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इस विधि से जाने आने वाले संकटों का पूर्वानुमान

इस विधि से जाने आने वाले संकटों का पूर्वानुमान

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Shyam Kishor

Sep 08, 2018

Astrological

इस विधि से जाने आने वाले संकटों का पूर्वानुमान

इस दुनिया में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने किसी आकस्मिक छोटो बड़े संकटों का सामना न किया हो । कभी कभी किसी किसी के जीवन में बिन बुलायें संकटों की लाईन लग जाती है । ऐसे में व्यक्ति इनका कारण और निवारण को जानने के लिए धर्म या ज्योतिष के जानकारों के पास समाधान पूछने पहुंच जाता है । इस प्रश्न का उत्तर संसार के किसी भी विज्ञान, डॉक्टर आदि के पास नहीं मिल सकता, लेकिन ज्योतिष शास्त्र में इस प्रश्न का उत्तर छुपा हुआ है और सटीक ग्रह गणना करने वाला ज्योतिष भविष्य में आने वाले संकटों या फिर मृत्यु तक की पूर्व में सूचना दे देते है । जाने की जीवन के संकटों का कारण और निवारण ।

संसार का हर व्यक्ति अपने जीवन में आने वाले संकटों के बारे में या आयु के बारे जानने को उत्सुक रहता है । व्यक्ति यह जानना चाहता है कि उसकी आयु कितनी लंबी होगी या उसकी मौत कब होगी । अपनी मृत्यु का भय तो कहीं न कहीं प्रत्येक व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में समाया होता है और यही कारण है कि वह भगवान से प्रार्थना करते वक्त भी यही कहता है कि हे भगवान रक्षा करना या दीर्घायु प्रदान करना ।

ज्योषित शास्त्र केवल संकट की सूचना नहीं देता

मृत्यु योग से घबराने, भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है । ज्योषित शास्त्र की यह सबसे अच्छी बात है कि वह सिर्फ संकट की सूचना ही नहीं देता, बल्कि उसका समाधान भी बताता है । आयु के संबंध में भी यही बात है । विभिन्न ग्रहों की स्थिति और योगों के जरिए मृत्यु के संबंध में जानकारी तो मिल जाती है, साथ ही उसे टालने या उसके प्रभाव को कम करने के उपाय भी बताए जाते हैं ।

ज्योतिष के कई ग्रंथ रचे गए
मनुष्य के संकटों की पूर्व जानकारी और उनसे बचने के उपाय और आयु का निर्णय करने के लिए ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वानों ने अनेक ग्रंथों की रचना भी की हैं । कई विद्वानों ने तो गहन शोध करके आयु के संबंध में अपने मत भी प्रस्तुत किए, लेकिन जैमिनी सूत्र की तत्वदर्शन टीका में मनुष्य के संकटों और आयु को लेकर सर्वाधिक स्पष्ट, सटीक और सर्वमान्य तथ्य मिलते हैं । महर्षि पाराशर द्वारा रचित एक सूत्र से आयु निर्णय की स्थिति स्पष्ट होती है -


बालारिष्ट योगारिष्टमल्यं मध्यंच दीर्घकम् ।
दिव्यं चैवामितं चैवं सप्तधायुः प्रकीर्तितम् ।।