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जानें उगते सूर्य को देखकर हनुमान चालीसा पड़ने से कैसे प्रसन्न हो जाते हैं सूर्य देव

हनुमान जी को सूर्य देव का सर्वश्रेष्ठ शिष्य माना जाता है

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Shyam Kishor

May 03, 2020

जानें उगते सूर्य को देखकर हनुमान चालीसा पड़ने से कैसे प्रसन्न हो जाते हैं सूर्य देव

जानें उगते सूर्य को देखकर हनुमान चालीसा पड़ने से कैसे प्रसन्न हो जाते हैं सूर्य देव

शास्त्रों के अनुसार, धरती पर दिखाई देने वाले प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य नारायण माने जाते हैं। सूर्य उपासना को सर्वश्रेष्ठ पूजा मानी जाती है। कहा जाता है हर रोज उगते सूर्य को देखते हुए श्री हनुमान चालीसा का पाठ करने से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं सूर्य देव। हनुमान जी को सूर्य देव का सर्वश्रेष्ठ शिष्य माना जाता है। इसलिए जब उगते सूर्य के समक्ष हनुमान चालीसा पढ़ी जाती है तो भुवनभास्कर अति प्रसन्न होकर पाठकर्ता के जीवन को प्रकाश से भर देते हैं।

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श्री हनुमान चालीसा का पाठ करने से पूर्व इस सूर्य मंत्र का जप 108 बार करें एवं चालीसा पाठ के बाद सूर्यदेव को शुद्धजल का अर्घ्य अर्पित करें।

अथ श्री हनुमान चालीसा

।। दोहा ।।

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि।

बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥

बुद्धिहीन तनु जानिकै सुमिरौं पवनकुमार।

बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार॥

।। चौपाई ।।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥

महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥

शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥

विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥

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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥

सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे॥

लाय सँजीवनि लखन जियाए। श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥

रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। असकहि श्रीपति कंठ लगावैं॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥

जम कुबेर दिक्पाल जहाँ ते। कबी कोबिद कहि सकैं कहाँ ते॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राजपद दीन्हा॥

तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना॥

जुग सहस्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥

दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

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सब सुख लहै तुम्हारी शरना। तुम रक्षक काहू को डरना॥

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनौं लोक हाँक ते काँपे॥

भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥

सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥

और मनोरथ जो कोई लावै। सोहि अमित जीवन फल पावै॥

चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥

साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। असबर दीन्ह जानकी माता॥

राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥

अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥

संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥

जो शत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

।। दोहा ।।

पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप॥

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