
आदि गुरु शंकराचार्य जयंती : ऐसा करने से भगवान शंकर और गुरु शंकराचार्य दोनों का मिलता है आशीर्वाद
अद्वैत वाद के सिंद्धांत को प्रतिपादित करने वाले हिंदु धर्म के महान प्रतिनिधि, जगद्गुरु एवं शंकर भगवद्पादाचार्य के नाम से विख्यात गुरु आदि शंकराचार्य जी की आज जयंती है। असाधारण प्रतिभा के धनी जगदगुरू आदि शंकराचार्य का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी तिथि को दक्षिण के कालाड़ी ग्राम में हुआ था। गुरु शंकराचार्य जी के पिता शिवगुरु नामपुद्रि के यहां जब विवाह के कई वर्षों बाद भी कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने अपनी पत्नी विशिष्टादेवी सहित संतान प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण करने के लिए से दीर्घकाल तक भगवान शंकर की आराधना की थी।
दोनों की पूर्ण श्रद्धा और कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें स्वप्न में दर्शन एक दीर्घायु सर्वज्ञ पुत्र का प्राप्ति का आशीर्वाद देते हुए कहा कि- मैं स्वयं ही पुत्र रूप में तुम्हारे यहां जन्म लूंगा। इस प्रकार आदि गुरु शंकराचार्य के रूप में स्वयं भगवान शंकर जी उनके पुत्र के रूप में अवतरीत हुए।
शंकराचार्य जयंती के दिन इस स्तुति का पाठ करने से भगवान शंकर एवं जगतगुरु शंकराचार्य जी दोनों के आशीर्वाद से व्यक्ति की एक साथ अनेक कामनाएं पूरी हो जाती है।
अथ श्री मणिकर्णिकाष्टकम्
1- त्वत्तीरे मणिकर्णिके हरिहरौ सायुज्यमुक्तिप्रदौ
वादं तौ कुरुत: परस्परमुभौ जन्तौ: प्रयाणोत्सवे।
मद्रूपो मनुजोSयमस्तु हरिणा प्रोक्त: शवस्तत्क्षणात्
तन्मध्याद् भृगुलाण्छनो गरुडग: पीताम्बरो निर्गत:।।
2- इन्द्राद्यास्त्रिदशा: पतन्ति: नियतं भोगक्षये ते पुन-
र्जायन्ते मनुजास्ततोSपि पशव: कीटा: पतंगादय:।
ये मातर्मणिकर्णिके तव जले मज्जन्ति निष्कल्मषा:
सायुज्येSपि किरीटकौस्तुभधरा नारायणा: स्युर्नरा:।।
3- काशी धन्यतमा विमुक्तिनगरी सालड़्कृता गंगया
तत्रेय मणिकर्णिका सुखकरी मुक्तिर्हि तत्किड़्करी ।
स्वर्लोकस्तुलित: सहैव विबुधै: काश्या समं ब्रह्मणा
काशी क्षोणितले स्थिता गुरुतरा स्वर्गो लघु: खे गत:।।
4- गंगातीरमनुत्तमं हि सकलं तत्रापि काश्युत्तमा
तस्यां सा मणिकर्णिकोत्तमतमा यत्रेश्वरो मुक्तिद:।
देवानामपि दुर्लभं स्थलमिदं पापौघनाशक्षमं
पूर्वोपार्जितपुण्यपुंजगमकं पुण्यैर्जनै: प्राप्यते।।
5- दु:खाम्भोनिधिमग्नजन्तुनिवहास्तेषां कथं निष्कृति-
र्ज्ञात्वैतद्धि विरंचिना विरचिता वाराणसी शर्मदा।
लोका: स्वर्गमुखास्ततोSपि लघवो भोगान्तपातप्रदा:
काशी मुक्तिपुरी सदा शिवकरी धर्मार्थकामोत्तरा।।
6- एको वेणुधरो धराधरधर: श्रीवत्सभूषाधरो
यो ह्येक: किल शंकरो विषधरो गंगाधरो माधर:।
ये मातर्मणिकर्णिके तव जले मज्जन्ति ते मानवा
रुद्रा वा हरयो भवन्ति बहवस्तेषां बहुत्वं कथम्।।
7- त्वत्तीरे मरणं तु मंगलकरं देवैरपि श्लाघ्यते
शक्रस्तं मनुजं सहस्त्रनयनैर्द्रष्टुं सदा तत्पर:।
आयान्तं सविता सहस्त्रकिरणै: प्रत्युद्गतोSभूत्सदा
पुण्योSसौ वृषगोSथवा गरुडग: किं मन्दिरं यास्यति।।
8- मध्याह्ने मणिकर्णिकास्नपनजं पुण्यं न वक्तुं क्षम:
स्वीयै: शब्दशतैश्चतुर्मुखसुरो वेदार्थदीक्षागुरु:।
योगाभ्यासबलेन चन्द्रशिखरस्तत्पुण्यपारं गत-
स्त्वत्तीरे प्रकरोति सुप्तपुरुषं नारायणं वा शिवम्।।
9- कृच्छ्रै: कोटिशतै: स्वपापनिधनं यच्चाश्वमेधै: फलं
तत्सर्वं मणिकर्णिकास्नपनजे पुण्ये प्रविष्टं भवेत्।
स्नात्वा स्तोत्रमिदं नर: पठति चेत्संसारपाथोनिधिं
तीर्त्वा पल्वलवत्प्रयाति सदनं तेजोमयं ब्रह्मण:।।
।। इति श्रीमच्छड़्कराचार्यविरचितं श्रीमणिकर्णिकाष्टकं सम्पूर्णम् ।।
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Published on:
28 Apr 2020 09:06 am
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