के सीएम योगी आदित्यनाथ की चौबाराधीरा व पीपलरावां में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य में सभा ने असर छोड़ा
-वरिष्ठ व युवा कार्यकर्ताओं के साथ ही संघ, गुजरात के विधायकों सहित भाजपा पदाधिकारियों ने मैदान संभाले रखा
सज्जनसिंह वर्मा के हार के कारण
-धार्मिक गुरुओं के प्रति अपशब्दों का प्रयोग।
-वरिष्ठ नेताओं को भी अपशब्द कहते नजर आए।
-क्षेत्र के अधिकतर वरिष्ठ नेताओं का भाजपा में शामिल होना।
-युवाओं की पहली पसंद मोदी होने से समर्थन नहीं मिलना।
-लाडली बहना योजना के कारण कांग्रेस समर्थित बूथों पर भी हार मिली
Published on:
04 Dec 2023 11:30 pm
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