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Chhath Puja Katha: छठ व्रत की प्राचीन कहानी, जिसे पढ़कर आप समझ जाएंगे इसका महत्व

Chhath Puja Katha: तीन दिवसीय छठ पूजा उत्सव आज से शुरू हो रहा है, लेकिन क्या आपको छठ पूजा का इतिहास पता है, आइये पढ़ते हैं छठ पूजा की कथा ..

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Chhath Puja Katha

Chhath Puja Katha: छठ पूजा कथा

Chhath Puja Katha: हिंदू धर्म में कई बड़े त्योहार हैं, जिनके लिए लोग पहले से तैयारियां करना शुरू कर देते हैं। इन्हीं में से एक सूर्य पूजा का उत्सव सूर्य षष्ठी यानी छठ पर्व। यह देश के कई राज्यों बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मइया की पूजा क्यों की जाती है? नहीं जानते तो आज हम आपको बताते हैं छठ पूजा की पूरी कहानी।

Kaun Hain Chhathi Maiya: कई धार्मिक ग्रंथों में छठी मईया को भगवान सूर्य की बहन कहा गया है। इन्हीं को प्रसन्न करने के लिए सूर्य जल की महत्ता को देखते हुए सूर्य की आराधना कर इनकी भी पूजा की जाती है। मान्यता है कि छठी मईया की पूजा से संतान और संतान की सेहत, उन्नति आदि की प्राप्ति होती है।


इन्हें बच्चों की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है। मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्ट‍ि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं। शिशु जन्म के छठें दिन और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है।

Chhath Puja Katha: छठ व्रत की कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक राजा राज्य करते थे, उनका नाम था प्रियंवद। राजा प्रियंवद की कोई संतान नहीं थी। राजा इस बात को लेकर बहुत परेशान रहते थे। उन्होंने महर्षि कश्यप को अपना दुख बताया। इसके बाद महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियंवद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई। इसके सेवन से रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। लेकिन उनका पुत्र मृत पैदा हुआ था।


राजा प्रियंवद मृत पुत्र के शव को लेकर श्मशान गए और अपना प्राण भी त्यागने लगे। तभी ब्रह्माजी की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और राजा प्रियंवद को अपना परिचय देते हुए कहा, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुईं हूं। इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है। तुम मेरी विधि-विधान से पूजा करो और लोगों के बीच प्रचार-प्रसार करो। इसके बाद राजा प्रियंवद ने पुत्र की कामना करते हुए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी पर विधि-विधान से माता का व्रत किया। इसके बाद राजा संतानवान बने। इसके बाद से यह व्रत रखा जाने लगा।

छठ की एक अन्य कहानी के अनुसार जब पांडव अपना राजपाट खो बैठे थे। तब द्रौपदी ने भगवान सूर्य देव की उपासना की थी और उनसे राजपाट वापस पाने की कामना की थी। द्रौपदी की भक्ति से खुश होकर सूर्य भगवान ने आशीर्वाद दिया और उसी के फल से पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला।

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भगवान राम और माता जानकी ने की पूजा

एक अन्य कथा के मुताबिक जब भगवान श्रीराम और माता जानकी चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके आयोध्या नगरी लौटे तो उन्होंने सूर्य देव और छठी मईया की उपासना की थी।