
मांडू। विंध्याचल पर्वत शृंखला पर स्थित शादियाबाद के नाम से मशहूर मांडू एक और प्राकृतिक संपदा नैसर्गिक सौंदर्य और ऐतिहासिक इमारतों से विश्व विख्यात है। दूसरी ओर मांडू धार्मिक आस्था का केंद्र भी रहा है। मांडू में शिव मंदिर बड़ी संख्या में है। पुरातन कालीन इन मंदिरों में विराजमान शिव अद्भुत है। सावन मास में इन मंदिरों पर भक्तों का जमावड़ा रहता है।
नीलकंठ महादेव मंदिर
विध्यांचल की पहाड़ी में विराजे महादेव के बारे में कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं के कष्ट दूर हो जाते हैं। मंदिर के ऊपर बने कुंड से निकलने वाले पवित्र झरने के जल से वर्ष भर गर्भ गुफा में विराजित शिवलिंग का जलाअभिषेक होता रहता है।
इस मंदिर का निर्माण बादशाह अकबर ने अपने सूबेदार को कहकर करवाया था। यहां पल-पल बादलों का उतरना पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। कुंड के नजदीक बनी नाग नागिन की जोड़े की आकृति से अनवरत जल बहता है।
मंडपेश्वर महादेव
मांडू के मध्य में स्थित मंडपेश्वर महादेव प्राचीन कालीन है। ऐसा माना जाता है कि ऋषि मार्कंडेय की तपोभूमि मंडपेश्वर से ही मांडू का नाम रखा गया। महाशिवरात्रि पर मांडू के राजा मंडलेश्वर महादेव नगर भ्रमण को निकलते हैं।
सात कोठडी महादेव
मांडू पहुंचने के ठीक पहले विंध्याचल पर्वत कंदरा में विराजमान भोलेनाथ का स्थान रमणीय स्थल है । यहां पर पूरे वर्ष जल भरा रहता है। गुफा नुमा यह मंदिर में भोलेनाथ के दर्शन के लिए डेढ़ से दो फीट पानी में होकर गुजर पड़ता है। इसी में बने दोनों कुंडों में ठंडे और गर्म पानी का एहसास होता है। यहां पर गहरी खाई का नजारा देखने लायक है।
टिपकिया महादेव
दूरस्थ ग्रामीण अंचल के जंगल में विराजमान टिपकिया महादेव वर्ष भर पानी रहता है। यही के जल से ग्रामीण गर्मियों में अपनी प्यास बुझाते हैं। सावन मास में भक्तों का जमावड़ा रहता है। इसके अलावा मांडू में राज राजेश्वर महादेव, बूढ़ी मांडू महादेव, काकड़ा खो महादेव के दर्शन करने दर्शनार्थी पहुंचते हैं।
शिव का अनुष्ठान शुरू
धरमपुरी. शिव आराधना के पवित्र माह श्रावण की शुरुआत के साथ टाटम्बरी आश्रम खतडग़ांव में संत प्रेमानंद बड़े गुरुजी के सानिध्य में 60 दिवसीय बिल्व पत्र अर्पण अनुष्ठान शिव के विशेष पूजन और अभिषेक के साथ शुरू हो गया। अनुष्ठान भादव मास में संपन्न होगा। अनुष्ठान में गुरुजी द्वारा प्रत्येक दिवस आश्रम में विराजित बाबा अभिमुक्तेश्वर महादेव को 5 हजार बिल्व पत्र अर्पित कर अभिषेक किए जाएंगे। सोमवार और अन्य विशेष तिथियों पर बाबा का आकर्षक शृंगार कर महाआरती व प्रसादी का वितरण होगा। गुरुजी ने शिव को बिल्व पत्र अर्पण करने के महत्व को बताते हुए कहा कि शिव को बिल्व पत्र अर्पण करने से हमारे तीन जन्मों के पापों का संहार होता है। इसलिए त्रिनेत्ररूपी भगवान शिव को तीन पत्तियोंयुक्त बिल्व पत्र जो सत्व.रज.तम का प्रतीक है को इस मंत्र को बोलकर अर्पित करना चाहिए।
सोनगढ़ महादेव मंदिर
यह महादेव मंदिर सभी मंदिरों के विपरीत है। यहां भोलेनाथ सोनगढ़ की पहाड़ी पर विशालकाय शिवलिंग के रूप में बैठे हैं। यह शिवलिंग इसी पर्वत को नक्काशी कर कर बनाया गया है।
Updated on:
18 Jul 2022 06:38 pm
Published on:
18 Jul 2022 06:36 pm
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