script

बस एक बार कर लें यह छोटा सा उपाय- करोड़ों के मालिक बनने में देर नहीं लगेगी

locationभोपालPublished: Jan 18, 2019 12:22:34 pm

Submitted by:

Shyam Shyam Kishor

बस एक बार कर लें यह उपाय- संभाले नहीं संभलेगा पैसा

dhan prapti ke upya

बस एक बार कर लें यह छोटा सा उपाय- करोड़ों के मालिक बनने में देर नहीं लगेगी

धन प्राप्ति के लिए सबसे अच्छा दिन दीपावली के अलावा शुक्रवार को भी माना जाता हैं, लेकिन शास्त्रों में कहा गया हैं जब भुख लगे भोजन कर लेना चाहिए वैसे जब जीवन में पैसों की सबसे अधिक जरूरत हो तो इस उपाय को किसी भी दिन कोई भी कर सकता हैं और इसे करना वाला कभी निराश नहीं हो सकता । मां लक्ष्मी की कृपा अवश्य होती हैं । ऐसा ही एक बहुत ही प्रभावशाली उपाय हैं भवानी अष्टकं का पाठ । इस पाठ से प्रसन्न होकर माँ भवानी अपने शरणागत को प्रचुर मात्रा में धन वैभव प्रदान करती हैं, करोड़ों की संपत्ति का मालिक बना देती हैं एवं उसकी सभी विपत्तियों का नाश भी कर देती हैं ।

 

।। अथ भवानी अष्टकं ।।

1- न तातो न माता न बन्धुर्न दाता, न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता ।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
अर्थात- हे भवानि, पिता, माता, भाई, दाता, पुत्र, पुत्री, भृत्य, स्वामी, स्त्री, विद्या और वृत्ति–इनमें से कोई भी मेरा नहीं है, हे देवि! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, तुम्ही मेरी गति हो ।

2- भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः ।
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
अर्थात- मैं अपार भवसागर में पड़ा हूँ, महान दु:खों से भयभीत हूँ, कामी, लोभी, मतवाला तथा घृणायोग्य संसार के बन्धनों में बँधा हुआ हूँ, हे भवानि! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो ।

 

3- न जानामि दानं न च ध्यानयोगं न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् ।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगम् गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
अर्थात- हे देवि, मैं न तो दान देना जानता हूँ और न ध्यानमार्ग का ही मुझे पता है, तन्त्र और स्तोत्र-मन्त्रों का भी मुझे ज्ञान नहीं है, पूजा तथा न्यास आदि की क्रियाओं से तो मैं एकदम कोरा हूँ, अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो ।

4- न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित् ।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर् गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
अर्थात- न पुण्य जानता हूँ, न तीर्थ, न मुक्ति का पता है न लय का। हे माता! भक्ति और व्रत भी मुझे ज्ञात नहीं है, हे भवानि! अब केवल तुम्हीं मेरा सहारा हो ।

 

dhan prapti ke upya

5- कुकर्मी कुसंगी कुबुद्धिः कुदासः कुलाचारहीनः कदाचारलीनः ।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहम् गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
अर्थात- मैं कुकर्मी, बुरी संगति में रहने वाला, दुर्बुद्धि, दुष्टदास, कुलोचित सदाचार से हीन, दुराचारपरायण, कुत्सित दृष्टि रखने वाला और सदा दुर्वचन बोलने वाला हूँ, हे भवानि! मुझ अधम की एकमात्र तुम्हीं गति हो ।

6- प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित् ।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
अर्थात- मैं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इन्द्र, सूर्य, चन्द्रमा तथा अन्य किसी भी देवता को नहीं जानता, हे शरण देने वाली भवानि! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो ।

 

7- विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये ।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
अर्थात- हे शरण्ये, तुम विवाद, विषाद, प्रमाद, परदेश, जल, अनल, पर्वत, वन तथा शत्रुओं के मध्य में सदा ही मेरी रक्षा करो, हे भवानि! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो ।

8- अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः ।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रणष्टः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥
अर्थात- हे भवानि! मैं सदा से ही अनाथ, दरिद्र, जरा-जीर्ण, रोगी, अत्यन्त दुर्बल, दीन, गूंगा, विपदा से ग्रस्त और नष्ट हूँ, अब तुम्हीं एकमात्र मेरी गति हो ।


।। इति भवान्यष्टकं सम्पूर्णम् ।।

ट्रेंडिंग वीडियो