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Chaurchan Parv 2025: भादो में इस दिन महिलाएं करती हैं चंद्रदेव की आराधना, जानें क्यों खास है चौरचन पूजा?

Chaurchan Parv 2025: चौरचन पर्व 2025 भाद्रपद मास की चतुर्थी को मिथिला क्षेत्र में मनाया जाने वाला खास लोकपर्व है। इस दिन महिलाएं चंद्रदेव और गणेश जी की पूजा कर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। जानें पूजा विधि, पौराणिक कथा और सांस्कृतिक महत्व।

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भारत

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Dimple Yadav

Aug 21, 2025

Chaurchan Parv 2025

Chaurchan Parv 2025 (photo- chatgtp)

Chaurchan Parv 2025: भारत और नेपाल के मिथिला क्षेत्र में मनाया जाने वाला चौरचन पर्व (Chaurchan Puja) अपनी अनूठी परंपरा और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं का व्रत माना जाता है और इसे चौथचंद, चारचन्ना पबनी या चोरचन पूजा जैसे नामों से भी जाना जाता है। यह पर्व चंद्रदेव और भगवान गणेश को समर्पित है और इसे भाद्रपद मास की चौथ को मनाया जाता है। मैथिली पंचांग के अनुसार यह 26 अगस्त को मनाया जाएगा।

चौरचन क्या है?

सनातन परंपरा में प्रकृति पूजा का विशेष महत्व रहा है। जल, अग्नि, वायु, सूर्य और चंद्रमा जैसे प्राकृतिक तत्वों को लोकपर्वों के रूप में सम्मान देने की परंपरा भारतीय संस्कृति का हिस्सा रही है। ठीक जैसे छठ पर्व में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, वैसे ही चौरचन पर्व में आधे उगते चंद्रमा की पूजा होती है। विशेष बात यह है कि जहां भारत के अन्य हिस्सों में भादो की चौथ को कलंकित चंद्रमा का दर्शन वर्जित माना जाता है, वहीं मिथिला में इसी दिन चंद्रमा को जल और नैवेद्य अर्पित कर पूजा की जाती है।

पौराणिक कथा और गणेश-चंद्र प्रसंग

चौरचन पर्व की उत्पत्ति भगवान गणेश और चंद्रमा की कथा से जुड़ी है। कहा जाता है कि एक बार गणेश जी कहीं जाते समय गिर पड़े और चंद्रमा ने उनका उपहास किया। इससे क्रोधित होकर गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दिया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जो भी व्यक्ति तुम्हारा दर्शन करेगा, उस पर चोरी या झूठ का कलंक लगेगा।इस श्राप के प्रभाव से स्वयं श्रीकृष्ण भी नहीं बच पाए और उन पर स्यमंतक मणि चोरी का झूठा आरोप लगा। इसी कारण मिथिला में इस दिन चंद्रमा की विशेष पूजा की परंपरा शुरू हुई, जिसे कलंक मुक्ति पर्व भी कहा जाता है।

मिथिला के राजा हेमांगद ठाकुर और चौरचन की परंपरा

चौरचन पर्व से जुड़ी एक ऐतिहासिक कथा मिथिला के राजा हेमांगद ठाकुर से भी संबंधित है। 16वीं शताब्दी में उन पर टैक्स चोरी का आरोप लगाकर दिल्ली के बादशाह ने उन्हें कैद कर लिया। कारावास में रहते हुए राजा हेमांगद ने अपनी खगोल विद्या का प्रयोग कर 500 वर्षों तक के सूर्य और चंद्र ग्रहण की तिथियों की सटीक गणना कर दी। जब उनकी भविष्यवाणी सही निकली, तो बादशाह ने उन्हें न केवल मुक्त कर दिया, बल्कि टैक्स से भी छूट दी। मिथिला लौटने पर उनकी रानी हेमलता ने कहा कि आज मिथिला का चंद्रमा कलंकमुक्त हुआ है। उसी दिन से चंद्र पूजन को सार्वजनिक पर्व के रूप में मान्यता मिली और इसे लोकपर्व चौरचन का रूप मिल गया।

पूजा की विधि

इस दिन शाम को आंगन या छत पर गोबर या मिट्टी से स्थान को पवित्र कर अरिपन (पारंपरिक रंगोली) बनाई जाती है। केले के पत्ते या थाली में दही, खीर, पूरी, मिठाई और पांच प्रकार के फल सजाए जाते हैं। महिलाएं उपवास रखकर चंद्रमा के उदय की प्रतीक्षा करती हैं और फिर चंद्रमा को अर्घ्य देकर परिवार की मंगलकामना करती हैं। घर के बुजुर्ग रोट तोड़कर प्रसाद का वितरण करते हैं और आस-पड़ोस में भी पकवान बांटे जाते हैं।

पकवान और प्रसाद का महत्व

चौरचन पर्व में खीर-दही, रोट (पूरी), दाल-पूरी और मौसमी फल विशेष प्रसाद के रूप में बनाए जाते हैं। परंपरा है कि इस दिन कोई भी व्यक्ति पकवान खाने से वंचित न रहे, इसलिए लोग प्रसाद को आपस में बांटते हैं।